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श्राद्ध के दौरान श्रद्धालुओं को नहीं मिल रहे कौवे, लेकिन उज्जैन के इस टीचर की आवाज पर आ जाता है पूरा झुंड

Pitru Paksha 2025: उज्जैन में श्राद्ध के दौरान भोजन कराने के लिए लोगों को कव्वे ही नहीं मिल रहे हैं. लेकिन, यहां एक ऐसे शिक्षक रहते हैं, जिनके घर पर आज भी सैकड़ों की संख्या में कव्वे हर दिन आते हैं.

श्राद्ध के दौरान श्रद्धालुओं को नहीं मिल रहे कौवे, लेकिन उज्जैन के इस टीचर की आवाज पर आ जाता है पूरा झुंड
उज्जैन में श्राद्ध के दौरान नहीं मिल रहे कौव्वे

Crows in Pitru Paksha: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के उज्जैन (Ujjain) में श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने देश - विदेश से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन श्रद्धा कर्म के बाद कौवों को भोजन करवाने की परंपरा का पालन नहीं करवा पाते हैं. वजह कव्वे नहीं मिलना... वहीं, इंदौर रोड पर एक रिटायर्ड शिक्षक के यहां प्रतिदिन सैकड़ों कव्वे उनकी आवाज पर दाना चुगने आते हैं. इसलिए अब श्रद्धालु भी कव्वों को भोजन करवाने के लिए इनके घर पर पहुंचने लगे हैं.

क्या है कव्वे को भोजन कराने का महत्व?

श्राद्धकर्म के बाद कव्वों को भोजन करवाने का विशेष महत्व माना जाता है. सिद्धवट, गया, कोटा तीर्थ और रामघाट पर श्राद्ध कर्म करने मान्यताओं के चलते पूरे भारत से श्रद्धालु पितरों का श्राद्धकर्म करने आते हैं. लेकिन, श्राद्ध के बाद कव्वे नहीं मिलने से निराश हो रहे हैं. दूसरी ओर, श्री कृष्ण एक्टेंशन निवासी रिटायर्ड शिक्षक अशोक कुमार दुबे की आवाज सुन प्रतिदिन शाम को सैकड़ों कव्वे ऐसे आता हैं, जैसे वह उनके परिवार के सदस्य हों.

दोस्त बन गए कव्वे

अशोक दुबे ने बताया कि 2017 में श्रीकृष्ण एक्टेंशन कालोनी में रहने आया. यहां रोज शाम कुछ चिड़ियों को देख दाना डालने लगा. धीरे-धीरे कव्वे आने लगे. संख्या बढ़ती गई. अब स्थिति है कि हर महीने करीब ढाई क्विंटल चावल को भोजन स्वरूप देते हैं. बीते दो-तीन साल से पास में ही रहने वाला हार्दिक जांगड़े कव्वों के लिए पानी भरने लगा. अब प्रतिदिन शाम छह बजे सैकड़ों कव्वे आते हैं और दाना-पानी चुगकर अंधेरा होने से पहले उड़ जाते हैं.

कौआ ना मिले तो क्या करें?

ज्योतिशाचार्य भारद्वाज के अनुसार, पितरों का भोजन गाय, कुत्ते कौवे, चींटी और देवताओं को खिलाया जाता है. इसे पंचबलि भोग कहते हैं. इसलिए, कौवे नहीं मिलने पर अन्य को भी भोजन करवा सकते हैं. यह एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है. मान्यता है कि इन पांचों को भोजन कराने से पितरों को भोजन प्राप्त होता है और वे तृप्त होते हैं.

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शेष श्राद्ध की तिथियां

शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष का शुभारंभ 7 सितंबर से शूरू हुआ. दिन गुजरने के बाद अब इसकी तिथियां इस प्रकार हैं-

  • 13 सितंबर (शनिवार) – सप्तमी का श्राद्ध
  • 14 सितंबर (रविवार) – अष्टमी का श्राद्ध
  • 15 सितंबर (सोमवार) – नवमी का श्राद्ध
  • 16 सितंबर (मंगलवार) – दशमी का श्राद्ध
  • 17 सितंबर (बुधवार) – एकादशी का श्राद्ध
  • 18 सितंबर (गुरुवार) – द्वादशी का श्राद्ध (यह संन्यासियों का श्राद्ध भी माना जाता है)
  • 19 सितंबर (शुक्रवार) – त्रयोदशी का श्राद्ध (प्रदोष तिथि, मघा श्राद्ध)
  • 20 सितंबर (शनिवार) – चतुर्दशी का श्राद्ध (यह श्राद्ध अपघात या अकाल मृत्यु से मृत व्यक्तियों के लिए किया जाता है)
  • 21 सितंबर (रविवार) – सर्वपितृ अमावस्या – पितृपक्ष का अंतिम दिन रहेगा.

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