छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा देश का ध्यान आकर्षित करने वाली सीट है राजनांदगांव लोकसभा जहां कांग्रेस ने पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है. इस बार कांग्रेस न केवल भाजपा के सभी 11 सीटें जीतने के लक्ष्य को ध्वस्त करना चाहती है वरन इतिहास के उस अध्याय पर भी पूर्णविराम लगाना चाहती है जो वर्ष 2000 में नया छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा के नाम दर्ज है. भाजपा ने पिछले चार चुनावों में कांग्रेस को कभी एक या दो सीटों से आगे नहीं बढ़ने दिया. और तो और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बंपर जीत के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नौ सीटें जीत लीं. कांग्रेस को दो सीटों से संतोष करना पड़ा. चूंकि नवंबर 2023 का विधान सभा चुनाव कांग्रेस हार चुकी है लिहाज़ा लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना उसके और लिए और भी जरूरी हो गया है ताकि पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं के गिरते हुए मनोबल को थामा जा सके. उसके पक्ष में यह अच्छी बात रही है कि अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गयाराम वाले अत्यल्प है. बीते दिनों में भाजपा में शामिल हुए होने वाले नेताओं में ऐसा कोई भी नहीं है जिसका व्यापक जनाधार हो. अतःउनके पार्टी बदलने से संगठन की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
खैरागढ में 5634 वोट , डोंगरगढ़ में 14367, खुजजी, 25944, मोहला-मानपुर में 31741 तथा डोंगरगांव में 2789 वोटों के अंतर के साथ कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. इन पांच सीटों पर कांग्रेस की बढ़त थी 80475. लेकिन भाजपा ने जो तीन सीटें पंडरिया , कवर्धा व राजनांदगांव जीतीं , उनके वोटों का कुल योग 1,11,074 था जिसमें सर्वाधिक 45084 वोट पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने हासिल किए थे. राजनांदगांव से उन्होंने कांग्रेस के गिरीश देवांगन को हराया था. इस प्रकार राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में अधिक सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस 30 हजार 599 वोटों से पीछे रही. यह अंतर 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में काफी कम था. उस चुनाव में भाजपा ने आठ विधान सभा सीटों में से छह पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव व डोंगरगांव में कांग्रेस से अधिक वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस ने केवल खुजजी, मानपुर-मोहला में भाजपा को पीछे किया था. भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय को कुल 6,62,387 वोट मिले तथा उनसे पराजित भोलाराम साहू को 5 ,50,421 यानी 2019 के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से 1,11, 966 से अधिक वोट प्राप्त किए थे. इसका अर्थ है भूपेश बघेल को वोटों की इस खाई को पाटना होगा. यह आसान नहीं है क्योंकि राज्य में सरकार भी भाजपा की है तथा केंद्र ने भी पूरा जोर लगा रखा है. बघेल के लिए संतोष की बात सिर्फ इतनी है कि पांच विधान सभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं.
यहां 11.7 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 24 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। संख्या के हिसाब से क्रमशः दो लाख व चार लाख तेरह हजार. कुछ अन्य जातियों को छोड़कर पिछड़े वर्ग की आबादी सर्वाधिक है जो साहू बाहुल्य है. ब्राह्मण करीब एक प्रतिशत है. संतोष पांडेय ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन संसदीय चुनावों में उन्हें तथा उनके पूर्ववर्तियों को पिछड़े वर्ग के दम पर जीत मिलती रही है.
भूपेश बघेल कांग्रेस में एक बड़ा नाम है. 2018 से 2023 तक मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने तथा उनकी सरकार ने अपनी नीतियों व कार्यक्रमों के जरिए देशव्यापी ख्याति अर्जित की थी. यह अलग बात है कि बीते चुनाव में पार्टी हार गई. किन्तु इससे उनकी लोकप्रियता पर आंच नहीं आई. लेकिन उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है. संकट इसलिए भी है क्योंकि भाजपा सरकार उन्हें भ्रष्टाचार के मामलों में चारों तरफ से घेरने की कोशिश कर रही है. हाल ही में महादेव एप सट्टा प्रकरण में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. सरकार में रहते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं से जो कथित दूरी बन गई थी वह अब बैठकों में रोष के रूप में व्यक्त हो रही है. चंद दिन पूर्व ही राजनांदगांव ग्रामीण ब्लाक कांग्रेस की बैठक में मंच से पार्टी के एक स्थानीय पदाधिकारी ने कांग्रेस की सत्ता के दौरान कार्यकर्ताओं के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार को रेखांकित किया. अतः उनकी नाराज़गी को दूर कर उन्हें विश्वास में लेना तथा लड़ने के लिए तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं हैं. वास्तव में आंतरिक व बाह्य, दोनों तरह के संकटों से जूझ रही कांग्रेस और उसके जुझारू नेता भूपेश बघेल राजनांदगांव में भाजपा की चुनौती को किस तरह खारिज करेंगे , इसका फिलहाल अनुमान लगाना मुश्किल है पर यह ध्यान देने योग्य है कि 25 वर्षों से भाजपा के कब्जे की यह सीट कांग्रेस को इतिहास बदलने का मौका दे रही है.