Madhya Pradesh News: चम्बल अंचल में डाकू समस्या के चलते डकैतों द्वारा हत्या और अपहरण की घटनाओं से पीड़ित परिजनों को सरकार सरकारी नौकरी देती रही है. ग्वालियर-चम्बल और बुन्देलखण्ड अंचल के ऐसे सैकड़ों लोग शासकीय सेवा में हैं, जिन्हें दस्यु गैंग की प्रताड़ना के चलते नौकरी मिली, लेकिन अब इसका लाभ मिल पाना सम्भव नहीं होगा, क्योंकि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ ने इस मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने सरकार के इस नियम को कानूनी मानने से इनकार कर दिया.
याचिकाकर्ता ने शासकीय नौकरी की मांग की थी
एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ में अवधेश शर्मा नामक एक याची ने साल 2013 में एक याचिका दायर की थी. दायर याचिका में यह कहते हुए शासकीय नौकरी की मांग की थी कि वो दस्यु पीड़ित है. उन्होंने तर्क दिया था कि साल 1981 में डकैत गिरोह मनिया महावीर ने उसके दादा नरसिंह राव की नृशंस हत्या कर दी थी, जबकि उसके पिता राम नरेश शर्मा को राजू कुशवाह गैंग ने अगवा किया था, जिन्हें 3 जनवरी 1997 को फिरौती की रकम बसूलने के बाद रिहा किया था.
2012 में खारिज कर दिया गया था नौकरी का आवेदन
याचिका में बताया गया कि मध्य प्रदेश शासन के गृह और सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से 1972 और फिर 1985 में एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें डकैत पीड़ित परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात कही गयी. याची ने इस परिपत्र के आधार पर नौकरी हासिल कर चुके लोगों के नाम भी बताए. याची ने कहा कि इसके आधार पर उसने भिंड कलेक्टर के समक्ष नौकरी का आवेदन दिया, लेकिन उसे 2012 में खारिज कर दिया गया. इसके बाद उसने हाईकोर्ट की शरण ली.
सुनवाई के दौरान याची ने हरीश दीक्षित के केस का हवाला दिया, जिसमें दस्युपीड़ित परिवार को नौकरी दी गई थी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने शासन का पक्ष रखते हुए कहा कि जिस सर्कुलर का हवाला दिया जा रहा है, उसमें प्राथमिकता शब्द का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही याची ने किस विभाग के लिए आवेदन दिया इस बात का उल्लेख भी अपने आवेदन या याचिका में नहीं किया.
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डकैत पीड़ित को सरकारी नौकरी देने के मामले में कोर्ट ने क्या कहा?
फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने हरीश दीक्षित केस में नौकरी देने के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उस केस से जुड़े तथ्य एकदम अलग थे. साथ ही कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि डकैत पीड़ित को नौकरी देने का कोई कानून नहीं है. जिस परिपत्र को आधार बनाकर नौकरी के लिए याचिका लगाई गई है, उसमें भी प्राथमिकता देने की ही बात कही गयी है.
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