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7 सालों से नहीं बन पाया एक स्कूल ! अब खंडहर में कैसे पढ़ेंगे मासूम बच्चे ?

Education Crisis in MP: 7 साल बीतने को आ गए... एजेंसी की लापरवाही और  मनमानी के चलते स्कूल की ईमारत अब तक भी नहीं बन पाई है. इसका खामियाज़ा इलाके के गरीब आदिवासी बच्चों को भुगतना पड़ रहा है.

7 सालों से नहीं बन पाया एक स्कूल ! अब खंडहर में कैसे पढ़ेंगे मासूम बच्चे ?
7 सालों से नहीं बन पाया एक स्कूल ! अब खंडहर में कैसे पढ़ेंगे मासूम बच्चे ?

MP News in Hindi : एक तरफ मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में आज से नए शिक्षण सत्र (Education Session) की शुरुआत हो रही है. इस दौरान स्कूलों में प्रवेशोत्सव (Entrance Ceremony) मनाने की तैयारी भी चल रही है... तो वहीं, दूसरी तरफ डिंडौरी जिले में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय शहपुरा का हाल बदहाल है. क्योंकि इस स्कूल के गरीब आदिवासी बच्चे खंडहर हो चुके स्कूल में पढ़ने को मजबूर हैं. इसे लेकर NDTV की टीम ने स्कूल जाकर जमीनी हकीकत तलाशने की कोशिश की... तो NDTV की रिपोर्ट में पता चला कि बीते कई सालों से एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय का काम पूरा नहीं हो पाया है.

लापरवाही के चलते नहीं बना स्कूल

आलम ऐसा है कि 7 साल बीतने को आ गए... एजेंसी की लापरवाही और  मनमानी के चलते स्कूल की ईमारत अब तक भी नहीं बन पाई है. इसका खामियाज़ा इलाके के गरीब आदिवासी बच्चों को भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर प्रदेश में शिक्षा का स्तर ऐसा रहेगा तो देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का खुद का भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा? कहने को तो सरकारें आदिवासियों के विकास की खूब बात करती हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट है. यहां पर चल रही स्कूलों के पास अपने भवन ही नहीं है. कुछ इलाकों में यहां बच्चें खंडहर में पढ़ने को मजबूर हैं.

आधे-अधूरे स्कूल का हुआ उद्घाटन

करीब 7 साल पहले सरकार ने पीआईयू विभाग को करीब पचास करोड़ रूपये राशि जारी की थी... जिसे एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय और छात्रावास की ईमारत को बनाने में इस्तेमाल किया जाना था. टेंडर के मुताबिक इस स्कूल को 4 सालों में बनकर तैयार होना था... लेकिन 7 सालों के बाद भी स्कूल का काम अधूरा है. विधानसभा चुनावों से पहले वाहवाही लूटने के लिए शहपुरा विधायक ओमप्रकाश धुर्वे ने आधे-अधूरे स्कूल का उद्घाटन कर दिया था.

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इलाके के लोगों को शिक्षा की उम्मीद

इस स्कूल और आसपास की सड़क के लिए एक एकड़ भूमि दान करने वाले किशन झारिया ने NDTV को बताया कि जब उनके गांव में स्कूल का काम शुरू हुआ था तब वे बेहद खुश थे की उनके गांव के बच्चे इस स्कूल में पढ़ेंगे लेकिन सात साल का लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं... इस स्कूल में अब तक क्लास भी शुरू नहीं हो पाई हैं. इमरात की दीवारों में दरारों ने जगह बना ली है. स्कूल के कीमती फर्नीचर कबाड़ में तब्दील होते जा रहे हैं.

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