Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के 21 वार्डों में लोग 12 सालों से मीठे पानी की राह देख रहे हैं. ये हाल तब है जबकि इसे लेकर साल 2012 से अब तक करी 40 करोड़ रुपये से ज्यादा का सरकारी फंड खर्च हो चुका है. इतना खर्च करने के बाद भी जिला मुख्यालय के सिर्फ 3 वार्डों में ही पानी की सप्लाई हो पाई है.दरअसल ये प्रोजेक्ट 12 मार्च 2012 को इलाके के लोगों को खारा पानी से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था. जिसके लिए साल 2012 में 16करोड़ 55 लाख और 8 मार्च 2019 को 21 करोड़ 26 लाख रुपए शासन की ओर से जारी किए गए. प्रोजेक्ट की हालत देखकर एक मुहावरा याद आता है- नौ दिन चले अढाई कोस.
दरअसल 12 साल पहले मीठे पानी की सप्लाई की योजना बनी. जिसके लिए शहर को तीन अलग-अलग जोन में विभाजित किया गया. लेकिन ये योजना आगे बढ़ती उससे पहले हर कदम पर लापरवाही और करप्शन की बू आने लगे. इसी प्रोजेक्ट को लेकर लोक निर्माण विभाग द्वारा पाइपलाइन लगाने के लिए सड़क चौड़ीकरण का ठेका दिया गया. सड़क तो चौड़ी हो गई लेकिन करीब 3 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन डैमेज हो गई. जिससे लीकेज के कारण सड़कें भी खराब हो रही हैं.
इस योजना को लेकर अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होते हैं. इस योजना के लिए शहर में तीन पानी की टंकियों का निर्माण कराया गया था पर इन टंकियों से मात्र तीन वार्ड में ही पानी का सप्लाई हो पा रहा है.
मुख्य पानी की टंगी कोबिया वार्ड में लगी है. यहां पानी शिवनाथ नदी से फिल्टर होकर पहुंचता है. इसको लेकर जब NDTV ने जिम्मेदार अधिकारियों से बात की तो उनका कहना था कि ठेके की अवधि खत्म होने की वजह से ठेकेदार ने काम बंद कर दिया है.जिसे रिवाइज करने के लिए फिर से शासन को भेजा गया है. उसकी स्वीकृति मिलने के बाद काम आगे बढ़ पाएगा. इस बीच में सवाल उठ रहा है कि शहर को शत प्रतिशत शुद्ध मीठा पानी देने की बेमेतरा जल आवर्धन योजना की कछुए की चाल कब खत्म होगी. सवाल ये है कि अधिकारियों ने रिवाइज्ड ऐसटीमेट के नाम पर जो करोड़ों रुपए जारी किए उसका इस्तेमाल कहां हुआ है. क्या योजना के नाम पर पैसों की बंदरबांट हो रही है.