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गाजा का युद्ध हो या हिटलर का दौर... कैसे महिलाएं रही हैं सबसे ज्यादा शोषित

Priya Sharma
  • विचार,
  • Updated:
    March 08, 2024 14:17 IST
    • Published On March 08, 2024 14:17 IST
    • Last Updated On March 08, 2024 14:17 IST

वॉर (War) में शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका महिलाओं से रेप की सोच से भी जुड़ा है. या यूं कहे कि इन युद्धों में महिलाएं सिर्फ वॉर विक्टिम बनी. यही वजह है कि सदियों से युद्ध के दौरान और जंग के बाद भी औरतों के साथ हुई अमानवीयता की चर्चा आज भी दिल दहला देती हैं. 

एक कहावत है, 'मर्द युद्ध शुरू करते हैं और महिलाएं नतीजा भुगतती है.' सदियों के युद्ध इतिहास के पन्नों को पलटें तो ये कहावत सच साबित होती है कि महिलाओं को ही युद्ध की विभीषिका सबसे ज्यादा भुगतनी पड़ती है.

8 मार्च, 1917 में रूसी (Russia) महिलाओं ने पेट्रोगार्द (आज का सेंट पीटर्सबर्ग) की सड़कों पर प्रथम विश्व युद्ध और जार के खिलाफ हल्ला बोलकर महिला दिवस (Womens Day) मनाया था,  लेकिन आज विडंबना ये है कि वही देश यूक्रेन पर युद्ध (Ukraine War) थोप दिया है. रूस-यूक्रेन युद्ध दोनों देशों के बीच फरवरी 2022 में युद्ध शुरू हो गया था, जो करीब 2 साल के बाद भी जारी है. इस युद्ध में भी महिलाएं सबसे ज्यादा वॉर विक्टिम बनी, हालांकि कुछ समय बाद से ये महिलाएं रूस-यूक्रेन युद्ध में जमकर लोहा ले रही हैं. लेकिन 2014 से पहले ऐसा नहीं था.

खासतौर पर पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष के बाद महिलाओं की मौजूदगी नई भूमिकाओं में बढ़ी है. जहां महिलाओं को लड़ाई में हिस्सा लेने पर रोक थी, लेकिन अब वो युद्ध में लोहा ले रही है. 

दरअसल, 2018 में पास कानून में यूक्रेनी महिलाओं को सेना में पुरुषों के बराबर कानूनी दर्जा दिया गया है. सोवियत संघ के दौर में 450 पेशों में महिलाओं के काम करने पर रोक थी. इन कामों को महिलाओं की प्रजनन क्षमता के लिए नुकसानदेह माना जाता था. इस सूची में लंबी दूरी तक ट्रक ड्राइविंग, फायर फाइटिंग और सेना, वेल्डिंग, सुरक्षा से जुड़े कई जॉब शामिल थे. या यूं कहे कि सिर्फ सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान ही नहीं बल्कि आज भी महिलाओं को सिर्फ बच्चा देने वाली मशीन माना जा रहा है. 

यूक्रेन की महिलाएं जिस तरह से लोहा ले रही हैं वो समाज का आईना हैं. ऐसा समाज जहां महिला सिर्फ वॉर विक्टिम नहीं बनी.. युद्ध भी लड़ें और झांसी की रानी की तरह दुनिया को प्रेरित भी किया. ऐसा ही हाल इजराइल-गाजा युद्ध का है.

इजराइल-गाजा वॉर 'महिलाओं पर भी एक युद्ध बन गया है'. महिलाएं इस युद्ध के भीषण व विनाशकारी प्रभावों की लगातार भारी पीड़ा सहन कर रही हैं. UN महिला संस्था ने कहा, 'गाजा की बहुत सी महिलाएं, अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए, युद्ध में ध्वस्त हुई इमारतों के मलबे और कूड़ा घरों में भोजन की तलाश करने को मजबूर हैं.'

हिटलर के काल में महिलाओं की दुर्दशा 

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान एडॉल्फ हिटलर ने महिलाओं को सिर्फ बच्चा जन्म देने वाली मशीन बना दिया था. हिटलर राज में औरतों को अपनी देह और आत्मा नाजी विचारधारा को सौंपने के लिए कहा जाता था और इन महिलाओं को स्वस्तिका वाले क्रॉस से सम्मानित किया जाता था. दरअसल, 12 अगस्त 1938 को एडॉल्फ हिटलर ने जर्मन महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मदर्स क्रॉस की स्थापना की.

