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छत्तीसगढ़ की मिट्टी से एक बेटे ने संजो दी विरासत, 100 साल पुरानी है अनोखी मटपरई शिल्पकला

जहां लोग कलाओं को बस शौक समझते हैं, वहां अभिषेक मटपरई शिल्पकला को आत्मनिर्भरता का ज़रिया बनाया है. वो इस कला से हर महीने 20,000 से 25,000 रुपये तक की आय कर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की मिट्टी से एक बेटे ने संजो दी विरासत, 100 साल पुरानी है अनोखी मटपरई शिल्पकला

Chhattisgarh Crafts,  Matparai Craft Art: छत्तीसगढ़ की मटपरई शिल्पकला (Matparai Craft Art) आज की इस आधुनिक युग में विलुप्त होने के कगार पर है. यह छत्तीसगढ़ी कला 100 वर्षों से ज़्यादा पुरानी है. इस कला में मिट्टी और कागज को मिक्स कर  मूर्तियां बनाए जाते हैं. इसके द्वारा छत्तीसगढ़ी वेशभूषा, परंपरा और संस्कृति का जीवंत चित्रण किया जाता है. यह शिल्पकला वैसे तो छत्तीसगढ़ में विलुप्त हो चुका है. हालांकि इस कला को अभिषेक सपन जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं. अभिषेक सपन दुर्ग जिला के उतई नगर के रहने वाले हैं और उन्होंने बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स) की डिग्री हासिल की है. 

अभिषेक बताते हैं कि उनकी मां की दादी इस कलाकृति को बनाया करती थीं. घर में लगे मटपरई शिल्पकला को देख अक्सर अपनी मां से सवाल पूछते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी ये रुचि शिल्पकला में बदल गई. अभिषेक 13 वर्ष से अदिक समयसे इस कला को जीवंत करने के लिए मेहनत कर रहे हैं. 

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मिट्टी, कागज़ और यादों की गठजोड़ से बनी विरासत

“मट” यानी मिट्टी और “परई” यानी कागज़ दो साधारण चीज़ें, लेकिन जब इनका स्पर्श किसी सृजनशील मन से होता है, तो वो बन जाती हैं संस्कृति की प्रतिमा. यही मटपरई है... छत्तीसगढ़ की एक दुर्लभ शिल्पकला, जो न केवल कलाकार की भावनाओं को मूर्त रूप देती है, बल्कि उसमें समाहित होती हैं.... पीढ़ियों की स्मृतियां, रिवाज और लोकधुनें.

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अभिषेक बताते है, 'बचपन में मेरी मां की दादी के बनाए मटपरई शिल्प घर में सजे रहते थे. मैं उन्हें घंटों तक निहारता था... मां से सवाल करता था ये क्या है? कैसे बनता है? अभिषेक ने इस कला को जीवित करने के लिए यहीं से शुरुआत की.

डिग्री इन इंजीनियरिंग, लेकिन दिल में बसी माटी की कला

अभिषेक ने इलेक्ट्रॉनिक्स में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. आगे बढ़ने के लिए उनके पास नौकरी, करियर और शहर के सपने थे, लेकिन उनके अंदर का कलाकार उफन रहा था... मां की दादी की बनाई मटपरई मूर्तियां, जो सिर्फ़ सजावट नहीं थीं, बल्कि एक पहचान थीं. उन्होंने ठान लिया, 'मैं अपनी पढ़ाई को छोड़ नहीं रहा, बस अपनी विरासत को थाम रहा था'.

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13 वर्षों की तपस्या, मिट्टी में छिपी संस्कृति जीवित करने की यात्रा शुरू की

पिछले 13 वर्षों से अभिषेक लगातार इस कला को सीख रहे हैं. खुद से... अनुभव से और मिट्टी से. वो अब तक सैकड़ों मूर्तियां और सजावटी कलाकृतियां बना चुके हैं. छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वेशभूषा, लोकगाथाओं के पात्र, ग्रामीण जीवन की झलकियां… सब कुछ मटपरई में जीवित हो उठता है. एक मूर्ति को बनाने में 6 से 7 दिन लगते हैं और उसमें सिर्फ मेहनत नहीं, भावनाएं, परंपरा और समय भी घुलता हैं.

जब हर प्रदर्शनी में बजता है छत्तीसगढ़ का ढोल

छत्तीसगढ़ राज्योत्सव, आदिवासी महोत्सव, लोक कला प्रदर्शनी... जहां भी छत्तीसगढ़ी कला की बात होती है वहां अभिषेक अपने मटपरई शिल्प के साथ मौजूद रहते हैं.  उनकी कलाकृतियां अब न सिर्फ़ राज्य, बल्कि देशभर में सराही जाती हैं.

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कला को बनाया कमाई का जरिया

जहां लोग कलाओं को बस शौक समझते हैं, वहां अभिषेक ने इसे आत्मनिर्भरता का ज़रिया बनाया. वो इस कला से हर महीने 20,000 से 25,000 तक की आय कर रहे हैं और अब तक वो लगभग 5-7 लाख रुपये की कमाई कर चुके हैं, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी कमाई है- 'संस्कृति को जीवित करना'

अब अभिषेक शिक्षक, शिल्पकार और प्रेरणा भी हैं

अभिषेक अब इस कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. उन्होंने कई युवा कलाकारों को यह कला सिखाई है. खासकर ग्रामीण बच्चों में मटपरई के प्रति रुचि जगाई है. उनका सपना है “कल जब मैं न रहूं, तब भी कहीं किसी गांव के बच्चे के हाथ में मटपरई की मिट्टी हो और उसकी आंखों में अपने पूर्वजों की कहानी.”

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एक जिद... फिर कला क्रांति की हुई शुरुआत 

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में जो मिठास है... जो रंग है, जो अपनापन है वो मटपरई जैसी कलाओं में ही सहेजा जा सकता है. अभिषेक सपन सिर्फ़ एक कलाकार नहीं हैं, वो हमारी मिट्टी के इतिहास के रक्षक हैं. जब भी आप उनकी मूर्तियों को देखें, तो समझिए वो सिर्फ़ मिट्टी नहीं, मां की गोद, दादी की कहानी, और एक बेटे का संकल्प है.

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