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सिंधिया राजघराना करता है बाबा मंसूर शाह की पूजा, बहुत ही रोचक है इनके शाही परिवार के कुलगुरु बनने की कहानी

Jyotiraditya Scindia Latest News: केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और सिंधिया के कुल गुरु एक मुसलमान फकीर मंसूर शाह है. बताया जाता है कि सिंधिया परिवार को राजगद्दी उनके आशीर्वाद से ही मिली थी, तभी से सिंधिया परिवार उन्हें अपने कुल देवता के रूप में पूजा करते आ रहे हैं.

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सिंधिया राजघराना करता है बाबा मंसूर शाह की पूजा, बहुत ही रोचक है इनके शाही परिवार के कुलगुरु बनने की कहानी

Jyotiraditya Scindia News: केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और सिंधिया राजपरिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रविवार को ग्वालियर पहुंचकर गोरखी स्थित अपने कुलदेवता और कुलगुरु बाबा मंसूर शाह (Baba mansoor Shah) की पारंपरिक ढंग से पूजा अर्चना की. यह देवघर लश्कर इलाके के गोरखी परिसर में स्थित है, जो सिंधिया राज परिवार (Scindia Royal Family) का कभी शाही महल और सचिवालय हुआ करता था. बाद में सिंधिया परिवार जयविलास पैलेस में शिफ्ट हो गया, लेकिन देवघर में तीन सौ सालों से परिवार के मुखिया का पूजा अर्चना करने आने का सिलसिला अब भी जारी है . इसकी कहानी भी काफी रोचक है.

एयरपोर्ट से सीधे पहुंचे देवघर

सिंधिया सुबह विमान द्वारा दिल्ली से ग्वालियर पहुंचे और राजमाता विजयाराजे सिंधिया एयर टर्मिनल से कार से सीधे गोरखी स्थित देवघर पहुंचे. वहां सिंधिया परिवार के राज पुरोहितों ने मंत्रोच्चार के बीच परंपरागत ढंग से उनकी पूजा अर्चना संपन्न कराई . यहां से वे कैंसर पहाड़ी कम्पू पर स्थित अपनी कुलदेवी मांढरे की माता के मंदिर पहुंचे और वहां भी पूजा की.

बाबा मंसूर शाह ऐसे बने सिंधिया परिवार के कुल देवता

दरअसल, सूफी संत बाबा मंसूर शाह महाराष्ट्र के बीड जिले में रहते थे. सिंधिया परिवार राजपाठ से पहले पेशवाओं की सेना का हिस्सा था. ये लोग भी सतारा जिले के एक गांव के रहने वाले थे, जो इसी के नजदीक था. बताते हैं कि एक बार सिंधिया राज परिवार के संस्थापक ग्रेट मराठा महादजी सिंधिया मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ने गई पेशवा सेना के साथ गए थे. उस युद्ध में ज्यादातर पेशवा सैनिक मारे गए थे. महादजी भी युद्ध के बाद वापिस नहीं लौटे, तो उनकी बुज़ुर्ग मां के साथ पत्नी मैना का रो-रो कर बुरा हाल हो गया. किसी के कहने पर वे लोग फकीर मंसूर शाह औलिया के खानकाह पर पहुंचे, तब औलिया ध्यान में थे . इन लोगों के रोने की आवाज सुनकर उनका ध्यान टूटा, तो महादजी की पत्नी मैना ने उन्हें पूरी बात बताई. इस पर मुस्कराते हुए बाबा मंसूर ने कहा महादजी को कुछ नहीं होगा. वह जीवित है और यहीं आएगा. तुम यहीं इन्तज़ार करो, तभी यह चमत्कार हुआ कि राने खा नामक युवक घायल महाद जी को लेकर बाबा के दरबार में पहुंच गया. उसने बताया कि पानीपत के युद्ध में पेशवा सेना मारी गई. इस दौरान गंभीर रूप से घायल इस युवक को उठाकर वह अपने घर ले गया और इलाज किया. थोड़ा सुधार होने पर आपके पास लाया हूं. महादजी को जीवित देखकर उनकी मां और पत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा.

आधी रोटी देकर बोले जाओ तुम्हारी पांच पीढियां राज करेंगी

बताते है कि इसके बाद बाबा ने अपनी आधी रोटी तोड़कर महादजी को दी और बोला तुम मोतियों वाले राजा बनोगे और तुम्हारी पांच पीढियां राज करेंगी. यह रोटी लेकर उन्होंने अपने घर के पूजाघर में रख दी. तब से सिंधिया परिवार इसकी पूजा कर रहा है. इसके बाद स्वस्थ होने पर महादजी ने युद्ध में पराजय के बाद जीवित बचे पेशवाओं को ढूंढा और सेना का पुनर्गठन कर पानीपत के युद्ध में मुगलों को हराया. कालान्तर में महादजी ने सिंधिया डायनेस्टी की स्थापना की. उन्होंने पहली राजधानी उज्जैन बनाई और फिर ग्वालियर, लेकिन वे अपने देवघर को साथ लेकर चले . ग्वालियर में गोरखी महल निर्माण से पहले सिंधिया राजाओं ने उसी के परिसर में देवघर का निर्माण कराया और वहां बाबा मंसूर शाह की स्मृति की स्थापना कराई.

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देवघर में होती है आधी रोटी की पूजा

इस देवघर की खासियत यह है कि इसमें न तो कि किसी सूफी संत की मजार है और न ही किसी संत की समाधि. इसमें एक अंगवस्त्र और आधी सूखी रोटी रखी हुई है. यह दोनों चीजें आशीर्वाद के साथ सूफी संत बाबा मंसूर शाह औलिया की ओर से महादजी सिंधिया को दी गई थी और सिंधिया परिवार की मान्यता है कि उनके परिवार पर आशीर्वाद है, जिसके चलते सिंधिया राजपरिवार स्थापित हुआ, जो इतिहास में सबसे अधिक सैनिकों के साथ ही आर्थिक रूप से सम्पन्न राजघराना बना. इनके एक महल का नाम भी मोती महल था. उसी समय से सिंधिया परिवार नियमित हर समय यहां आकर मत्था टेककर आशीर्वाद लेता है, जबकि पितृ पक्ष में राज परिवार का मुखिया यहां खास पूजा करते हैं और जब तक उससे फूल नीचे नहीं गिर जाता, तब तक वे उसके ऊपर चंवर डुलाते रहते है. बाद में गिरे हुए फूल को ले जाकर उसे अपने महल के पूजा घर में रखते हैं, जहां परिवार के सदस्य भगवान के साथ उनकी भी नियमित पूजा करते है.

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