Bhopal Gas Tragedy: नवंबर महीना खत्म हुए दो ही दिन बीते थे. गहरे अंधेरे के साथ रातें सर्द होने लगी थीं. 2-3 दिसंबर की दरम्यानी रात जब लोग नींद के आगोश में थे तब कई लोगों को ये नहीं पता था कि वे सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे. भारतीय इतिहास में दिसंबर की इस तारीख को कोई नहीं भूल सकता. 1984 में भोपाल में हुई यह गैस लीक त्रासदी दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदा है. इसने न सिर्फ हजारों लोगों की जानें ली, बल्कि कईयों की जिंदगी उनके पैदा होने से पहले ही बर्बाद कर दी. जो गिर गया, वह उठ नहीं पाया. उस रात हर व्यक्ति की जुबान पर शायद एक ही बात थी कि भगवान उन्हें मौत दे दे. वजह साफ थी, क्योंकि पूरा इलाका गैस चैंबर बन चुका था. गला मानो किसी ने घोंट दिया था और आंखों के सामने अंधेरा मौत से भी भयंकर था.
Bhopal Chemical Gas Disaster Case 1984
— Sumit (@SumitHansd) September 25, 2023
On December 3 1984, more than 40 tons of methyl isocyanate gas leaked from a pesticide plant in Bhopal, Om Shanti, immediately killing at least 3,800 people and causing significant morbidity and premature death for many thousands more. pic.twitter.com/RIE3KMXPDj
ऐसी है दर्दनाक कहानी
भोपाल में यूनियन कार्बाइड लिमिटेड नाम की एक फैक्ट्री थी, जहां कीटनाशक दवाओं का निर्माण किया जाता था. फैक्ट्री स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया हुआ करती थी. हालांकि, किसी को जरा भी एहसास नहीं था कि यही संयंत्र दुनिया की सबसे विनाशकारी आपदाओं में से एक का केंद्र बन जाएगा.
4 दशक बाद भी ताजे हैं भोपाल गैस त्रासदी के जख्म, याद कर दहल जाता है दिल#BhopalGasTragedy pic.twitter.com/hQQGCKheK4
— NDTV India (@ndtvindia) December 3, 2024
गैस लीक होने से शहर घातक धुंध में गुम हो गया. गैस के बादल धीरे-धीरे नीचे आने लगे और शहर को अपनी जानलेवा परतों में घेरने लगे. जल्द ही सब कुछ तहस-नहस हो गया. पहाड़ियों और झीलों का शहर गैस चैंबर में बदल चुका था.
रात का सन्नाटा दहशत और चीखों से गूंज उठा
लोग आपदा से अंजान थे. जहरीली गैस खिड़की-दरवाजों से घरों में जाने लगी थी. एक के बाद एक लोग उस जहरीली गैस का शिकार बनने लगे. दम घुटने पर लोग घर से निकलने लगे, लेकिन फिर लोग लड़खड़ाकर गिरने लगे, उनकी सांसें थमने लगीं. ची-पुकार मच गई. आंखें दर्द से जल रही थीं और गला घुटता जा रहा था. देखते ही देखते रात का सन्नाटा दहशत और चीखों से गूंज उठा. अफरा-तफरी मच गई और कुछ ही घंटों में अस्पताल मरीजों से भर गए.
जो सड़कें कभी खेलते हुए बच्चों की हंसी से भरी रहती थीं, वे बेजान शरीरों से पटी हुई थीं, जो जहरीली गैस के शिकार हो चुके थे.
इस भयानक हादसे के बाद कारोबार-बाजार सब कुछ रुक गया. पर्यावरण प्रदूषित हो गया और पेड़-पौधों और जानवरों के साथ पारिस्थितिकी पर असर पड़ा. यह हादसा इतना भयानक था कि हेल्थकेयर, एडमिनिस्ट्रेशन और कानून के क्षेत्र में मौजूद सभी साधन कम पड़ गए.
गैस रिसाव के कारण लोगों का पलायन शुरू हो गया और वे ट्रेनों और बसों से भोपाल छोड़ने के लिए दौड़ पड़े. लोगों ने इस त्रासदी के बारे में अखबारों में पढ़ा और यह कई दिनों तक सुर्खियों में रही. त्रासदी के निशान सिर्फ शारीरिक नहीं थे. वे दिलोदिमाग पर हमेशा के लिए दर्द और पीड़ा की विरासत छोड़ गए. इस आपदा का विनाशकारी प्रभाव कई दशकों बाद भी बरकरार है.
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