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स्कूलों में 'दुकान' कब तक? भोपाल के कलेक्टर तो जागे दूसरे जिलों की नींद कब टूटेगी

मध्यप्रदेश के स्कूलों में नया सेशन शुरू होने वाला है लेकिन इसके पहले बच्चों से लेकर पेरेंट्स तक सब परेशान हैं.वे सवाल पूछ रहे हैं कि स्कूलों में चलने वाली 'दुकान'से ही यूनिफॉर्म और बुक्स वैगरहम खरीदने की मजबूरी कब तक?. दरअसल ये सवाल इसलिए फिर से उठ खड़ा हुआ है क्योंकि राजधानी भोपाल के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह ने आदेश दिया है कि कोई भी निजी स्कूल पैरेंट्स को स्कूल से ही सभी चीजें खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.

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स्कूलों में 'दुकान' कब तक? भोपाल के कलेक्टर तो जागे दूसरे जिलों की नींद कब टूटेगी

Madhya Pradesh School News: मध्यप्रदेश के स्कूलों में नया सेशन शुरू होने वाला है लेकिन इसके पहले बच्चों से लेकर पेरेंट्स तक सब परेशान हैं.वे सवाल पूछ रहे हैं कि स्कूलों में चलने वाली 'दुकान'से ही यूनिफॉर्म और बुक्स वैगरहम खरीदने की मजबूरी कब तक?. दरअसल ये सवाल इसलिए फिर से उठ खड़ा हुआ है क्योंकि राजधानी भोपाल के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह (Bhopal Collector Kaushalendra Vikram Singh)ने आदेश दिया है कि कोई भी निजी स्कूल पैरेंट्स को स्कूल से ही सभी चीजें खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. यदि ऐसी शिकायत पाई गई तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी. दरअसल ये नियम पहले से चला आ रहा है कि स्कूल पैरेंट्स और बच्चों को इसके लिए मजबूर नहीं कर सकते.कलेक्टर के आदेश से भोपाल के पैरेंट्स तो खुश है लेकिन प्रदेश के दूसरे कई जिलों में ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है.  जिसकी वजह से निजी स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं. 

बता दें कि अधिकांश जिलों में निजी स्कूलों ने बच्चों को स्कूल से ही नया यूनिफ़ॉर्म खरीदने के निर्देश दे रखे हैं. यहां पैरेंट्स किसी भी दुकान से सामान लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है ,वजह है निजी स्कूलों की ओर से तय दुकानों से ही कापी-किताबें और यूनिफार्म खरीदने का दबाव अभिभावकों पर बनाया जाने लगा है. ऐसी शिकायत जबलपुर, शिवपुरी, इंदौर, झाबुआ और श्योपुर से ही मिली है. आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि भोपाल के कलेक्टर ने जो आदेश जारी किया है उसमें क्या है? 

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भोपाल के कलेक्टर का आदेश साफ है लेकिन दूसरे जिलों में हालात ऐसे नहीं हैं. जबलपुर के पैरेंट्स इरशाद अंसारी के मुताबिक ये ये स्कूलों की दादागिरी है ,दो ड्रेस हर हफ्ते लगती है. वे कहते हैं कि जहां से कहा है वहीं से लाओ.एक ही दुकान पर स्कूल का लोगो दे दिया जाता है इसलिए मजबूरी में हमें वहीं से कपड़े लेने पड़ते हैं क्योंकि वो कहीं और से मिलता ही नहीं है. जो ड्रेस 250 रुपये की है वो 550 रुपये में लेनी पड़ती है. वे कहते हैं कि कलेक्टर के आदेश जारी होने से क्या होता है आदेश का पालन होना ही मुश्किल है. कुछ ऐसा ही हाल शिवपुरी का है. यहां तो एक स्कूल संचालक ही बड़े निजी स्कूलों की मनमानी पर सवाल उठाते हैं. शिवपुरी के स्कूल संचालक प्रदीप गुप्ता के मुताबिक बड़े निजी स्कूलों की मनमानी की वजह से माहौल बिगड़ता जा रहा है. दो पैसों की लालच में ये मनमानी करते हैं और परेशान आम लोग होते हैं. प्रदीप के मुताबिक इस पर तुंरत ही रोक लगनी चाहिए.किताब दुकान संचालक विमल जैन कहते हैं कि ज्यादातर  स्कूल अपने हिसाब से काम करते हैं लेकिन सरकार की गाइडलाइन के अनुसार हमेशा NCERT की किताबों को खरीदने के निर्देश हैं. इससे छात्र परेशान होते हैं.

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