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आदिवासी बालिका बसंती को है आर्थिक मदद की दरकार, ताकि वह चढ़ सके पहाड़

पुष्पराजगढ़ जनपद के तहत आने वाले गांव मेढाखार में किसान श्रमिक दंपत्तियों के घर में पली बढ़ी बसंती देवी अपने मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान सरकारी खर्च पर पर्वतारोही की ट्रेनिंग लेने लगी. बालिका की कुशलता को देखते हुए उसे मनाली ट्रेनिंग कैम्प भेजा गया, जिसे बीएमसी कहा जाता है.

आदिवासी बालिका बसंती को है आर्थिक मदद की दरकार, ताकि वह चढ़ सके पहाड़

Story of Basanti Devi Mountaineer: आदिवासी अंचल के ग्राम मेढाखार में मरावी परिवार में जन्म लेने वाली बसंती देवी पर्वतारोही की दक्षता पूरी ट्रेनिंग का दो दौर सहजता से पूरी कर प्रथम स्थान पूर्व में ही हासिल कर लिया था. अब अंतिम दौर की ट्रेनिंग के लिए आर्थिक अभाव बाधा बना हुआ है. इसका आवेदन ऑनलाइन माध्यम से आगामी 16 तारीख को भरा जाना है, लेकिन बसंती देवी और उसके माता-पिता पैसे के अभाव में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं और नेताओं से मदद की गुहार लगा रहे हैं, जिसमें महज आश्वासन ही अब तक मिल पाया है.

जिले के पुष्पराजगढ़ जनपद के तहत आने वाले गांव मेढाखार में किसान श्रमिक दंपत्तियों के घर में पली बढ़ी बसंती देवी अपने मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान सरकारी खर्च पर पर्वतारोही की ट्रेनिंग लेने लगी. बालिका की कुशलता को देखते हुए उसे मनाली ट्रेनिंग कैम्प भेजा गया, जिसे बीएमसी कहा जाता है. वहां सफलता पूर्वक अपनी दक्षता दिखा कर उसने वर्ष 2023 में प्रथम स्थान अर्जित किया. उसके बाद वर्ष 2024 में एएमसी की ट्रेनिंग में भी अव्वल रही. वहीं, वर्ष 2025 में होने वाली एमओआई ट्रेनिंग के लिए आर्थिक कमी बाधा बनी हुई है. बसंती के पिता शहडोल लोकसभा की सांसद हिमाद्री सिंह व पुष्पराजगढ़ विधायक फुन्देलाल सिंह से आर्थिक सहायता की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक कुछ न हो पाने से व्यथित दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसे में जिला प्रशासन एक उम्मीद के तौर पर नजर आता है.

बसंती देवी का सफर

सुदूर क्षेत्र में पड़ने वाली ग्राम पंचायत मेढाखार की रहने वाली बसंती देवी शुरू से ही प्रतिभावान रही है. प्राथमिक शिक्षा अपने गांव में लेने के बाद राजेन्द्रग्राम छात्रावास से आगे की पढ़ाई जारी रखी. वहीं, माध्यमिक शिक्षा पश्चात शहडोल के एकलव्य आवासीय विद्यालय में इसका चयन हो गया. जहां बसंती ने आगे की पढ़ाई के दौरान पर्वतारोही की ट्रेनिंग शासकीय खर्च पर की है, जहां इसने अपनी प्रतिभा का लोहा सभी को मनवाया है, चूंकि बसंती देवी 12वीं उत्तीर्ण कर कॉलेज में पहुंच गई हैं. ऐसे में स्कूल प्रबंधन आर्थिक मदद नहीं दे पा रहा है. वहीं, कॉलेज प्रशासन इस प्रतिभा से अंजान बना हुआ है. आगामी 16 अगस्त को एमओआई ट्रेनिंग जिसे अंतिम ट्रेनिंग भी कहते हैं. इसका आवेदन किया जाना है, लेकिन आर्थिक अभाव बसंती की राह का रोड़ा बनता दिखाई पड़ रहा है.

माता-पिता की स्थिति

पुष्पराजगढ़ अंचल के रहने वाले किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है. बेहद सीमित आय में ये अपना जीवन निर्वहन करते हैं. ऐसे में बसंती देवी के माता-पिता किसान श्रमिक हैं, जिससे उनकी आर्थिक आय का सहज ही आकलन लगाया जा सकता है. कच्चे घर में रहने वाले इस दंपती की 3 संतानें हैं, जो बालिकाएं हैं. ये तीनों बच्चियां प्रतिभा की धनी हैं. बड़ी बेटी बसंती के बाद की दोनों बेटियां नवोदय विद्यालय और एकलव्य विद्यालयों में चयनित होकर अध्ययनरत हैं. खास बात ये है कि माता-पिता बच्चों को अभाव ग्रस्त जीवन के बाद पढ़ाई के प्रति समर्पण की भावना को दिखाई, जिसका नतीजा बसंती देवी के पर्वतारोही बनने जैसा सफर में दिखाई देता है.

अभाव ग्रस्त जीवन व सफलता

बसंती देवी मरावी जिस घर में जन्मी वह कच्चा मकान होने के साथ-साथ टूटा-फूटा भी है. आने जाने का रास्ता पथरीला और कीचड़ से भरा हुआ है. उनके घर में पीने के पानी की भी उचित व्यवस्था नहीं है. बिजली के तार तो लगे हुए हैं, लेकिन रौशनी  कभी-कभी ही होता है. इन सब अभाव के साथ अपने घर के पीछे खड़े पहाड़ पर चढ़ना-उतरना उनकी दिनचर्या और मजबूरी रही. यही कार्य उसकी सफलता की पहली सीढ़ी भी बन गया. बसंती देवी 16 हजार 500 फीट के पहाड़ को चढने वाले दल में पहला स्थान बना चुकी है. अब इससे ज्यादा की पढ़ाई सफलतापूर्वक कर वह नया आयाम लिख सकती है, लेकिन आर्थिक अभाव वर्तमान में बाधा डाल रहा है.

मदद के बिना सपना अधूरा

बसंती देवी मरावी और उसके परिजनों की आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसे में बिना मदद बसंती का पर्वतारोही बनने का सपना अधूरा है और वह कभी भी टूट सकता है. यही वजह रही कि इनके पिता गलीराम सिंह सांसद हिमाद्री सिंह और विधायक फुन्देलाल सिंह से मदद कर गुहार लगा चुके हैं, जहां इन्हें निराशा हाथ लगी. इसके अलावा, जिला प्रशासन से भी मदद मांगने बसंती का परिवार गया था, लेकिन मदद का इंतजार कर रहे इस परिवार की आर्थिक हालत अब भी बदतर है. अब देखना यह होगा कि आगामी समय पर शासन-प्रशासन या आमजन सहयोग को आगे आते हैं, या बसंती का सफलता वाला यह सफर विराम ले लेगा. 

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