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This Article is From Mar 26, 2024

आस्था या अंधविश्वास: Holi पर अजब परंपरा, होलिका दहन के अंगारों पर चलते हैं लोग, कारण जान आप भी चौक जाएंगे!

Holi 2024: आस्था के कारण ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच नंगे पैर चलते हैं. वहीं लोगों का मानना है कि इससे ग्रामीण प्राकृतिक आपदाएं और बीमारियों से दूर रहते हैं.

आस्था या अंधविश्वास: Holi पर अजब परंपरा, होलिका दहन के अंगारों पर चलते हैं लोग, कारण जान आप भी चौक जाएंगे!

देशभर में रंगों का पर्व होली (Holi 2024)को बड़े होर्षोल्लास से मनाया गया. देशभर में लोग अलग-अलग मान्यताओं और परंपराओं के साथ होली मनाया. कहीं फूलों तो कहीं रंगों से होली खेली गई, लेकिन आज हम आपको होली की एक ऐसी अजीब परंपरा के बारे में बता रहे हैं, जिसे देख आप हैरान रह जाएंगे.

इस गांव में अंगारों पर चलते हैं लोग 

आपने कभी अंगारों पर चलकर होली खेला या सुना है? आप जरूर कहेंगे भला ऐसे भी होली खेली जा सकती है. दरअसल, मध्य प्रदेश के हरदा और बैतूल जिले की सीमा पर बसे वनग्राम खोखराखेड़ा में अनोखे तरीके से होली मनाई जाती है. यहां होलिका दहन के बाद स्थानीय लोग आग के शोलों को जमीन पर फैला देते हैं. फिर उन्हीं अंगारों पर वो नंगे पांव चलते हैं. ये अनोखी परंपरा कई सालों से यहां चली आ रही है. इस परंपरा के लोगों का मानना है कि होलिका के अंगारों पर नंगे पांव चलने से प्राकृतिक आपदाएं और बीमारियां टल जाती हैं. साथ ही ये लोग इस अनूठी परंपरा का हिस्सा बन खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं.

जलती होली के धधकते अंगारों पर नंगे पांव चलकर प्राचीन मान्यताओं और लोक परंपराओं का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करते हैं. मान्यता है कि होलिका दहन से बाद धधकते अंगारों पर चलने से गांव पर कोई विपदा और बीमारियों का प्रकोप नहीं आता है. जिसको लेकर पूरी आस्था के साथ ग्रामीण इस परंपरा का निर्वहन पीढ़ी दर पीढ़ी करते चले आ रहे हैं. 

ग्रामीणों का मानना है कि इससे ग्रामीण प्राकृतिक आपदाएं और बीमारियों से दूर रहते हैं. आस्था के चलते ग्रामीण धधकते हुए अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं. इतना ही नहीं अंगारों के बीच से नंगे पैर चलने पर इन लोगों को कोई डर भी नहीं लगता. ग्रामीणों की आस्था का आलम ये है कि बच्चों से लेकर महिलाएं, बुजुर्ग तक अंगारों पर नंगे पैर चलती है. खास बात ये है कि इन अंगारों पर चलने वाले व्यक्ति के पैर तक जलते नहीं हैं.

गांव में बनाई जाती है 2 होली

धुलेंडी के दिन शाम को गांव के लोग मिलकर 2 होली बनाते है. जिसमें ज्यादा लकड़ी होती है उसे बड़ी होली और जिसमें कम लकड़ी होती है उसे छोटी होली कहते हैं. जहां गांव के हर परिवार के सदस्य पहुंचकर होली दहन के पहले पारंपरिक तरीके से पूजन अर्चन कर होली में सूत बांधकर परिक्रमा लगाते हैं. वहीं जिन परिवारों में होली के दिन कोई अनहोनी हुई हो वो लोग होली जलने के बाद पूजन अर्चन कर घर में बना भोग और नारियल चढ़ाते हैं.

गांव में रहने वाले बलीराम पांसे कहते है कि सालों पहले हमारा गांव करीब 3 बार पूरी तरह से उजड़ गया था. इसी चिंता को लेकर गांव के एक बुजुर्ग ने गांव की खुशहाली के लिए बंधन किया. तभी से पूरा गांव यह परंपरा को निभा रहा है.

उन्होंने कहा कि गांव के लोग होलिका दहन के करीब 2-3 घंटे बाद उस अंगारे पर चलते हैं. इसको लेकर यह मान्यता है कि होली के अंगारों से निकलने से गांव में सुख-समृद्धि रहती है. वही गांव में किसी भी तरह की बीमारियों का प्रकोप आने से रुक जाता है. 

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