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Know Your State: कहीं गुमनाम-सी हो चली है...अकबर के नौ-रत्नों में से एक मुल्ला-दो प्याज़ा की मज़ार! 

कहा जाता है कि अब्दुलगुल ने इसी नर्मदा तट पर आकर खुदा की ईबादत-गाह बनाई. वह पांच वक्त की नमाज़ अदा करते थे. वह दीन-दुखियों की सेवा करते थे. मुल्ला दो प्याज़ा की मज़ार के खादीम आशिक अली ने हमसे बात की. उन्होंने बताया, "पिछली 5 पीढ़ियों से हमारा परिवार मज़ार की खिदमत में लगा हुआ है!ब्रिटिश गवर्नमेंट की सरपरस्ती में हमें 42, रूपये 15 आने मिलते थे! मगर अब वह भी बऺद हो गए हैं."

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Know Your State: कहीं गुमनाम-सी हो चली है...अकबर के नौ-रत्नों में से एक मुल्ला-दो प्याज़ा की मज़ार! 
कहीं गुमनाम-सी हो चली है...अकबर के नौ-रत्नों में से एक मुल्ला-दो प्याज़ा की मज़ार!

MP Know Your State: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में एक ऐसी पुरातत्वीय धरोहर भी है जो कहीं गुमनामी के अंधेरों में समा गई हैं. यूं तो अकबर के नौ-रत्नों में बीरबल, तानसेन और टोडर मल के नाम ज़्यादा मशहूर है...लेकिन इसमें एक नाम मुल्ला-दो प्याज़ा (1527-1620) का नाम भी शुमार है, जिन्हें खूब शोहरत मिली. इससे पहले हम आपको बताएं कि मुल्ला-दो प्याजा की कहानी है क्या? उससे पहले बता दें कि मुग़ल शासनकाल में बादशाह अकबर का कार्यकाल सन 1556 से 1605 तक रहा. इसी दरमियान मुल्ला दो-प्याजा बादशाह अकबर के सलाहकार के तौर पर रहे. अकबर के दरबार में ये बेहद मशहूर थे. इन्हें बीरबल की टक्कर में माना जाता था. 

अकबर के दरबार में मिली बेतहाशा शोहरत 

सन 1620 में मुल्ला-दो प्याजा ने दुनिया को अलविदा कहा था. उनकी मज़ार हरदा जिले कि हंडिया तहसील में नर्मदा किनारे पर बनी हुई है. मुल्ला दो प्याजा का असली नाम अब्दुलगुल हसन था. वह अरब देश के रहने वाले थे. वह हुमायूं के शासन काल में भारत आए थे. बादशाह अकबर ने मुल्ला दो प्याज़ा की कड़ी मेहनत और लगन देखकर उन्हें शाही मुर्गे खाने व पुस्तकालय की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी. बताया जाता है कि हसन की आवाज़ बहुत शानदार थी. यही वजह रही कि दरबार में सब उनके कायल थे. 

आखिर कैसे पड़ा 'मुल्ला दो प्याज़ा' का नाम 

एक बार अब्दुलगुल हसन एक शाही दावत में गए. वहां पर उन्हें एक गोश्त काफी लज़ीज़ लगा. इस गोश्त का नाम था 'मुर्ग़ दो प्याज़ा'...हसन को यह इतना पसंद आया कि वह जिस भी दावत में जाते उनके लिए इस व्यंजन को खासतौर से पेश किया जाता. इसी कड़ी में एक दिन हसन के कहने पर बादशाह अकबर ने भी इसे चखा. इसे चखने के बाद अकबर भी हसन के दीवाने हो गए और हसन का नाम 'मुल्ला दो प्याज़ा' पड़ गया. मुल्ला दो प्याज़ा दरबार में लंबे समय तक अकबर की खिदमत में लगे रहे. 

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मज़ार की खिदमत करने वालों ने क्या बताया? 

कहा जाता है कि अब्दुलगुल ने इसी नर्मदा तट पर आकर खुदा की ईबादत-गाह बनाई. वह पांच वक्त की नमाज़ अदा करते थे. वह दीन-दुखियों की सेवा करते थे. मुल्ला दो प्याज़ा की मज़ार के खादीम आशिक अली ने हमसे बात की. उन्होंने बताया, "पिछली 5 पीढ़ियों से हमारा परिवार मज़ार की खिदमत में लगा हुआ है!ब्रिटिश गवर्नमेंट की सरपरस्ती में हमें 42, रूपये 15 आने मिलते थे! मगर अब वह भी बऺद हो गए हैं. मज़ार के आसपास बाउंड्री बनवाई गई है लेकिन यहां पर दरवाजा नहीं है. जिसके चलते मवेशी जानवर अंदर घुस जाते हैं और मज़ार के पास लगे पेड़ों को खराब कर देते हैं." 

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