Bonefire Ban in Bhopal: भोपाल में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नगर निगम ने अलाव जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. दरअसल, यहां हर दूसरे दिन हवा की गुणवत्ता का स्तर (AQI) 300 के पार जा रहा है, जिससे शहर की स्थिति चिंताजनक हो गई है. महापौर मालती राय का कहना है कि प्रदूषण को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाना जरूरी है.
तंदूर और भठ्ठियों का इस्तेमाल जारी
सार्वजनिक स्थानों पर अलाव जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालांकि, होटल और रेस्टोरेंट के बाहर तंदूर और भट्टियां अब भी जल रही हैं. एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के निर्देशों के बावजूद इन पर रोक नहीं लग पाई है. पर्यावरणविद सुभाष पांडे का कहना है कि तंदूर और भट्टियों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसें स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है.
ठंड में अलाव की जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं
अलाव पर रोक के बावजूद नगर निगम ने सार्वजनिक स्थानों, रैन बसेरों, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर हीटर जैसी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है. भोपाल में ठंड के शुरुआती दिनों में ही तापमान 8.2 डिग्री सेल्सियस तक गिर चुका है. रैन बसेरों में कंबल और रजाई की व्यवस्था तो है, लेकिन इलेक्ट्रिक हीटर अब तक नहीं लगाए गए हैं. रैन बसेरा केयर टेकर अतहर खान ने बताया कि हर साल अलाव की व्यवस्था होती थी, लेकिन इस बार वैकल्पिक इंतजाम नहीं हैं.
सख्त कार्रवाई के लिए टास्क फोर्स का गठन
नगर निगम ने प्रदूषण कम करने और अलाव जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए रात में सुपरवाइजर, ड्राइवर और सहायक स्वास्थ्य अधिकारियों की टास्क फोर्स बनाई है. यह टीम कचरा, पत्तियां और अलाव जलाने पर नजर रखेगी. दोषी पाए जाने पर स्पॉट फाइन किया जाएगा. नगर निगम के कमिश्नर हरेंद्र नारायण के मुताबिक एनजीटी के निर्देशों के तहत तंदूर और भट्टियों पर रोक लगाने की कार्रवाई जारी है.
भोपाल की हवा की स्थिति अब भी खराब
नगर निगम ने 2020 से 2023 के बीच प्रदूषण नियंत्रण के लिए 178 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ है. प्रदूषण के कारण लोगों की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि तंदूर और भट्टियों पर सख्त प्रतिबंध नहीं लगाए गए और अलाव की जगह वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई, तो भोपाल की हवा की गुणवत्ता में सुधार मुश्किल होगा.
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भोपाल की हवा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अलाव पर प्रतिबंध जरूरी कदम है, लेकिन इसके साथ ही तंदूर भट्टियों के इस्तेमाल पर रोक और ठंड से बचने के वैकल्पिक उपायों की व्यवस्था भी उतनी ही आवश्यक है. आने वाले समय में प्रशासन की कार्रवाई और जनता का सहयोग ही शहर की हवा को सांस लेने योग्य बना सकेगा.
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