
Darkness in the Energy Capital of Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में चुनाव समाप्त (Assembly Elections 2023) हो चुके हैं. चुनावी प्रचार के दौरान सरकार (Madhya Pradesh Government) ने प्रदेश में विकास के कई दावे किए, स्वयं सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य से विकसित राज्य बनाने का दावा किया. लेकिन, प्रदेश के कुछ इलाके आज भी वैसे ही हैं जैसे आजादी के समय पर थे. ये इलाके सरकार के दावों की पोल खोलते हैं. आजादी के बाद प्रदेश में कई सरकारें रहीं, लेकिन इन इलाकों की किस्मत वैसी की वैसी ही रही. ना तो इनकी सुध किसी सरकारी महकमे ने ली और ना ही किसी नेता ने.
हम बात कर रहे हैं भारत के सबसे बड़े पावर हब सिंगरौली (Power Hub Singrauli) की. वैसे तो सिंगरौली मध्य प्रदेश की ऊर्जा राजधानी (Energy Capital) भी है, लेकिन विडंबना ये है कि जो इलाका देश-विदेश में रोशनी फैलाता है वह अपने ही लोगों तक रोशनी नहीं पहुंचा पा रहा है. इस इलाके के आसपास 5 पावर प्लांट मौजूद हैं, लेकिन आजादी के 76 साल बाद भी सिंगरौली जिले के कई गांव बिजली के बिना गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. वहीं इस मामले में जिम्मेदार सिर्फ आश्वासन देते हुए नजर आ रहे है.
लकड़ी का आग के सहारे कटती है रात
सिंगरौली जिला मुख्यालय से 24 किमी दूर एक ऐसा ही गांव है गोभा. गोभा गांव के लोग आज भी बिजली के बगैर जीने को मजबूर हैं. यहां के लोग लकड़ी की आग के सहारे रात काट लेते हैं. इस गांव में कई टोले हैं, जहां करीब 1500 के आसपास लोग रहते हैं. इनमें ज्यादातर लोग आदवासी या मुस्लिम समुदाय के हैं.
NDTV की टीम ने इस गांव का दौरा कर यहां के लोगों से बात की. बातचीत को दौरान ग्रामीणों ने बताया कि इस इलाके में आजादी के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी बिजली नसीब नहीं हुई है.वे चूल्हे की लकड़ी से आग जलाकर रात किसी तरह गुजार लेते हैं. यहां के निवासी छोटेलाल बताते हैं, “नेता यहां सिर्फ पांच वर्ष में एक बार चुनाव के समय आते हैं. उसके अलावा कोई अधिकारी कभी गांव नहीं आया. ये गांव गोभा ग्राम पंचायत का हिस्सा है, लेकिन किसी भी प्रधान ने यहां पर विकास कार्य कराने में रुचि नहीं ली.”

गोभा गांव के बच्चे आग की रोशनी में पढ़ने के लिए मजबूर हैं.
सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं
गांव की एक अन्य निवासी अनीता ने बताया, "हम रात में खाना नहीं बनाते हैं. रात का हम लोग दिन ढलने के साथ ही बना लेते हैं क्योंकि रात में यहां लालटेन और चिमनी भी नहीं जलती है, क्योंकि आज-कल राशन की दुकान से सरकारी कैरोसिन तेल भी नहीं मिलता है. जिस वजह से रात का खाना दिन ढलते ही बना लेते हैं. कई पीढ़ियां रोशनी की राह देखते-देखते खत्म हो गईं, लेकिन अभी तक बिजली नहीं आई."
अनीता आगे बताती हैं, "सरकारी योजना का लाभ हमें आज तक नहीं मिला, न तो उज्ज्वला योजना के तरह गैस मिला और ना ही आवास. घर के नाम पर सिर्फ यही मड़ैया है, लेकिन तब भी हमारा राशन कार्ड नहीं बन पाया है. मनरेगा के तहत काम मांगने गए थे पर काम नहीं मिला. हम किसी तरह मजदूरी करके घर का खर्च चला रहे हैं. जिस दिन काम न मिले उस दिन बच्चे भूखे सोते हैं."

यहां के आगनबाड़ी में भी अंधेरा छाया रहता है.
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आग की रोशनी में पढ़ाई करते हैं बच्चे
NDTV की टीम जब आगे बढ़ी तो अंधेरी रात व ठंड की ठिठुरन में सड़क के किनारे लकड़ी की आग की रोशनी के सहारे पढ़ाई करता एक 5 साल का मासूम दिखा. उसके साथ उसकी मां और बहन भी थी. मासूम बच्चा आग की रोशनी के सहारे पढ़ाई के दम पर अपनी किस्मत लिख रहा था. एडीटीवी की टीम ने जब उसकी मां से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि न तो उनके पास आवास है और ना ही गांव में बिजली. उनके पास केरोसिन भी नहीं है. इसी लकड़ी की आग से खाना बनता है और बच्चे इसी आग के सहारे रात में पढ़ाई करते हैं. उन्हें न मिट्टी का तेल मिलता है ना राशन. किसी तरह दिन भर मजदूरी करके मड़ैया में अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

आग की रोशनी पढ़ते हुए मासूम अपनी तकदीर बदलना चाहतेे हैं.
क्या कहते हैं जिम्मेदार ?
एनडीटीवी की टीम ने जब इस मामले में जिला पंचायत सीईओ आईएएस गजेंद्र सिंह नागेश से बात की तो उन्होंने बताया कि जिन इलाकों में बिजली की समस्या है, बिजली नहीं पहुंची है, वहां पर डीएमएफ मद से जल्द ही बिजली की सुविधा मुहैया कराई जाएगी. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि फरवरी माह में बिजली विहीन इलाके में बिजली पहुंच जाए.
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