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This Article is From Sep 04, 2023

30 साल तक नहीं ली एक भी छुट्टी, खोले 18 प्राथमिक केंद्र...जानिए ऐसे शिक्षक की पूरी कहानी

शिक्षक दिवस के अवसर पर हम आज आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसे शिक्षक से जिन्होंने 30 वर्ष मॉडल हाई स्कूल जबलपुर में शिक्षक के रूप में कार्य किया. इस दौरान उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली. यही नहीं, अपने पिता और बेटी की मृत्यु हो जाने पर अंत्येष्टि के बाद आधे दिन स्कूल आ गए ताकि बच्चों को नुकसान न हो सके.

30 साल तक नहीं ली एक भी छुट्टी, खोले 18 प्राथमिक केंद्र...जानिए ऐसे शिक्षक की पूरी कहानी

शिक्षक दिवस के अवसर पर हम आज आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसे शिक्षक से जिन्होंने 30 वर्ष मॉडल हाई स्कूल जबलपुर में शिक्षक के रूप में कार्य किया. इस दौरान उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली. यही नहीं, अपने पिता और बेटी की मृत्यु हो जाने पर अंत्येष्टि के बाद आधे दिन स्कूल आ गए ताकि बच्चों को नुकसान ना हो सके. सरकार के द्वारा मिले सर्वश्रेष्ठ शिक्षक अवार्ड के चेक को भी कभी बैंक में जमा नहीं कराया...तंग हाल ज़िंदगी, नंगे पैर चलने वाले शिक्षक की यह है अनोखी कहानी... 

परिजनों की मृत्यु के बाद भी नहीं ली छुट्टी 

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86 साल के ईश्वरी प्रसाद तिवारी के चेहरे से आज भी ज्ञान का प्रकाश झलकता है. जबलपुर शहर के सबसे पुराने शासकीय विद्यालयों में से एक मॉडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक इन्होंने करीब 30 साल अपनी सेवाएं दी. इस दौरान उन्होंने एक भी दिन छुटटी नहीं ली. ईश्वरी प्रसाद के पिताजी स्व. दुलीचंद तिवारी का जब स्वास्थ्य खराब हुआ तो अचानक सुबह 4 बजे वे कोमा में चले गए. इसी बीच अपने पिता की मृत्यु की खबर पाकर उन्हे अंतिम संस्कार के लिए जाना पड़ा. वहां पर भी उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा किया फिर बच्चों को पढ़ाने की चिंता में वे वापस स्कूल आ पहुंचे. जब वे स्कूल पहुंचे तो वहां उनके पिता के लिए शोक सभा का आयोजन किया गया था वे चुपचाप छात्रों के पीछे खड़े रहे.

अवॉर्ड के चेक को नहीं किया बैंक में जमा 

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उन्होंने अपनी पांच बच्चियों की शादियां भी शनिवार और रविवार के दिन तय की ताकि उन्हें अवकाश न लेना पड़े. शासन ने भी उन्हें आदर्श शिक्षक सम्मान से नवाज़ा और भोपाल मे सम्मान के लिए आमंत्रित किया. लेकिन वे नहीं गए. उन्होंने इस सम्मान प्रतिष्ठा के संसाधन से खुद को दूर रखा. शिक्षा मंत्री ने जबलपुर पहुंचकर उनका सम्मान किया. उस समय की बड़ी रकम "एक हजार" की राशि का चेक ईश्वरी प्रसाद को दिया गया. जो आज तक उनकी फाइलों में कहीं दबा हुआ है. उन्होंने उस चेक को आज तक बैंक में जमा नहीं किया. 

शहर में खोले 18 प्राथमिक केंद्र 

1 अगस्त 1991 को मध्यप्रदेश शासन ने उन्हें परियोजना अधिकारी बनाया गया. ये ज़िम्मेदारी मिलने के बाद ईश्वरी प्रसाद मे शहर मे 18 प्राथमिक केंद्र खोले. इस प्रयास से करीब 500 गरीब बच्चो ने शिक्षा हासिल की है. इसके साथ ही समाजिक क्षेत्र मे भी वे पीछे नही रहे. करीब 3 हज़ार बच्चियों को उन्होंने सिलाई की शिक्षा दी. वहीं वृक्षारोपण मे भी उन्होंने कई हज़ार पौधे लगवाए. दिन भर स्कूल में और रात 9 बजे तक निशुल्क लाइब्रेरी में सेवा देते रहे. अब शरीर साथ नहीं दे रहा है इस लिए अपनी पत्नी के साथ घर पर ही रहते है. आपको बता दें कि आजकल की कोचिंग प्रणाली से तिवारी सर बहुत आहत हैं. आइए इस सवाल पर जान लेते हैं कि उनका क्या कहना है? 

"माता-पिता पर आज शिक्षा बोझ बन गई है. वर्तमान में जो शिक्षा व्यवस्था है उसमें बहुत बड़ा पढ़ाई का भार कोचिंग सेंटर में आ गया है. अगर बहुत गहराई से देखा जाए तो कहा जाता है कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत बढ़ रहा है. अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा का और अधिक महत्त्व बढ़ रहा है परंतु दूसरा पक्ष भी अनुभव करना चाहिए कि इन सब में समाज पिस रहा है. मध्यम वर्ग बहुत समस्या से घिरा हुआ है. उनकी फीस.....उनका व्यवहार जो है... पैसा जो है....सब परेशानी में है. छोटे-छोटे नन्हें-नन्हें बच्चे उनके माता-पिता उनके बैग को लाद कर उन्हें स्कूल छोड़ने जाते हैं, क्या पहले हमारी शिक्षा व्यवस्था में ज्ञान विज्ञान में कोई कमी थी ,कोई ऊंचाई नहीं रहती थी क्या? बच्चे 6 वर्ष में भर्ती होते थे और अति विद्वंता पूर्ण जीवन और शिक्षा प्राप्त करते थे. शिक्षा का विकास होना चाहिए लेकिन इसका बोझ आजकल इतना बढ़ गया है कि सामाजिक त्राहिमाम कर रहा है."

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