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MP: शरिया कानून को मुस्लिम महिला ने दी कोर्ट में चुनौती, कहा-  बेटी का हक बराबर नहीं, यह असंवैधानिक 

MP News: शरिया कानून को मुस्लिम महिला ने कोर्ट में चुनौती दी है. उसने कहा है इसमें बेटी का हक बराबर नहीं है जो कि असंवैधानिक है. 

MP: शरिया कानून को मुस्लिम महिला ने दी कोर्ट में चुनौती, कहा-  बेटी का हक बराबर नहीं, यह असंवैधानिक 

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मुस्लिम समाज की एक महिला ने अपने हक के लिए न केवल शरिया कानून पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उसे असंवैधानिक बताते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ में मुस्लिम पर्सनल लॉ को चुनौती भी दी है. उसने कहा कि इसमे बेटी का हक बराबर क्यों नही है ? जबकि संविधान में समानता है तो अरब की व्यवस्था यहां क्यों लागू है?  

ये है मामला 

60 साल उम्र पार कर चुक दतिया निवासी हुसना ने मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 (शरिया) को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ में चुनौती दी है. उन्होंने पिता की सम्पत्ति में हिस्सा न देने के खिलाफ और संपत्ति में बेटे के बराबर हिस्सा देने की मांग करते हुए यह याचिका दायर की है. उनकी याचिका में कहा गया है कि हमारे संविधान में सबको समानता का हक  है.

इसके बावजूद शरिया में बेटियों के साथ भेदभाव होता है. पिता की संपत्ति में से भाइयों को जितना हिस्सा मिला बेटी होने के कारण याची को उसका सिर्फ आधा ही मिला जबकि भाई - बहन को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए. 

हुसना ने याचिका के जरिए कोर्ट को बताया कि उनके पिता के निधन के बाद भाई मज़ीद और रहीश खान ने राजस्व रेकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया . 2019 में उन्होंने नजूल दफ्तर में अपने भाइयों के बराबर 1/3 हिस्सा भूमि अपने नाम करने के लिए आवेदन लगाया. नजूल अफ़सर् ने हुसना के पक्ष में फैसला सुनाया .

उसके भाइयों ने नजूल कोर्ट के आदेश को कलेक्टर के यहां चुनौती दी जो खारिज हो गई तो उन्होंने एडिशनल कमिश्नर के समक्ष अपील दायर की . उन्होंने शरिया एक्ट के तहत कुल 116 वर्गमीटर जमीन में से बहन को भाई की तुलना में आधा हिस्सा देने का आदेश पारित किया . 

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एडिशनल कमिश्नर के आदेश के खिलाफ याची हुस्ना अब हाईकोर्ट चली गई. उनके एडवोकेट प्रतीप विसोरिया ने याचिका पेश करते हुए तर्क दिया कि शरिया अरब देशों की व्यवस्था है फिर भारत में रहने वाले मुस्लिमों पर यह लागू क्यों है ?

आज़ादी के बाद संविधान की मंशा के अनुसार शरिया एक्ट में बदलाव किए जाने चाहिए थे जो नहीं किए गए . याचिका में कुरान का उदाहरण देकर बंटवारे का उल्लेख भी किया गया .

इसमें यह भी कहा गया कि भारत मे स्वतंत्रता के बाद हिंदुओं के लिए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 लागू किया गया लेकिन मुस्लिमों के लिए ऐसा कोई कानून नहीं आया. एडवोकेट विसोरिया के अनुसार मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच में अक्टूबर के तीसरे वीक में इस याचिका पर सुनवाई होगी.

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