Bhopal name history: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम बदलकर 'भोजपाल' करने की मांग ने एक बार फिर इस शहर के दिलचस्प इतिहास को चर्चा के केंद्र में ला दिया है. भोपाल के सांसद आलोक शर्मा ने जब यह मांग उठाई, तो यह सवाल भी खड़ा हुआ कि 'झीलों की नगरी' को उसका वर्तमान नाम 'भोपाल' आखिर कैसे मिला? शोध और ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, 'भोपाल' नाम किसी नए या बाहरी शासक द्वारा नहीं दिया गया, बल्कि यह शहर के प्राचीन और गौरवशाली नाम 'भोजपाल' का ही सदियों पुराना भाषाई रूपान्तरण है.
क्या है भोजपाल से भोपाल बनने का पूरा सफर
इतिहास के पन्नों में झाकें तो झीलों की नगरी भोपाल का मूल नाम भोजपाल ही है. इस शहर की स्थापना 11वीं शताब्दी में मालवा के महान परमार राजा भोज ने की थी.राजा भोज ने अपने राज्य की सुरक्षा और जल प्रबंधन के लिए यहां एक विशाल तटबंध या बांध का निर्माण करवाया था. बांध को ही यहां की प्राचीन भाषा में 'पाल' कहा जाता था. राजा के नाम (भोज) और इस विशाल बांध (पाल) को मिलाकर शहर का नाम 'भोजपाल' रखा गया, जिसका अर्थ है 'राजा भोज का बांध'.
नाम में आया बदलाव: भूपाल की थ्योरी
हालांकि इतिहास के कुछ जानकार बताते हैं कि जब राजा भोज के बाद गोंड शासकों का दौर आया, तो 18वीं सदी में यहां शासन करने वाले गोंड राजा भूपाल शाह के नाम पर भी इसका नाम 'भूपाल' पड़ा. हालांकि, यह थ्योरी भी भोजपाल से अपभ्रंशित होने की थ्योरी को कमजोर नहीं करती, बल्कि भाषाई रूप से 'भोजपाल' का 'भूपाल' बनना ज्यादा सहज माना जा सकता है. अंग्रेजी शासन के दौरान 1908 के इंपीरियल गैजेटियर में भी इस बात का जिक्र है कि भोपाल का नाम पूर्व में 'भोजपाल' था.
स्थायी नाम: भोपाल ऐसे पड़ा
ऐसा माना जाता है कि समय के साथ, स्थानीय बोलियों और उच्चारण की सहजता के चलते 'भोजपाल' (या 'भूपाल') शब्द का उच्चारण सरल होकर 'भोपाल' हो गया. यह परिवर्तन किसी आधिकारिक आदेश से नहीं, बल्कि आम जनमानस के बीच धीरे-धीरे हुआ. ऐसे में ये भी संभव है कि सांसद आलोक शर्मा ने इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आलोक में यह मांग उठाई है. उनका तर्क है कि चूंकि शहर का नाम पहले से ही राजा भोज के नाम से जुड़ा है, इसलिए इसे वापस इसके मूल स्वरूप 'भोजपाल' में लाकर शहर के प्राचीन गौरव और पहचान को पुनः स्थापित करना चाहिए.