
Chhattisgarh Election Results: छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जबरदस्त वापसी करते हुए सबको चौंका दिया है. छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य था, जहां कांग्रेस (Congress) की जीत पक्की मानी जा रही थी. लेकिन, बीजेपी ने जोरदार वापसी करते हुए 54 सीटों पर कब्जा कर लिया है. भ्रष्टाचार, हिंदुत्व, लोकलुभावन वादों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की मजबूत छवि जैसे मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ. इसके साथ ही पार्टी ने यहां 90 में से 54 सीटों पर जीत हासिल कर पांच साल बाद जोरदार वापसी की है.
2018 के विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Election 2018) में छत्तीसगढ़ में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. इस बार के चुनाव में कांग्रेस 35 सीटें जीतने में सफल रही, जो 2018 में मिली जीत से 33 कम है. जबकि एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिली है.
कांग्रेस के 9 मंत्रियों को मिली हार
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार में 13 मंत्री थे, जिनमें से 9 मंत्रियों को हार मिली है. जबकि बघेल (पाटन) और उनके तीन मंत्री कवासी लखमा (कोंटा), उमेश पटेल (खरसिया) और अनिला भेंडिया (डोंडी लोहारा) चुनाव जीतने में कामयाब रहे. विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत ने अपनी सक्ती सीट जीत ली है. वहीं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज को चित्रकोट सीट पर हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह (राजनांदगांव), प्रदेश बीजेपी प्रमुख और पार्टी सांसद अरुण साव (लोरमी), केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह (भरतपुर-सोनहत), पार्टी सांसद गोमती साय (पत्थलगांव), पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय (कुनकुरी) और पूर्व मंत्री जिनमें बृजमोहन अग्रवाल (रायपुर शहर दक्षिण), अजय चंद्राकर (कुरूद), पुन्नूलाल मोहले (मुंगेली), अमर अग्रवाल (बिलासपुर), दयालदास बघेल (नवागढ़) और राजेश मूणत (रायपुर शहर पश्चिम) तथा पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी और नीलकंठ टेकाम चुनाव जीत गए हैं.
बीजेपी की रणनीति कांग्रेस पर पड़ी भारी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर निर्भर थी, जिसमें कहा जाता है कि उसने लगभग 1.75 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे. वहीं पार्टी ने 'छत्तीसगढ़ियावाद' और माटी पुत्र के रूप में बघेल की लोकप्रियता को भी भुनाने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रही. इधर, बीजेपी का प्रचार अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर बहुत अधिक निर्भर था. प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य में जुलाई से चुनाव प्रचार के आखिर तक नौ सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया. पार्टी ने मतदाताओं से कई वादे भी किए.
राज्य में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने महादेव सट्टेबाजी ऐप, कोयला और शराब से संबंधित कथित घोटालों को लेकर लगातार बघेल सरकार पर निशाना साधा, जिनकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की जा रही है.
सांप्रदायिक हिंसा और धर्मांतरण का मुद्दा पड़ा भारी
बीजेपी ने राज्य में पिछले दिनों बेमेतरा और कवर्धा जिलों में हुई सांप्रदायिक हिंसा और राज्य में धर्मांतरण की घटनाओं को लेकर भी कांग्रेस पर निशाना साधा. इसके साथ ही बीजेपी ने बघेल सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति में लिप्त होने का आरोप भी लगाया. बता दें कि इस साल अप्रैल में बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटना को बीजेपी ने लोगों के सामने रखा और साजा सीट से ईश्वर साहू को भी मैदान में उतारा. ईश्वर साहू के पुत्र की बिरनपुर सांप्रदायिक हिंसा में मौत हुई थी. ईश्वर साहू ने कांग्रेस के प्रभावशाली नेता और मंत्री रविंद्र चौबे को 5,196 मतों से हराया है.
बड़े अंतर से जीतने वाले अकबर को मिली करारी हार
कवर्धा सीट पर बीजेपी के विजय शर्मा ने कांग्रेस के एक और कद्दावर नेता मंत्री मोहम्मद अकबर को 39,592 मतों से हराया. अकबर ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कवर्धा सीट पर 59,284 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. साजा में प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि ईश्वर साहू सिर्फ उम्मीदवार नहीं बल्कि न्याय की लड़ाई के प्रतीक हैं और अगर बीजेपी सत्ता में वापस आई तो उनके बेटे भुनेश्वर साहू के हत्यारे को जेल भेजा जाएगा.
बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा
भ्रष्टाचार के अलावा, बीजेपी ने प्रधानमंत्री आवास योजना को लागू न करने, शराबबंदी और संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित कांग्रेस के 2018 के वादों को पूरा करने में विफलता को लेकर भी बघेल सरकार पर निशाना साधा. इस चुनाव में भाजपा ने 2018 चुनाव के 10.1 फीसदी वोटों के अंतर को भी पाटा और उसका वोट प्रतिशत पिछले चुनाव में मिले 32.97 फीसदी से बढ़कर इस बार 46.27 फीसदी हो गया. कांग्रेस 43.04 से नीचे 42.23 फीसदी पर आ गई है.
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय है कि बीजेपी के पारंपरिक वोट जो 2018 में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस के पास चले गए थे, उन्हें इस चुनाव में भगवा पार्टी ने बरकरार रखा. आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र में मतदान के परिपाटी ने भी कांग्रेस को परेशान किया है. इस क्षेत्र में कांग्रेस 2018 में जीती गई सभी 14 सीटें हार गईं, जिनमें अंबिकापुर भी शामिल है, जहां उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को हार का सामना करना पड़ा है.
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47 नए चेहरों में 29 को मिली कामयाबी
बीजेपी ने इस चुनाव में करीब 47 नए चेहरों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 29 को जीत मिली है. इस विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. बसपा ने 2018 में दो सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि जीजीपी राज्य के गठन के बाद पहली बार एक सीट, पाली-तानाखार जीतने में कामयाब रही.
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने 2018 में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार अपना खाता खोलने में असफल रही. वहीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) जिसने इस बार छत्तीसगढ़ में दूसरी बार अपनी किस्मत आजमाई थी और 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था, वह भी अपना खाता खोलने में विफल रही. पार्टी को मात्र 0.93 प्रतिशत वोट ही मिले.
गलत साबित हुए एग्जिट पोल
वहीं एग्जिट पोल के नतीजों की बाद करें तो लगभग सारे एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की सरकार बनने के दावे किए जा रहे थे. लेकिन, इससे विपरीत बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी सीटें 15 से बढ़ाकर 54 कर ली है. 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद यह पहली बार है जब बीजेपी को इतना बड़ा जनादेश मिला है और वह 50 सीटों से आगे निकल गई है.
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