जबलपुर की मदन महल पहाड़ी स्थित बड़े पीर की दरगाह में 200 से ज्यादा सवारियों ने सलामी पेश की. जिसमें से कई सवारियां 10-15 किलोमीटर से ज्यादा का सफर कर दरगाह पहुंचीं. पूरे जबलपुर शहर से निकल कर सलामी का सिलसिला चलता रहा, सलामी के पथ पर बहुत सारी मुस्लिम युवा संस्थाओं में लंगर बांटा, जो मुजावर सवारी लेकर आए थे उन्हें कादरी परिवार के द्वारा दूध पिला कर सम्मानित किया गया.
जबलपुर की मोहर्रम पूरे देश में विख्यात है, यहां सभ धर्म के लोग त्योहार मनाते हैं. डॉ मकबूलसाहब की सवारी को 161 वर्ष हो चुके हैं. सरकार के अनुसार, 300 सालों से जबलपुर में मोहर्रम मनाए जा रही है. मोहर्रम की सातवीं तारीख को सफर की रात कहते हैं और इस दरगाह में पीरों के पीर बड़े पीर साहब के यहां सभी मुजावर आकर हाजिरी लगाते यह सिलसिला 16 साल से चला रहा है.
जबलपुर में यह वर्षों से यह परंपरा है कि सभी धर्मों के लोग अपने अपने प्रमुख स्थानों पर जाकर अपने मन्नत पूरी करने के लिए मुराद मांगने जाते हैं मदन महल की दरगाह में सभी धर्म के लोग पीरों के पीर बड़े पीर साहब के यहां आकर मुराद मांगने आते हैं. और मानिता है की बड़े पीर साहब का यह स्थान सभी की मन्नत पूरी करता है जिन लोगों की मान्यताएं पूरी हो जाती है जो लोग यहां आकर चादर चढ़ाते हैं.
जबलपुर शहर में सवारियों का चलन ज्यादा है ताजियों का चलन काम है. कुछ शहरों में ताजिया ज्यादा होते हैं सवारियां कम रखी जाती है पूरे हिंदुस्तान में अलग-अलग तरीके से मोहर्रम मनाया जाता है.
जबलपुर में पिछले साल लगभग 300 सवारियां रखी गई थी इस बार 400 से ज्यादा सवारी और ताजिए रखे गए हैं. यह सब इस दरगाह में हाजिरी देने मदन महल दरगाह जाते है.