
Ramlila in Gwalior: ग्वालियर में इन दिनों एक अनूठी रामलीला (Ramleela) का आयोजन चल रहा हैं. इस रामलीला की शुरुआत पाकिस्तान (Pakistan) में सवा सौ साल पहले हुई थी. मकसद था समाज के लोगों खासकर होली पर युवाओं को नशे की लत से बचाना. विभाजन के बाद पंजाबी समाज के लोगों को भारत आना पड़ा. ये अपने साथ अपने घर, जायदाद और कीमती सामान तो नहीं ला सकें, लेकिन अपनी यह रामलीला जरूर साथ ले आये. भरत आने ले बाद ये ग्वालियऱ पहुंचे और तब से नशामुक्ति का सन्देश देने के लिए होली पर लगातार इस रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. इस रामलीला मे भाग लेने के लिए देश के कोने कोने से पंजाबी समाज के लोग तो यहां पहुंचते हैं साथ ही दुनिया भर से भी लोग आते हैं.
पाकिस्तान से ग्वालियर तक का सफर
पाकिस्तान से ग्वालियर आयी इस अनूठी रामलीला का मंचन सवा सौ साल से कर रहे हैं. 1947 में जब वे पाकिस्तान छोड़कर ग्वालियर आकर बसे तब से रामलीला का मंचन ग्वालियर में हो रहा है. इसकी ख़ास बात ये भी हैं कि इसमे रामलीला ले साथ श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी मंचन किया जाता हैं.
झंग समाज के अध्यक्ष मोहन लाल अरोरा के अनुसार यह बिरादरी मूल रूप से पाकिस्तान की पंजाब प्रांत की झंग जिले की निवासी थी. वहां सन 1908 में झंग बिरादरी के युवाओं को होली पर नशे से दूर रखने और धर्म व अध्यात्म से जोड़ने के लिए समुदाय के लोगों ने होलिकाष्ठक के दौरान रामलीला मंचन की परंपरा के शुरुआत में यह साधारण नाटक के रूप में की थी. लेकिन कुछ वर्षों से रामलीला का स्वरूप ले लिया गया. 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान बना और वहां रहने वाले हिंदू व पंजाबी समाज के लिए हालात तनावपूर्ण हो गए तब यह झांग पंजाबी बिरादरी ने भी पलायन कर भारत आई और दिल्ली होते हुए ग्वालियर में आकर बस गई. इस दौरान हुए अपनी संस्कृति और अनोखी परंपरा को भी अपने साथ लेकर आए इस ऐतिहासिक रामलीला को ग्वालियर की शिंदे की छावनी स्थित आदर्श नगर मे पहले छोटे रूप मे जारी रखा. बाद मे जिंसी नाला मे स्थाई जमीन लेकर इसे भव्यता के साथ जारी रखा गया.
ग्वालियर में झंग बिरादरी की संख्या अधिक होने और यहां सिंधिया राजघराने की छत्र छाया में झंग बिरादरी के लोगों ने खुद को सुरक्षित महसूस किया, इसलिए अपनी पैतृक रामलीला की परंपरा को ग्वालियर में ही 1948 स्थापित कर आगे बढ़ाया. बिरादरी के कुछ लोग काम धंधे की तलाश में देश के अन्य शहरों यहां तक कि देश के बाहर तक चले गए पर होली पर यह सभी लोग लौटकर ग्वालियर आते हैं और अपना अभिनय निभाते हैं.
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