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Independence Day 2024: जबलपुर के अंतिम जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का खास इंटरव्यू, आंदोलन की सुनिए कहानी

78th Indian Independence Day 2024: 10 वर्ष के स्कूल जाने वाले कोमलचंद ने जब यह जुलूस देखा, आजादी के नारे लगाते लोग तिरंगा फहरा रहे थे और आजादी का संकल्प दोहरा रहे थे. इसे देखकर नन्हे कोमल चंद का कोमल मन आजादी का दीवाना हो गया और जब 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया तो 12 वर्ष की उम्र में ही कोमलचंद जैन अपने दोनों भाइयों के साथ इस आंदोलन में कूद पड़े.

Independence Day 2024: जबलपुर के अंतिम जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का खास इंटरव्यू, आंदोलन की सुनिए कहानी

Happy Independence Day 2024: आजादी (Independence Day) का जुनून इतना था कि 12 वर्ष की उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (Freedom Movement) में कूद पड़े 1 वर्ष जेल में रहे और फिर आजादी का जश्न मनाया. ये कहानी है जबलपुर के अंतिम जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (Jabalpur's last Surviving Freedom Fighter) कोमलचंद जैन (Komal Jain) की, जिन्होंने स्वतंत्रता दिवस 2024 (Indian Independence Day 2024) के मौके पर एनडीटीवी (NDTV) से विशेष बातचीत की और बताया कि किस तरह वह आजादी के दीवाने हुए.

2024 Independence Day: जबलपुर के आखिरी जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

2024 Independence Day: जबलपुर के आखिरी जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
Photo Credit: संजीव चौधरी

10 वर्ष की उम्र से ही आजादी का जुनून सर चढ़कर बोलने लगा

1939 में जबलपुर में तेवर के पास त्रिपुरी कांग्रेस का ऐतिहासिक सम्मेलन संपन्न हुआ था. इस सम्मेलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के अधिकृत प्रत्याशी को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हराकर जीत हासिल की थी. कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वजह से इतिहास में अमर हो गया था. इस तीन दिवसीय अधिवेशन में नेताजी को हमेशा 100 डिग्री के ऊपर ही तेज बुखार था. इस अधिवेशन में जो-जो हुआ वह कांग्रेस में पहले कभी नहीं हुआ था. अधिवेशन में लाखों लोग पहुंचे थे. ये लाखों लोग कांग्रेस के सदस्य तो नहीं थे, लेकिन अपने दो महान नेताओं, महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी की एक झलक पाने के लिए आए थे. ये लोग पैदल, बैलगाड़ियों से पहुंचे थे. 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी की कुटी के आगे लाइन लगाए उनकी एक झलक पाने के लिए झूम रहे थे, नेताजी सुभाष चंद्र बोस  गंभीर रूप से बीमार थे और गांधी जी इस अधिवेशन में नहीं आ पाए थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में जबलपुर में 52 हाथियों का जुलूस निकाला गया, क्योंकि नेताजी इसमें शामिल नहीं हो पाए थे, इसलिए नेताजी की तस्वीर हाथी के ऊपर रखकर निकली गई, हजारों लोगों का समूह जुलूस में चल रहा था.
2024 Independence Day: हाथियों का जुलूस, जिस पर नेताजी की फोटो थी

2024 Independence Day: हाथियों का जुलूस, जिस पर नेताजी की फोटो थी
Photo Credit: संजीव चौधरी

जुलूस देखकर दीवाना हो गया नन्हा कोमलचंद

10 वर्ष के स्कूल जाने वाले कोमलचंद ने जब यह जुलूस देखा, आजादी के नारे लगाते लोग तिरंगा फहरा रहे थे और आजादी का संकल्प दोहरा रहे थे. इसे देखकर नन्हे कोमल चंद का कोमल मन आजादी का दीवाना हो गया और जब 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया तो 12 वर्ष की उम्र में ही कोमलचंद जैन अपने दोनों भाइयों के साथ इस आंदोलन में कूद पड़े.

कोमलचंद जैन एनडीटीवी को बताया कि हम लोग प्रदर्शन कर रहे थे तभी जबलपुर के गोरा बाजार क्षेत्र, जहां पर गोरे अंग्रेज निवास किया करते थे. वहां से पुलिस वालों का दल आ गया और घोड़े पर सवार इस दल ने निर्दयता पूर्वक आंदोलनकारियों को पीटना शुरू कर दिया. ना छोटे बच्चों को छोड़ा ना बुजुर्गों को सभी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. तब कोमलचंद भी 1 वर्ष तक जेल में रहे थे.
2024 Independence Day: जबलपुर के आखिरी जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवानी के दिनों में

2024 Independence Day: जबलपुर के आखिरी जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवानी के दिनों में
Photo Credit: संजीव चौधरी

जेल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ बिताया समय

कोमलचंद जैन बताते हैं कि जब उन्हें जेल में बंद कर दिया गया तो उनकी पढ़ाई छूटने लगी, लेकिन जेल में बंद द्वारका प्रसाद मिश्र, बाबू नेमीचंद जैन आदि ने उन्हें निरंतर पढ़ने के लिए प्रेरित किया और वह जेल में ही पढ़ते रहे. कोमल चंद जैन के छोटे भाई 10 वर्ष के बहुत छोटे थे, इसलिए उन्हें 6 माह की कैद के बाद छोड़ दिया गया, लेकिन बड़े भाई को लंबी कैद हुई. इनके पिता जो जबलपुर के जाने-माने व्यापारी थे, उनका सेरेमिक्स के घड़े और पाइप का व्यापार था.

आजादी का जश्न आज भी दिखता है आंखों में

कोमलचंद जैन बताते हैं कि जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली तब उसका जश्न हर गली हर मोहल्ला, हर गांव में मनाया गया. लोग सड़कों पर घूम रहे थे, खुशियां मना रहे थे, होली-दिवाली सभी साथ मनाई जा रही थी. वह जश्न आज भी हमारी आंखों में सामने दिख जाता है.

सैकड़ो सम्मान से नवाज़े गए हैं कोमलचंद जैन

स्वतंत्रता संग्राम संग्राम सेनानी, समाजसेवी कोमलचंद जैन को अभी तक 100 से ज्यादा सम्मान से सम्मानित किया गया है. 94 वर्ष की उम्र में अभी भी विभिन्न आयोजनों में शिरकत करते हैं और लोगों के साथ आजादी के किस्से साझा करते हैं.

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