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राम मंदिर में दिखता है एक भारत श्रेष्ठ भारत, IIT-इसरो-IIA-CSIR जैसे संस्थानों का भी है योगदान, जानिए सब कुछ यहां

Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर वर्ष श्रीराम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ ने 'एनबीआरआई नमोह 108' नाम से कमल की एक नई किस्म विकसित की है. कमल की यह वैरायटी मार्च से दिसंबर तक खिलती है. इस मंदिर में राजस्थान का पत्थर, यूपी का पीतल, महाराष्ट्र की लकड़ी मौजूद है.

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राम मंदिर में दिखता है एक भारत श्रेष्ठ भारत, IIT-इसरो-IIA-CSIR जैसे संस्थानों का भी है योगदान, जानिए सब कुछ यहां

Ayodhya Ram Mandir Inauguration:  श्री राम जन्मभूमि मंदिर अयोध्या (Shri Ram Janmbhoomi Mandir Ayodhya) में होने जा रहे प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir Pran Pratishtha) समारोह को लेकर पूरे देश में उत्साह व उत्सव का माहौल है. आज प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए अयोध्या दौरे पर रहेंगे. राम नाम की गूंज ने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे भारत में भक्ति का माहौल बना दिया है. यह भक्ति अयोध्या में ऐतिहासिक राम मंदिर के रूप में मूर्त रूप ले रही है. आज अयोध्या स्थित भव्य राम मंदिर भारत की एकता और भक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा है, न केवल भव्यता में, बल्कि देश-विदेश से मिले योगदान के रूप में भी अद्वितीय है. इस मंदिर के साथ पीएम मोदी (PM Modi) की 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' (Ek Bharat Shreshtha Bharat) पहल गहराई से जुड़ी दिखती है. यह मंदिर उस अटूट विश्वास और उदारता का प्रमाण है जो किसी सीमा से परे किसी मंदिर के तीर्थाटन के लिए पूरे देश को जोड़ती है. वहीं राम मंदिर निर्माण को आईआईटी (IIT), इसरो (ISRO) के कुछ इनपुट के अलावा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत सीएसआईआर (CSIR) और डीएसटी (DST) जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा तकनीकी रूप से सहायता प्रदान की गई है.

कैसे एक भारत-श्रेष्ठ भारत को प्रस्तुत कर रहा है राम मंदिर?

मंदिर का मुख्य भाग राजस्थान के मकराना संगमरमर (Rajasthan's Makrana marble) की प्राचीन श्वेत शोभा से सुसज्जित है. इस मंदिर में देवताओं की उत्कृष्ट नक्काशी कर्नाटक के चर्मोथी बलुआ पत्थर (Karnataka's Charmouthi sandstone) पर की गई है. जबकि प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर (pink sandstone from Rajasthan's Bansi Paharpur) का उपयोग किया गया है.

राम मंदिर अयोध्या का दृश्य

राम मंदिर अयोध्या का दृश्य

इस मंदिर में गुजरात से उपहार स्वरूप मिली 2100 किलोग्राम की शानदार अष्टधातु घंटी (Ashtadhatu Bell) है, जो इसके हॉलों में दिव्य धुन के रूप में गूंजेगी. इस दिव्य घंटी के साथ, गुजरात ने एक विशेष 'नगाड़ा' ले जाने वाला अखिल भारतीय दरबार समाज द्वारा तैयार 700 किलोग्राम का रथ भी उपहार स्वरूप दिया गया है. भगवान राम की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल किया गया काला पत्थर कर्नाटक से आया है. हिमालय की तलहटी से अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ने जटिल नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे और हस्तनिर्मित संरचना पेश किए हैं, जो दिव्य क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में खड़े हैं.

राम मंदिर अयोध्या का दृश्य

राम मंदिर अयोध्या का दृश्य

पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से तो पॉलिश की हुई सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से आयी है. इस राम मंदिर की कहानी सिर्फ सामग्री और उसकी भौगोलिक उत्पत्ति के बारे में नहीं है. यह उन अनगिनत हजारों प्रतिभाशाली शिल्पकारों और कारीगरों की कहानी है जिन्होंने मंदिर निर्माण के इस पवित्र प्रयास में अपना दिल, आत्मा और कौशल डाला है.

