
Mother's Day 2025: दुनिया भर में मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है. इस साल 11 मई को दूसरा रविवार पड़ रहा है इसलिए संडे 11 मई को मदर्स डे की धूम देखने को मिल रही है. कहा जाता है कि मां का हमारे जीवन में इतना बड़ा योगदान है कि हम उनको एक दिन या दिवस में समेट नहीं सकते हैं लेकिन फिर भी मां के अतुलनीय योगदान और अद्वितीय समर्पण के लिए उनका धन्यवाद कहने के लिए साल में एक दिन तय किया गया है और उस दिन का मातृ दिवस या मदर्स डे के नाम पर जाना है. मदर्स डे दुनिया भर में मनाया जाता है, लेकिन तारीख और परंपराएं अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती हैं. इस साल 11 मई को मदर्स डे मनाया जाता है. इस दिन मां के सम्मान की बात की जाती है और इस दिन लोग अपनी मां को फूल, गिफ्ट, कार्ड और प्यार भरे तोहफ़े देकर उनकी सराहना करते हैं.आइए इस खास दिवस के मौके पर हम आपको महान रचनाकारों की मां से जुड़ी रचनाओं से रूबरू कराते हैं.

Mother's Day 2025: मां से मैं. हैप्पी मदर्स डे
Photo Credit: Ajay Kumar Patel
पहले जानिए मदर्स डे का इतिहास / Mother's Day History
ऐसा कहा जाता है कि मदर्स डे का इतिहास प्राचीन यूनानियों व रोमनों दौर से चलता आ रही है. यूनानी और रोमन मातृ देवी रिया और साइबेले को सम्मान देने के लिए एक त्योहार का आयोजिन करते थे. जिसे मदरिंग संडे (Mothering Sunday) के नाम से जाना जाता है.
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में मदर्स डे की शुरुआत के बारे में कहा जाता है कि जूलिया वार्ड होवे की कोशिशों से यहां यह दिवस मनाया जाने लगा. उन्होंने 1870 में "मदर्स डे उद्घोषणा" लिखी थी. जिसमें महिलाओं से शांति और निरस्त्रीकरण के लिए एकजुट होने का आह्वान किया गया था.
मदर्स डे कैसे मना सकते हैं / How to celebrate Mother's Day
मदर्स डे पर आप मां के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं. मां की पसंद के फूल, उनके लिए कार्ड, चॉकलेट, जूलरी (ज्वेलरी) या कुछ खास चीजें गिफ्ट (Mothers Day Gifts) में दे सकते हैं. मदर्स डे पर शानदार डिनर प्लान कर सकते हैं, पूल पार्टी या अन्य खास थीम की पार्टी का आयोजन कर सकते हैं. इसके अलावा अपनी प्यारी मां के पिकनिक या कोई ट्रिप प्लान कर सकते हैं. वहीं जिनकी मां अब दुनिया में नहीं हैं वे इस खास दिन पर अपनी दिवंगत मां को याद करने के लिए उनके नाम पर कही दान या समाजसेवा का कार्य कर सकते हैं. मदर्स डे पर आप मां का हेल्थ चेकअप भी करा सकते हैं.
ये रहे मां को लेकर प्रमुख श्लोक

Mother's Day 2025: मां से जुड़े श्लोक
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नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः,
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया.
( माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है. माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है.)

Mother's Day 2025: मां से जुड़े श्लोक
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नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः,
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा.
(माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं. माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं.)

Mother's Day 2025: मां से जुड़े श्लोक
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अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामःमातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः
(जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा.)
मां पर प्रमुख रचनाकारों की रचनाएं

Mother's Day 2025: मां से जुड़ी रचनाएं
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आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया,
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया.
उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है,
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है.
माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है,
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है.
लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है,
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है.
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोयी है,
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोयी है.
कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आँचल में छुपाया है,
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है.
माँ के चरणो में मुझको जन्नत नजर आती है,
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है.
-हरिवंश राय बच्चन

Mother's Day 2025: मां से जुड़ी रचनाएं
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मां…मां-मां संवेदना है, भावना है अहसास है
मां…मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
मां…मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है
मां…मां मरूस्थल में नदी या मीठा सा झरना है,
मां…मां लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
मां…मां पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
मां…मां आंखों का सिसकता हुआ किनारा है,
मां…मां गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
मां…मां झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
मां…मां मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
मां…मां कलम है, दवात है, स्याही है,
मां…मां परमात्मा की स्वयं एक गवाही है,
मां…मां त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
मां…मां फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है,
मां…मां अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
मां…मां जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
मां…मां चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
मां…मां काशी है, काबा है और चारों धाम है,
मां…मां चिंता है, याद है, हिचकी है,
मां…मां बच्चे की चोट पर सिसकी है,
मां…मां चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
मां…मां ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है,
मां…मां पृथ्वी है, जगत है, धुरी है,
मां बिना इस सृष्टी की कल्पना अधूरी है,
तो मां की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नहीं है…
…और मां का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो मां का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और मां जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
-ओम व्यास

Mother's Day 2025: मां से जुड़ी रचनाएं
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बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां.
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे,
आधी सोई, आधी जागी, थकी दुपहरी जैसी मां.
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी मां.
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिनभर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां.
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गईं ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां.
- निदा फ़ाज़ली

Mother's Day 2025: मां से जुड़ी रचनाएं
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चलती फिरती आंखों से अज़ां देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है.
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है.
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना.
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं.
- मुनव्वर राणा
कितना कूड़ा करता है पीपल आंगन में,
मां को दिन में दो बार बोहारी करनी पड़ती है.
कैसे-कैसे दोस्त-यार आते हैं इसके
खाने को ये पीपलियां देता है.
सारा दिन शाखों पर बैठे तोते-घुग्घू,
आधा खाते, आधा वहीं जाया करते हैं.
गिटक-गिटक सब आंगन में ही फेंक के जाते हैं.
एक डाल पर चिड़ियों ने भी घर बांधे हैं,
तिनके उड़ते रहते हैं आंगन में दिनभर.
एक गिलहरी भोर से लेकर सांझ तलक
जाने क्या उजलत रहती है.
दौड़-दौड़ कर दसियों बार ही सारी शाखें घूम आती है.
चील कभी ऊपर की डाली पर बैठी, बौराई-सी,
अपने-आप से बातें करती रहती है.
आस-पड़ोस से झपटी-लूटी हड्डी-मांस की बोटी भी कमबख़्त ये कव्वे,
पीपल ही की डाल पे बैठ के खाते हैं.
ऊपर से कहते हैं पीपल, पक्का ब्राह्मण है.
हुश-हुश करती है मां, तो ये मांसखोर सब,
काएं-काएं उस पर ही फेंक के उड़ जाते हैं,
फिर भी जाने क्यों! मां कहती है-आ कागा
मेरे श्राद्ध पे अइयो, तू अवश्य अइयो.
- गुलज़ार
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