
MP Education System: मध्यप्रदेश में शिक्षा का हाल पूछिए तो जवाब मिलेगा सब मैनेज हो रहा है! लेकिन ये 'मैनेजमेंट'अब मज़ाक नहीं, महाकाव्य बन चुका है. ये पक्तियां पढ़कर आप थोड़ा चौंक सकते हैं लेकिन जब आप आगर मालवा के सरकारी स्कूल में पहुंचेंगे तो आप सारा माजरा समझ जाएंगे. राज्य की राजधानी से 200 किलोमीटर दूर मौजूद ये सरकारी स्कूल सच में अजूबा है. यहां कमरा एक है, टीचर एक है और इसी में मौजूद हैं 5 क्लासें. यहां शिक्षक अब गुरु नहीं बल्कि सिस्टम के 'सुपरह्यूमन' बन कर बच्चों को पढ़ाते हैं. यहां गुरुजी एक साथ गणित, संगीत,खाना,खेल,कविता,कॉपी जांच,लोरी गायन सबकुछ अंजाम देते हैं. वे आंगनबाड़ी से लेकर पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं....ये सब कैसे संभव हो पाता है- पढ़िए अनुराग द्वारी और जफर मुल्तानी की रिपोर्ट में.
पीएम श्री हाई स्कूल परिसर में ये हाल?
दरअसल आगर मालवा के जिस स्कूल की हम बात कर रहे हैं उसका नाम है पीएम श्री हाइ स्कूल. इस एकीकृत स्कूल में कक्षा एक से दसवीं तक के विद्यार्थियों के पढ़ने की व्यवस्था है . इसी परिसर के पिछले हिस्से में संचालित होता है प्राइमरी स्कूल. जहां तीन कमरों में पहले से ही पहली से पांचवीं तक की कक्षाएं तीन शिक्षकों के भरोसे चल रही हैं. अब बोझ इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ECCE योजना के तहत भी यहां पढ़ने की व्यवस्था की गई है. बता दें कि ECCE नीति 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को लक्षित करती है, जिसमें बाल वाटिका कक्षाएं 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए प्री-प्राइमरी शिक्षा प्रदान करती हैं.इसके अंतर्गत बाल वाटिका शालाएं पीएम श्री विद्यालयों जैसे कंपोजिट विद्यालय परिसर में संचालित हो रही है ... इनमें सरकार चाहती है कि खेल-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षण (Play-Based Learning) को प्राथमिकता दी जाए. इसमें बच्चों को रंग,आकार,ध्वनि,पेड़-पौधे और पशु-पक्षी आदि से परिचय भी कराए जाने का लक्ष्य होता है.

आगर शहर में मौजूद इस स्कूल में आप देख सकते हैं बड़े और छोटे बच्चे एक ही क्लास में पढ़ाई करने को मजबूर हैं और टीचर भी पढ़ाने को
शिक्षक टाइम टेबल से नहीं संवेदनाओं से चलते हैं !
अब असल समस्या पर बात कर लेते हैं. इस परिसर में एक कमरे के क्लास में प्राइमरी के बच्चों के साथ साथ प्री प्राइमरी यानी नर्सरी,LKG और UKG के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है. यहां शिक्षक किसी टाइम टेबल से नहीं, संवेदनाओं से चलते हैं. इन बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर रेखा भटनागर कहती हैं- मुश्किल तो होती है लेकिन जब पढ़ाई शुरू होती है सबकुछ मैनेज हो जाता है. हमें लोरी भी सुनाना पड़ता है. चॉकलेट भी लाकर रखा है फिर भी कोई बच्चा रोने लगता है तो घर वालों को फोन कर देते हैं वे आकर ले जाते हैं. जो छोटे बच्चे हैं उन्हें मैं अपने पास ही बैठाती हूं.
हालत में जल्द सुधार आएगा: प्राचार्य
नई शिक्षा नीति कहती है-“प्ले बेस्ड लर्निंग होनी चाहिए मगर हकीकत जमीन कहती है- 'प्ले भी आप,बेस भी आप,लर्निंग भी आप.अब ECCE हो, प्राइमरी हो, मिड डे मील हो या मां की ममता सबका ठेका शिक्षक को ही दे दिया गया है. वो टीचर नहीं, सरकारी राउटर हैं — जहाँ सब कुछ कनेक्ट होता है, लेकिन नेटवर्क हमेशा 'वीक' रहता है. इस स्थिति पर जब हमने प्राचार्य सरोज मंगल से बात की तो उन्होंने भी स्वीकारा की हालात खराब है लेकिन इसमें जल्द ही सुधार आ जाएगा. बकौल सरोज मंडल- पोर्टल अपलडेट हो रहा है. अभी तो खेल-खेल में पढ़ाना है, ड्राइंग करवाना है और मध्यान्न भोजन भी संभालना है. लिहाजा सब मैनेज करना पड़ता है.

एक ही टीचर को छोटे बच्चों को भी मैनेज करना पड़ता है
मध्यप्रदेश में शिक्षा की हालत पहले खराब थी लेकिन राज्य सरकार का दावा है कि हालात में सुधार हो रहे हैं. मंत्री जी ने हमारे सवालों का क्या जवाब दिया ये आपको आगे बताएंगे पहले ये जान लीजिए सरकारी रिपोर्ट के ही आधार पर राज्य में शिक्षा व्यवस्था की क्या स्थिति है? 2021 में UNESCO ने बताया था कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा एक-शिक्षक वाले स्कूल हैं — पूरे 21,077!

मंत्री जी के दावे से अफसर ही सहमत नहीं
जब हमने स्कूली शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह से इस स्कूल की हालत पर सवाल किया तो उन्होंने साफ कहा- आपकी जानकारी गलत है, कहां से पता लगा आपको? हम तो यही कहेंगे- मंत्रीजी हमारी जानकारी गलत हो सकती है लेकिन क्या आपके विभाग के अधिकारी भी गलत बोल रहे हैं. आगर-मालवा के डीईओ एम के जाटव ने हमें बताया- वर्क लोड बहुत ज्यादा है. ऐसे में जो पहले से पदस्थ शिक्षक हैं हम उन्हें ही ट्रेंड कर रहे हैं. हमें विभाग से जैसे निर्देश मिलते हैं, हम उसका पालन करते हैं. राज्य में शिक्षा की स्थिति पर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने कहा- राज्य में लाखों बच्चे स्कूल ड्रॉप आउट हो जाते हैं. कहीं ना कहीं हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि हर स्कूल के सही संचालन के लिए मानव संसाधन जरूरी है. बड़े अफसोस की बात है कि मध्य प्रदेश में ऐसे अनेकों कक्षाएं हैं जहां टीचर्स नहीं हैं. अतिथि शिक्षकों को स्थाई करने का आदेश दिया गया है लेकिन न तो उन्हें ये आदेश मिला है और न ही पर्याप्त वेतन ही दिया जा रहा है. राज्य में स्कूली शिक्षा की स्थिति बहुत ही दयनीय है.
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