राम मंदिर अयोध्या में सिर्फ एक स्मारक नहीं है. यह विश्वास की एकजुट शक्ति का जीवंत प्रमाण है. हर पत्थर,हर नक्काशी,हर घंटी,हर संरचना 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की कहानी कहती है जो भौगोलिक सीमाओं से परे सामूहिक आध्यात्मिक यात्रा में दिलों को जोड़ता है.
 

मुख्य मंदिर भवन, जो 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा है. यह राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से निकाले गए बलुआ पत्थर से बना है. इसके निर्माण में कहीं भी सीमेंट या लोहे और इस्पात का उपयोग नहीं किया गया है. तीन मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप प्रतिरोधी बनाया गया है और यह 2,500 वर्षों तक रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता के मजबूत भूकम्पीय झटकों को बर्दाश्‍त कर सकता है.

अब जानिए IIT, इसरो जैसे संस्थानों का योगदान

श्रीराम मंदिर निर्माण (Shri Ram Mandir construction) में आईआईटी (IIT), इसरो (Indian Space Research Organisation) के अलावा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सीएसआईआर (Council of Scientific & Industrial Research) और डीएसटी (Department of Science & Technology) जैसे राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा तकनीकी रूप से सहायता प्रदान की गई है. मंदिर निर्माण में जिन चार संस्थानों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनमें सीएसआईआर-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI) रूड़की, सीएसआईआर - राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) हैदराबाद, डीएसटी - इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) बेंगलुरु और सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT) पालमपुर शामिल हैं. इस भव्य निर्माण में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का भी उपयोग किया गया है.

सीएसआईआर-सीबीआरआई रूड़की प्रारंभिक चरण से ही राम मंदिर के निर्माण में शामिल रहा है. संस्थान ने मुख्य मंदिर के संरचनात्मक डिजाइन, सूर्य तिलक तंत्र को डिजाइन करने, मंदिर की नींव के डिजाइन की जांच और मुख्य मंदिर की संरचनात्मक देखभाल की निगरानी में योगदान दिया है.

सीएसआईआर-सीबीआरआई रूड़की ने राम मंदिर निर्माण में प्रमुख योगदान दिया है. सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद ने नींव डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण इनपुट दिए. डीएसटी-आईआईए बेंगलुरु ने सूर्य तिलक के लिए सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर ने 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए ट्यूलिप खिलाए हैं.

राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर वर्ष श्रीराम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी. राम नवमी हिंदू कैलेंडर के पहले महीने के नौवें दिन मनाई जाती है, यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल में आती है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्मदिन का प्रतीक है.

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics Bengaluru) बेंगलुरु ने सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और ऑप्टिका, बेंगलुरु लेंस और पीतल ट्यूब के निर्माण में शामिल है. गियर बॉक्स और परावर्तक दर्पण या लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि शिकारा के पास स्थित तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को सूर्य पथ पर नज़र रखने के प्रसिद्ध सिद्धांतों का उपयोग करके गर्भ गृह तक लाया जाएगा.

सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर द्वारा 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में ट्यूलिप ब्लूम्स भेजा गया है.

इस मौसम में ट्यूलिप में फूल नहीं आते. यह केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में, इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी पालमपुर ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीकी विकसित की है, जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम का इंतजार किए बिना पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है.

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute) या एनबीआरआई (NBRI) लखनऊ ने 'एनबीआरआई नमोह 108' नाम से कमल की एक नई किस्म विकसित की है. कमल की यह वैरायटी मार्च से दिसंबर तक खिलती है और यह पोषक तत्वों से भरपूर होती है. यह पहली कमल की किस्म है, जिसका जीनोम इसकी विशेषताओं के लिए पूरी तरह से अनुक्रमित है.

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