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This Article is From Sep 25, 2023

Deendayal Upadhyay Jayanti : 'दीना' ने अपने पत्र में लिखा था- मामा एलोपैथी छोड़िए, होम्योपैथी अपनाइए

आज 25 सितंबर के दिन ही भारतीय जन संघ पार्टी (Bharatiya Jana Sangh Party) के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyaya Jayanti) का जन्म हुआ था. भोपाल में आज बीजेपी (BJP) पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर कार्यकर्ता महाकुंभ (Karyakatra Mahakumbh) आयोजित करने जा रही है. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) शामिल हाेंगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर हम आपको उनके पत्र (Letter of Pandit Deendayal) के बारे में बता रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपने मामा को समझाते हुए लिखा था कि एलोपैथी (Allopathic) छोड़ दो और होम्योपैथी (Homeopathy) अपनाओ.

Deendayal Upadhyay Jayanti : 'दीना' ने अपने पत्र में लिखा था- मामा एलोपैथी छोड़िए, होम्योपैथी अपनाइए

आज 25 सितंबर के दिन ही भारतीय जन संघ पार्टी (Bharatiya Jana Sangh Party) के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyaya Jayanti) का जन्म हुआ था. यही जन संघ पार्टी आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) बन गई. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल में आज बीजेपी (BJP) पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर कार्यकर्ता महाकुंभ (Karyakatra Mahakumbh) आयोजित करने जा रही है. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi in Bhopal) शामिल हाेंगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर हम आपको उनके पत्र (Letter of Pandit Deendayal) के बारे में बता रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपने मामा को समझाते हुए कहा था कि एलोपैथी (Allopathic) छोड़ दो और होम्योपैथी (Homeopathy) अपनाओ. आइए उनके पत्र की अन्य बातों को भी जानते हैं.

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'समाज कार्य के लिए जो आज्ञा मिली थी उसका पालन करना पड़ा'

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ये पत्र अपने मामा पंडित नारायण शुक्ल को दिनांक 21 जुलाई, 1942 के दिन लिखा था. मामा को लिखे गए पत्र के प्रमुख अंश. यह पत्र पांचजन्य के अभिलेखागार से लिया गया है. पत्र में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के शब्द कुछ ऐसे थे. 

"श्रीमान् मामाजी,
सादर प्रणाम! आपका पत्र मिला. देवी की बीमारी का हाल जानकर दु:ख हुआ. आपने अपने पत्र में जो कुछ भी लिखा है सो ठीक ही लिखा है. उसका क्या उत्तर दूँ यह मेरी समझ में नहीं आता. परसों आपका पत्र मिला तभी से विचारों का एवं कर्तव्यों का तुमुल युद्ध चल रहा है. एक ओर तो भावना और मोह खींचते हैं तो दूसरी ओर प्राचीन ऋषियों हुतात्माओं और पुम्रषाओं की अतृप्त आत्माएं पुकारती हैं. आपके लिखे अनुसार पहले तो मेरा भी यही विचार था कि मैं किसी स्कूल में नौकरी कर लूं तथा साथ ही वहां का संघ कार्य भी करता रहूंगा. यही विचार लेकर मैं लखनऊ आया था. परंतु लखनऊ में आजकल की परिस्थिति तथा आगे कार्य का असीम क्षेत्र देखकर मुझे यही आज्ञा मिली कि बजाय एक नगर में कार्य करने के एक जिले में कार्य करना होगा.

संघ के स्वयंसेवक के लिए पहला स्थान समाज और देशकार्य का ही रहता है और फिर अपने व्यक्तिगत कार्य का. अत: मुझे अपने समाज कार्य के लिए जो आज्ञा मिली थी उसका पालन करना पड़ा. 

मैं यह मानता हूं कि मेरे इस कार्य से आपको कष्ट हुआ होगा."

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'समाज की उन्नति हुए व्यक्ति की उन्नति संभव नहीं'  

पंडित दीनदयाल ने अपने इस पत्र में मामा को लिखा है कि "शायद संघ के विषय में आपको अधिक मालूम न होने के कारण आप डर गए हैं. इसका कांग्रेस से किसी प्रकार का संबंध नहीं है और न किसी राजनीतिक संस्थाओं से. यह आजकल की किसी राजनीति में भाग भी नहीं लेता है, न यह सत्याग्रह करता है और न जेल जाने में ही विश्वास रखता है. न यह अहिंसावादी है और न हिंसावादी ही. इसका तो एकमात्र कार्य हिंदुओं में संगठन करना है.

इसी कार्य को यह लगातार सत्रह साल से करता आ रहा है. इसकी सारे भारतवर्ष में एक हजार से ऊपर शाखाएँ तथा दो लाख से अधिक स्वयंसेवक हैं. मैं अकेला ही नहीं परंतु इसी प्रकार तीन सौ से ऊपर कार्यकर्ता हैं जो एकमात्र संघकार्य ही करते हैं. सब शिक्षित और अच्छे घर के हैं. बहुत से बी.ए., एम.ए. और एल.एल.बी. पास हैं. ऐसा तो कोई शायद ही होगा जो कम-से-कम हाई स्कूल न हो और वह भी इने-गिने लोग. इतने लोगों ने अपना जीवन केवल समाज कार्य के लिए क्यों दे दिया, इसका एकमात्र कारण यही है कि बिना समाज की उन्नति हुए व्यक्ति की उन्नति संभव नहीं है.

व्यक्ति कितना भी क्यों न बढ़ जाए, जब तक उसका समाज उन्नत नहीं होता तब तक उसकी उन्नति का कोई अर्थ नहीं है. यही कारण है कि हमारे यहाँ के बड़े-बड़े नेताओं का दूसरे देशों में आकर अपमान होता है.

हरीसिंह गौड़ जो कि हमारे यहाँ के इतने बड़े व्यक्ति हैं वे जब इंग्लैंड के एक होटल में गए तो वहाँ उन्हें ठहरने का स्थान नहीं दिया गया क्योंकि वे भारतीय थे. हिंदुस्थान में ही आप हमारे बड़े-से-बड़े आदमी को ले लीजिए. क्या उसकी वास्तविक उन्नति है?"

मामा को होम्योपैथी इलाज के बारे में समझाया

पंडित दीनदयाल पत्र के अंत में लिखते हैं कि "शेष कुशल है. कृपापत्र दीजिएगा. मेरा तो खयाल है कि देवी का एलोपैथिक इलाज बंद करवाकर होमियोपैथिक इलाज करवाइए. यदि आप देवी का पूरा वृत्त और बीमारी तथा संपूर्ण लक्षण भेजें तो यहाँ पर बहुत ही मशहूर होमियोपैथ हैं, उनसे पूछकर दवा लिख भेजूंगा. होमियोपैथ इलाज की यदि दवा लग गई तो बिना खतरे के इस प्रकार ठीक हो सकता. भाई साहब व भाभीजी को नमस्ते, देवी व महादेवी को स्नेह. पत्रोत्तर दीजिएगा. भाई साहब तो कभी पत्र लिखते ही नहीं."

आपका भांजा
( दीना )

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