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'अब महिलाओं के पास रोजगार नहीं...' कबाड़ में तब्दील हो गई मशीनें; पुरानी योजनाओं पर भी लगा ग्रहण

RIPA scheme closed: महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क योजना की शुरुआत हुई थी. इसके तहत करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन सरकार बदलने के बाद यहां लगाई गई मशीनें अब कबाड़ हो गई है.

'अब महिलाओं के पास रोजगार नहीं...' कबाड़ में तब्दील हो गई मशीनें; पुरानी योजनाओं पर भी लगा ग्रहण

Chhattisgarh rural industrial Park: पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृण करने महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एक योजना की शुरुआत की थी. नाम दिया था 'महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (RIPA)'. योजना के नाम पर कांकेर जिले में करोड़ों रुपये खर्च कर इकाई की स्थापना की गई. महंगी-महंगी मशीनें लगाकर कार्य शुरू भी किया गया, लेकिन सरकार बदलने के बाद इस योजना को ग्रहण लग गया. इंडस्ट्रियल पार्क में सन्नाटा पसरा हुआ है. करोड़ों रुपये खर्च कर खरीदी गई मशीनें कबाड़ में तब्दील हो रही है. काम करने वाली महिलाएं आज बेरोजगार हो चुकी है. जिनके सामने आर्थिक संकट की दीवार खड़ी हो गई है.

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महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए लगाई गई थी मशीनें

NDTV की टीम जिला मुख्यालय कांकेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर चारामा ब्लॉक के ग्राम सराधुनवागांव पहुंची. प्रशासन ने यहां काफी बड़े क्षेत्र में महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) की स्थापना की है, जिसमें प्रमुख रूप से गोबर पेंट बनाने की इकाई, सीमेंट ईंट बनाने की इकाई, प्लास्टिक बोरे बनाने से लेकर मिनी राइसमिल, केज सिस्टम द्वारा लेयर फार्मिंग की स्थापना की गई. इनके लिए करोड़ों रुपये के लागत से निर्माण कार्य और मशीनें लगाई गई. महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया. महिलाओं ने विभिन्न इकाइयों में काम करना शुरू किया, लेकिन आज हालात विपरीत है.

महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में अब सन्नाटा पसरा हुआ है. सभी इकाईयों में लंबे समय से ताला लटका हुआ है. कक्ष के भीतर और बाहर जाले लटके हुए है. मशीनें धूल खाती पूर्ण रूप से कबाड़ में तब्दील होने का इंतजार कर रही है. 

कलस्टर समूह की 10 महिलाएं गोबर पेंट बनाने का करती थी काम

कांकेर जिले के सराधुनवा गांव में गोबर से पेंट बनाने की इकाई डाली गई. यह पूरे बस्तर संभाग में गोबर से पेंट बनाने की पहली इकाई है. यहां कलस्टर समूह की 10 महिलाएं गोबर पेंट बनाने का कार्य करती थी.

समूह की महिला जागेश्वरी भास्कर ने बताया कि गोबर पेंट बनाने की इकाई की स्थापना के बाद यहां सभी ने गोबर पेंट बनाना शुरू किया था. दूर-दूर से दूसरे जिले की महिलाएं और अधिकारी यहां प्रशिक्षण लेने पहुंचते थे. उन्होंने काफी मात्रा में गोबर पेंट बेचकर लाभ कमाया.

सरकार बदलने के बाद गोबर से पेंट बनाने का उत्पादन हुआ बन्द 

सरकारी दफ्तरों में इस पेंट का इस्तेमाल शुरू हुआ फिर अन्य लोग भी इस पेंट का इस्तेमाल करने लगे, लेकिन सरकार बदलने के बाद से गोबर से पेंट बनाने का उत्पादन बन्द है. अब कोई भी डिमांड नहीं आ रहा है. जब तक काम चलता रहा अच्छी आमदनी हो जाती थी. महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही थी, लेकिन अब सभी के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. महिलाएं खेतो में कार्य कर रही है. प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी किसी प्रकार का दिशा निर्देश नहीं दिए जा रहे. साल भर से कोई कार्य नहीं होने के कारण मशीनें भी कबाड़ में तब्दील होते जा रही है.

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अब महिलाएं खेतों में काम करने को हो रही मजबूर 

जय शीतला समूह की महिला मालती सोनकर और संतोषी वैष्णव बताती है कि वह पीपी बैग बनाने का कार्य करती थी. कार्य से रोजना उन्हें 200 रुपये की आमदनी होती थी. कार्य के लिए उन्होंने 5 लाख रुपये का लोन भी लिया था. सोचा था कि कार्य से होने वाली आमदनी से समूह की महिलाएं लोन की राशि जमा कर पाएंगी, लेकिन अब उनका कार्य बंद हो गया है. आर्थिक संकट के कारण उन्हें अब खेतों में काम करने जाना पड़ता है.

इस पर भानुप्रतापपुर की कांग्रेस विधायक सावित्री मंडावी कहती है कि हमारी सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और महिला शसक्तीकरण का नारा बुलंद करने के उद्देश्य से ग्रामीणों क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल पार्क की स्थापना की. ताकि महिलाओं को रोजगार के अवसर मिल सके, लेकिन अब इसे अचानक से बंद कर दिया गया है. महिलाएं परेशान है. जल्द ही इस सबंध में प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात कर इसे पुनः चालू करने की मांग करूंगी.

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रीपा योजना के तहत लगाए गए थे छोटे-छोटे उद्योग

वहीं इंडस्ट्रियल पार्क बंद होने के सवाल पर जिला पंचायत सीईओ सुमीत अग्रवाल का कहना है कि रीपा योजना के तहत वहां छोटे-छोटे उद्योग लगाए गए थे. हमारा प्रयास है कि शासन की जो योजनाएं हैं. उनके साथ उनका कन्वर्जन करके कार्य किया जाए, ताकि वहां से उत्पादन होने वाले समानों का आसानी से विक्रय हो सके. जिले में पांच सीमेंट ईंट बनाने के यूनिट लगाई गई है.

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जिला पंचायत सीईओ सुमीत अग्रवाल ने आगे बताया कि वर्तमान में बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री आवास की स्वीकृति मिलने वाली है. हम प्रयास करेंगे कि ग्राम पंचायत और जनपद पंचायत के साथ टाइअप करके हितग्राहियों तक लाभ पहुंचाए. साथ ही अन्य यूनिट के लिए भी प्लानिंग की जा रही है. जिसे मार्केट में पुनः स्थापित किया जा सके.

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अब महिलाओं के पास नहीं है रोजगार

बता दें कि रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के नाम पर करोड़ों रुपये जिला के निर्माण कार्य और मशीने लगाई है. यहां लगाई गई शिला में साफ तौर पर लिखा हुआ है कि जिला न्यास निधि (DMF) की राशि इनमें खर्च की गई है. इस निधि का उपयोग खनन संबन्धित कार्यों से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है, लेकिन पूर्ववर्ती सरकार ने रूरल इंडस्ट्रियल पार्क बनाने के नाम पर खर्च कर डाला. बहरहाल सभी के अपने अपने तर्क जरूर है. करोड़ों रुपयों से हुए निर्माण कार्य और वहां लगी मशीन कबाड़ होती जा रही है. महिलाओं के पास रोजगार नहीं है. बेरोजगारी की मार झेल रही यह महिलाएं रोजी मजदूरी कर अपना और परिवार का पालन पोषण कर रही है. 

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