4 से 5 बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को कांसे का क्रॉस मिलता था, जबकि 6 या 7 बच्चों वाली मां को रजत और 8 से ज्यादा बच्चों वाली मां को हिटलर सोने का क्रॉस देता था.

इतना ही नहीं नॉर्वे में 50 हजार से ज्यादा जर्मन सैनिकों ने महिलाओं के साथ संबंध बनाए ताकि जर्मन राष्ट्रवाद का उनके बच्चे विस्तार कर सकें. हालांकि कुछ साल पहले इसके लिए नॉर्वे के शासक ने महिलाओं से माफी भी मांगी.

पाकिस्तानी सेना ने किया था दो लाख महिलाओं का रेप

सिर्फ हिटलर के दौर में ही नहीं साल 1971 में हुए बांग्लादेश की लिबरेशन वॉर में पाकिस्तान की सेना ने जमकर महिलाओं पर कहर बरपाया था. या यूं कहे कि ये युद्ध सिर्फ बंगाली महिलाओं के साथ हुई अमानवीयता और दूसरे वॉर क्राइम थी. आज भी इसकी भयावह कहानियां बांग्लादेश के लोगों को पाकिस्तान के खिलाफ आग बबूला कर देती हैं. दरअसल, इस जंग में पाकिस्तानी फौज ने दो लाख महिलाओं से रेप किया था. 

युद्ध में महिलाओं के साथ बलात्कार का सिलसिला यहीं नहीं थमा. ये आज भी जारी है. साल 1994 में रुवांडा नरसंहार के दौरान 100 दिनों में ही करीब 250,000 से 500,000 महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ. यूएन के प्रस्ताव 1325 में भी ये कहा गया था कि युद्ध से महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ित हैं और महिलाएं युद्ध के दौरान फिर युद्ध के बाद भी पीड़ित है.

अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, पाकिस्तान, इराक, दक्षिण सूडान में महिलाओं के हालात मध्यकाल से भी बदतर है. डब्ल्यूपीएस इंडेक्स के हिसाब से सीरिया और अफगानिस्तान महिलाओं के लिए विश्व में सबसे बदतर जगह है. 

सिर्फ इन देशों में ही नहीं भारत में भी महिलाएं सदियों से सताई जा रही हैं. दिल्ली, हाथरस, उन्नाव से लेकर उज्जैन तक आपको इसके सुराग मिल जाएंगे. खास कर वो महिलाएं जिनके मर्द और रिश्तेदार सताते हैं. इस तरह से भारत में महिलाएं दोहरी मार झेलती हैं.

'भारत का विभाजन' के दौरान भी महिलाएं इसकी विभीषिका सबसे ज्यादा भुगती है. जिसका जिक्र अमृता प्रीतम के उपन्यास 'पिंजर' में दर्ज है. जिस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनी. इसके अलावा मध्यकाल में जौहर प्रथा का होना भी युद्ध की इसी त्रासदी का एक बड़ा पहलू है.

"औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया...

जब जी चाहा मसला, कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया..."

भारत में साल 2021 के मुकाबले 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध 4 फीसदी बढ़े हैं. NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत 4,45,256 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 2021 में ये संख्या 4,28,278 थी. वहीं 2021 में 2020 के तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी. 

NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर मामले 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' 31.4 प्रतिशत के थे.

इसके बाद ‘महिलाओं का अपहरण' 19.2 प्रतिशत, गरिमा के ठेस पहुंचाने (शील भंग) करने के इरादे से ‘महिलाओं पर हमले' के तहत 18.7 प्रतिशत और ‘बलात्कार' 7.1 प्रतिशत के मामले दर्ज किए गए.

वहीं दुनिया भर की बात करें तो वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट वीमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2023 के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर कामकाजी उम्र की करीब 240 करोड़ महिलाओं को अभी भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, इस अंतराल को भरने में 50 साल और लगेंगे. इधर, 178 देशों में ऐसी कानूनी अड़चने हैं जो महिलाओं को अपना पूरा आर्थिक योगदान देने से रोक रही हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत कम निवेश किया जाता है. इसी तरह रोजगार में भी उनके पास पुरुषों से कम अवसर उपलब्ध होते हैं. यदि मौका मिल भी जाए तो उन्हें पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है. आंकड़ों के अनुसार, 24.5 करोड़ महिलाएं या युवतियां अपने ही साथी से हर साल शारीरिक/यौन हिंसा का शिकार बनती हैं.

प्रिया शर्मा NDTV की पत्रकार हैं. एंटरटेनमेंट और जमीनी स्तर के मुद्दों के बारे में लिखना काफी पसंद है.

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.) 

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