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जानिए तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है? माता तुलसी ने भगवान विष्णु को क्यों दिया था ये श्राप 

दिवाली (Diwali) के ठीक 10 दिन बाद देवउठनी एकादशी या देवउठनी ग्यारस (Devuthni Gyaras) का व्रत रखा जाता है. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) योगनिद्रा से जागते हैं और इसके बाद उनका विवाह तुलसी के साथ कराया जाता है. इस साल तुलसी विवाह 24 नवंबर को है. तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) कराने से विवाह और धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है.

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जानिए तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है? माता तुलसी ने भगवान विष्णु को क्यों दिया था ये श्राप 

Tulsi Vivah : दिवाली (Diwali) के ठीक 10 दिन बाद देवउठनी एकादशी या देवउठनी ग्यारस (Devuthni Gyaras) का व्रत रखा जाता है. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) योगनिद्रा से जागते हैं और इसके बाद उनका विवाह तुलसी के साथ कराया जाता है. इस साल तुलसी विवाह 24 नवंबर को है. तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) कराने से विवाह और धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं तुलसी विवाह से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में...

मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन महिलाएं घाट पर नहाने के बाद विधि-विधान से तुलसी (Tulsi) की शादी शालिग्राम से करती है. आइये जानते है कौन थे शालिग्राम..

भगवान विष्णु ने तुलसी से प्रसन्न होकर दिया था वरदान

पुराणों में लिखा है कि माता तुलसी के पति जालंधर बहुत अत्याचारी थे. संसार के लोग भी जालंधर के अत्याचार से त्रस्त थे. यहाँ तक कि विष्णु भगवान को भी जलांधर ने ललकार कर युद्ध किया था. भगवान विष्णु ने तुलसी से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था. जब तक तुम मेरी पूजा में लिप्त रहोगी तब तक तुम्हारे पति को कोई नहीं मार सकता. जब कभी भी जालंधर युद्ध भर जाता था तो तुलसी भगवान विष्णु की पूजा करने लगती थी और मजबूरन भगवान विष्णु को तुलसी की पूजा को सफल बनाना पड़ता था फिर एक दिन भगवान शिव ने कहा कि ऐसे ही होता रहा तो ये अत्याचारी जालंधर पूरे संसार पर राज करने लगेगा..

भगवान विष्णु ने बनाई थी योजना

उसके बाद भगवान शिव ने विष्णु जी से कहा कि जब जलांधर युद्ध पर जाए तो हम उसका रूप लेकर तुलसी के पास जाएं तो वह पूजा नहीं करेगी, उसी समय मैं उसका वध कर दूँगा. फिर जैसे ही जलांधर युद्ध पर गया उसी समय विष्णु जी उसका रूप रखकर उसके पास गए. तुलसी से प्रेम करने लगे और उनका पवित्रता का व्रत तोड़ दिया. इससे जलांधर की शक्ति क्षीण हो गई हो और भगवान शिव ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. सर धड़ से अलग होने के बाद वह तुलसी की गोद में गिर गया और धड़ से आवाज आई कि तुलसी तेरे साथ छल हुआ है ये वही है जिसकी तू पूजा करती थी उसी ने ऐसा किया है.

तुलसी ने दिया था भगवान विष्णु को श्राप

इसके बाद भगवान विष्णु अपने असली रूप में आ गए जिससे तुलसी को गहरा आघात पहुँचा और कहा भगवान मैं बचपन से आपको पूजती आ रही हूँ. अपने ऐसा छल क्यों किया? उसी समय तुलसी ने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि आपने मेरी भावनाओं की क़दर नहीं की और पत्थर की तरह व्यवहार किया इसलिए आप भी पत्थर के हो जाओगे..

तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा : विष्णु भगवान

इस श्राप से पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया. समस्त देवता त्राहि-त्राहि पुकारने लगे. तब माता लक्ष्मी ने तुलसी के चरण पकड़कर प्रार्थना की, तब तुलसी ने जगत कल्याण के लिए अपना श्राप वापस ले लिया और खुद जलांधर के साथ सती हो गई. खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए विष्णु जी ने कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करूँगा. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा. कार्तिक महीने में तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है और देव उठनी एकादशी के दिन को तुलसी विवाह के रूप में पूरे भारत देश में मनाया जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष व लोक मान्यताओं पर आधारित है. इस खबर में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता के लिए NDTV किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी या दावा नहीं करता है.)

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