78th Independence Day: इस समय पूरा देश स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2024) की तैयारियों में व्यस्त है और इस दिन होने वाले समारोह (Independence Day Celebration) में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन होता है ध्वजारोहण (Flag Hoisting) करना. इसमें दिल्ली के लाल किले (Red Fort Delhi) की प्राचीर के साथ ही देशभर में तिरंगा झंडा फहराया जाता है. देश के स्वाधीनता संग्राम में इस तिरंगे का बहुत बड़ा योगदान रहा है. स्वतंत्रता आंदोलन में इस ध्वज ने एक अस्त्र के रूप में काम किया. यही वजह रही कि स्वतंत्रता के पश्चात देश की संसद और संविधान ने इसे देश के राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) के रूप में अंगीकार किया. गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस देश इसे फहराकर ही राष्ट्रीय गौरव का अनुभव करता है और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की शपथ दोहराता है.
खास है ध्वज बनाने की प्रक्रिया
राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करने की प्रक्रिया ध्वज संहिता में वर्णित है. हर कोई इसका निर्माण नहीं कर सकता. सरकार ने देश की दो संस्थाओं को ही इसके निर्माण का अधिकार दिया है. ये संस्था ही देशभर में झंडे का निर्माण करके इनकी सप्लाई करने के लिए अधिकृत हैं. इनमें से एक है ग्वालियर की मध्य भारत खादी संघ. यह न केवल मध्य प्रदेश बल्कि उत्तर भारत में भी इकलौती संस्था है जहां राष्ट्रीय ध्वज बनाये जाते हैं. देश में स्वतंत्रता दिवस पर शासकीय और अशासकीय संस्थाओं पर जितने भी ध्वजारोहण होते हैं उनके लिए अधिकांश ध्वज ग्वालियर से ही बनकर जाते हैं. इस बार इस सोलह प्रदेशों में ग्वालियर में बनाये गए राष्ट्रीय ध्वज का ही ध्वजारोहण होगा. खास बात ये भी है कि इस बार इन राज्यों में दिल्ली भी शामिल है, जहां लाल किले की प्राचीर से ग्वालियर में निर्मित ध्वज ही फहराया जाएगा.
उत्तर भारत मे सिर्फ ग्वालियर में बनते हैं राष्ट्रीय ध्वज
मध्य भारत खादी संघ के संचालक अरुण सिंह तोमर कहते हैं कि हर ग्वालियरवासी ही नहीं बल्कि पूरे एमपी के लोगों के लिए यह गर्व की बात है कि जहां भी ध्वजारोहण होना होता है, वहां ऑर्डर देने की प्रक्रिया के साथ ही ग्वालियर का जिक्र जरूर होता है. इसके निर्माण की लंबी प्रक्रिया है जिसमें तय मानक का धागा तैयार करने से लेकर तिरंगे में डोरी लगाने तक का काम किया जाता है. आईएसआई स्टैंडर्ड के तिरंगे देश में कर्नाटक के हुगली और ग्वालियर के केंद्र में ही बनाए जाते हैं.
ध्वज बनने में लगते है पांच से छह दिन
मध्य भारत खादी संघ संस्था के मंत्री राजकुमार शर्मा बताते हैं कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है. इन दिनों हमारी यूनिट में 15 अगस्त के लिए राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जा रहे हैं. ऑर्डर इतने ज्यादा हैं कि पूरी यूनिट को इस समय रात और दिन यह काम करना पड़ रहा है. हालात ये है कि संस्था डिमांड के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज सप्लाई नहीं कर पा रही है, क्योंकि डिमांड के अनुसार निर्माण नहीं हो पा रहा है. बनाने में काफी समय लगता है क्योंकि इसके निर्माण को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है. शर्मा कहते हैं कि अब तक लगभग 6 हजार ध्वज तैयार करके हम भेज चुके हैं. अभी भी काम जारी है.
दर्जनों जांच से गुजरना पड़ता है
मध्यभारत खादी संघ की राष्ट्रीय ध्वज निर्माण यूनिट की प्रभारी नीलू बताती हैं कि ध्वज निर्माण की प्रक्रिया यहां बीते ढाई दशक से चल रही है. केंद्र सरकार से 2016 में हमे आईएसआई का दर्जा दिया. ध्वज निर्माण प्रक्रिया समझते हुए नीलू बताती हैं कि इसमें यार्न से लेकर फिनिश तक अनेक टेस्टिंग करनी पड़ती है. पहले यार्न की टेस्टिंग करते हैं. फिर बुनाई के बाद टेस्टिंग करवाते है. इसके बाद तीन कलर में इसकी डाई करवाई जाती है. स्टिचिंग के बाद भी डायमेंशन और कलर की मशीन के जरिये हर झंडे की कड़ी चेकिंग की जाती है कि ध्वज संहिता के सभी मानक पूरे रहें. बीस से पच्चीस तरह ले परीक्षण से गुजरने के बाद ही उसे आईएसआई टैग दिया जाता है. इसके बाद इसको कहीं भेजा जाता है.
इतने साइज के झंडे होते हैं तैयार
नीलू का कहना है कि अभी मध्य भारत खादी संघ ग्वालियर 9 से 10 साइज के राष्ट्रीय ध्वज निर्माण कर देश को उपलब्ध कराता है. लेकिन मुख्य डिमांड तीन साइज़ के ध्वजों की रहती है जिनका सबसे ज्यादा निर्माण हो रहा है. इनमें 2X3 से 6X4 तक के झंडे बनाए जा रहे हैं. ध्वजारोहण में सबके ज्यादा इन्हीं आकर वाले झंडों का उपयोग किया जाता है. सबसे छोटे आकार के ध्वज मंत्री या संवैधानिक व्यक्तित्व की कार में लगने वाले ध्वज होते हैं.
हर साल इतने ध्वज होते हैं तैयार
मध्य भारत खादी संघ के अध्यक्ष वासुदेव शर्मा का कहना है केंद्र में पहले एक साल में केवल 10 से 12 हजार झंडे तैयार होते थे लेकिन अब लगभग 20 से 23 हजार खादी के झंडे तैयार किए जाते हैं. खादी केंद्र के पदाधिकारी बताते हैं कि इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी. साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला. इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी रही हैं. उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं. यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग करनी पड़ती है.
सोलह राज्यों में फहराए जाएंगे ग्वालियर में बने राष्ट्रीय ध्वज
मध्य भारत खादी संघ के अध्यक्ष बताते हैं कि यहां बनने वाले तिरंगे मध्य प्रदेश के अलावा दिल्ली, बिहार, राजस्थान उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित 16 राज्यों में पहुंचाए जाते हैं, हमारे लिए गौरव की बात तो यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी की सभी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे की शान बढ़ाते हैं. साथ ही उनका कहना है कि यहां जो तिरंगे तैयार किए जाते हैं उसका धागा भी हाथों से इसी केंद्र में तैयार किया जाता है.
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