Naxal Area News School: छत्तीसगढ़ में सरकार, डिजीटल और हाईटेक शिक्षा के पर जोर तो दे रही है, लेकिन बस्तर के ग्रामीण इलाकों में आज भी प्राइमरी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने में नाकाम साबित हो रही है. शहरी इलाकों में जहां बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ उठा रहे हैं तो वहीं बस्तर में आदिवासी बच्चों के लिए बैठने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है. नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के कोंटा विकासखंड में NDTV ने बुनियादी शिक्षा की पड़ताल की. इस दौरान कई चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं, जो जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की लापरवाही और उदासीनता को बताने के लिए काफी है.
परेशानियों के बीच शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे
नए शिक्षा सत्र की शुरुआत तो कर दी गई है, लेकिन पुरानी समस्याएं बच्चों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. सालों से स्कूल भवनों का निर्माण कार्य चल रहा है. समय अवधि पूरा होने के बाद भी भवन अधूरे पड़े हैं. आलम ये है कि ग्रामीण इलाकों में स्कूलों का संचालन कहीं झोपड़ी में, तो कहीं इमली पेड़ के नीचे किया जा रहा है. बारिश में हालात और भी खराब हो जाते हैं. बच्चों को पानी में भीगना पड़ता है. ग्रामीण इलाकों में ये परिस्थितियां आज की नहीं बल्कि बीते 4-5 सालों से बनी हुई हैं. उसके बावजूद शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अफसर बच्चों को होने वाली परेशानी के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं और बच्चे परेशानियों के बीच शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं.
केस 1- झोपड़ी में स्कूल
जिले के कोंटा ब्लॉक के भेजी इलाके में वोंदेरपारा प्राइमरी स्कूल का संचालन बीते तीन सालों से झोपड़ी में किया जा रहा है. यहां करीब 27 बच्चे रजिस्टर्ड हैं. गांव के बच्चों को सर्वसुविधायुक्त माहौल मिल सके इसके लिए सरकार ने प्राइमरी स्कूल भवन बनाने लाखों रुपये की स्वीकृति दी थी.
गांव से महज 700 मीटर दूर स्थित भेजी गांव में पुलिस थाना और CRPF कैंप भी है. नक्सलवाद का दूर-दूर तक कोई डर नहीं है. बावजूद इसके संबंधित विभाग स्कूल भवन को पूरा करने में गंभीर नहीं है.
बारिश में होती है परेशानी
वोंदेरपारा प्राइमरी स्कूल में मूल पदस्थ शिक्षक के छुट्टी पर होने से विभाग ने शिक्षिका रीना भलावे को वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर दो दिन के लिए नियुक्त किया है. उन्होंने बताया कि झाड़ियों और फेंसिंग तार से झोपड़ी को घेरा गया है. बारिश का मौसम होने की वजह से बच्चों को भारी परेशानी हो रही है. तेज बारिश होने पर पढ़ाई प्रभावित होती है. झोपड़ी की छत से पानी टपकने लगता है. गांव में शिक्षा के प्रति लोगों में रूचि है इसलिए ग्रामीण बच्चों को नियमित स्कूल भेजते हैं. बच्चों में भी सीखने की ललक है.
केस 2- इमली पेड़ के नीचे लग रहा प्राइमरी स्कूल
NDTV की पड़ताल में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली तस्वीर गेरेपाड़ गांव में देखने को मिली. यहां शिक्षिका शशीकला राठिया बच्चों को इमली पेड़ के नीचे पढ़ाती नजर आई. आस-पास का मंजर किसी तबेले से कम नहीं था. इमली पेड़ के नीचे बच्चों को चटाई पर बैठाकर पढ़ाया जा रहा था.
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अधूरे स्कूल भवन पर बिफरे ग्रामीण
गेरेपाड़ गांव के ग्रामीणों में अधेर स्कूल भवन को लेकर खासी नाराजगी नजर आई। ग्रामीण मुचाकी देवा समेत अन्य लोगों ने बताया कि पिछले 4-5 सालों से स्कूल का संचालन पेड़ या फिर घरों में किया जा रहा है. गांव में स्कूल भवन का काम शुरू हुए 5 साल हो गए हैं. आज तक काम चल रहा है.अफसर भी गांव नहीं आते हैं. कई बार अफसरों को शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई उनकी समस्या को सुनता ही नहीं है. अव्यवस्थाओं के बीच भी शिक्षक स्कूल आते हैं और किसी तरह बच्चों को पढ़ाने का प्रयास करते हैं.
जारी करेंगे नोटिस
कोंटा ब्लॉक के बीईओ पी. श्रीनिवास राव ने कहा कि पूरे ब्लॉक में 17 स्कूल के भवन अंडर कंस्ट्रक्शन में हैं. नया शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले ही संबंधित ठेकेदारों को नोटिस जारी किया गया है. अभी भी काम शुरू नहीं किया गया है तो दोबारा नोटिस जारी किया जाएगा.
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