Education Crisis in MP: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में शिक्षा (Education) का हाल बदहाल है. आलम ऐसा है कि यहां पर पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों मौजूद हैं... लेकिन स्कूल चलाने के लिए न कोई इमरात हैं न कोई सुविधा. NDTV की टीम जब इस बात का ज़याज़ा लेने के लिए मध्य प्रदेश के बड़वानी जिला पहुंचीं तो ग्राउंड जीरो पर जो देखने को मिला वो बेहद ही चौंकाने वाला था. ब्लॉक में कई जगहों पर स्कूल झोपड़ी में चल रहे हैं. तो कुछ स्कूल किराए के भवन में चल रहे थे. इतना ही नहीं कई तो लापरवाही का ऐसा आलम था कि स्कूल के निर्माण को बरसों बीत जाने के बाद भी बच्चों को छत तक नसीब नहीं थी. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर प्रदेश में शिक्षा का स्तर ऐसा रहेगा तो देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का खुद का भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा?
बड़वानी में प्रशासन के वादों की हकीकत
NDTV की टीम ने बड़वानी जिले के पाटी ब्लॉक के स्कूलों की हकीकत जानने पहुंची. पाटी ब्लॉक की ग्राम पंचायत चेरवी एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं. कहने को तो सरकारें आदिवासियों के विकास की खूब बात करती हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट है. यहां पर चल रही स्कूलों के पास अपने भवन ही नहीं है. कुछ इलाकों में यहां बच्चें टीले पर झोपड़ीनुमा स्कूल में पढ़ने को मजबूर हैं. बताया जाता है कि साल 2010 में एक जबरदस्त बाढ़ में यहां का स्कूल भवन बह गया तब से ये स्कूल झोपड़ी में ही लग रहा है... जबकि शिक्षक और रहवासियों ने स्कूल भवन के लिए कई बार अधिकारियों से आवेदन-निवेदन किया और गुहार लगाई लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई.और करीब 14 सालों से इसका काम अधूरा है.
देखिए दम तोड़ती शिक्षा व्यवस्था की तस्वीरें
जानकारी के लिए बता दें कि इन स्कूलों के टीचर सारी बाधाएं पर कर इस आदिवासी क्षेत्र में पहुंचते हैं. इन टीचरों का मानना है कि हम थोड़ी सी तकलीफ उठा लेंगे तो चलेगा, लेकिन इन आदिवासी बच्चों का भविष्य सुधार जाएगा.
झोपड़ी में पढ़ेंगे बच्चे तो कैसे होगा विकास?
ऐसा हाल ज़िले के एक या दो इलाकों का नहीं हैं बल्कि सगबारा मथमाल, मेंढकी माल और बोरकुंड ग्राम पंचायत चेरवी, ग्राम पंचायत पिपरकुण्ड का कंजानिया फलिया , वन ग्राम का गायघाट और भादल का भी कमोबेश यही हाल है. यहां भादल में भवन तो है लेकिन जर्जर होने से यहां अब स्कूल नहीं लगती. यहां शिक्षकों को भी बच्चों की जान का खतरा होने के चलते वो भी निजी भवनों में स्कूल चलाने को मजबूर है. बता दें कि बड़वानी जिला आदिवासी बहुल जिला है. सरकार इन जिलों में योजना बना कर आदिवासियों के उत्थान के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही है लेकिन जमीन पर इन पैसों का सही इस्तेमाल होता नहीं दिख रहा है.
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गांव के लोगों को प्रशासन से मदद की दरकार
ज़िले के एक निवासी दिनेश अलावा ने बताया कि जो स्कूल लग रही है वह एक निजी मकान में लगती है और वह भी काफी छोटा है. फिलहाल उस मकान में घास भर दी गई है. ऐसे में अब टीचर को दूसरे मकान तलाशना पड़ेगा. हमने सरकार से कई बार मांग की है कि हमारे स्कूल भवन और आंगनबाड़ी भवन बनाया जाए ताकि हमारे यहां के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके. डोलरा के रहने वाले सुगरिया ने भी बताया कि हमारे गांव में स्कूल भवन तो बना है लेकिन उस भवन पर छत नहीं है इसीलिए यहां पर एक निजी मकान में स्कूल लगाई जा रही है. उन्होंने बताया कि टीचर भी यहां डेली आते हैं और हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं.
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