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किसानों की मांगें कितनी जायज ?

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Sumant Singh Gaharwar
  • विचार,
  • Updated:
    February 15, 2024 3:56 pm IST
    • Published On February 15, 2024 15:56 IST
    • Last Updated On February 15, 2024 15:56 IST

चाणक्य ने कहा था, "प्रजा की रक्षा करना राजा का परम कर्तव्य होता है, प्रजा के दुख में ही राजा का दुख है और प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है." हालांकि यह वाक्य किसी दूसरे संदर्भ में कहा गया था, लेकिन फिर भी उसके अंश यहां पर लिख रहा हूं. शायद इसका कारण यह भी है आज की परिस्थिति को देखते हुए यह वाक्य बिलकुल उपयुक्त है. पिछले दिनों सरकार से बातचीत असफल होने के बाद किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच कर तो दिया. लेकिन, किसानों के इस कदम से एक बहस छिड़ गई है. इस बीच एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या किसानों की मांग प्रासंगिक है? अगर है तो ये मांगें अभी तक पूरी क्यों नहीं हुई? जिसकी वजह से किसान फिर से सड़कों पर आ गए. क्या सरकार इन मांगों को पूरा करने में असमर्थ है? या ये मांगें पूरी तरह से निराधार हैं, जिन्हें पूरा ही नहीं किया जा सकता. ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब जानना बेहद जरूरी है. किसान लंबे समय से एमएसपी को कानूनी तौर पर लागू करने की मांग करते आए हैं. खासतौर पर इसकी सबसे ज्यादा मांग 2020-21 के किसान आंदोलन में उठी. लेकिन उस समय सरकार ने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया. किसान भी इस आश्वासन को मान गए. आगे चलकर सरकार ने इसके लिए कमेटी भी बनाई, लेकिन उसके बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. 

अब किसानों ने चुनाव के पहले मौका भुनाने की कोशिश की है. चुनावी दबाव के बीच किसानों की कोशिश रहेगी कि सरकार उनकी मांग पूरी करे.हालांकि एमएसपी को लेकर मतभेद भी देखने को मिलता है. कइयों का मानना है कि एमएसपी पर कानून बनाना प्रासंगिक नहीं है. इससे सरकार पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा. लेकिन, एक सत्य ये भी है कि सरकार देश भर के किसानों से जो अनाज खरीदती है, उसे देश के करीब 80 करोड़ लोगों में फ्री राशन के रूप में बांटा जाता है.

सरकार यह अनाज एमएसपी पर ही खरीदती है. यह खर्चे को सरकार बखूबी सहती है. फिर सवाल यह उठता है कि अगर सरकार एमएसपी पर अनाज खरीद कर 80 करोड़ लोगों को फ्री में राशन दे सकती है तो किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी क्यों नहीं दे सकती? यहां पर सरकार के ऊपर आर्थिक दबाव का तर्क भी खत्म हो जाता है. वैसे अगर देखा जाए तो एमएसपी की कानूनी गारंटी सरकार के वादे को पूरा करने में भी मदद करेगा. 

आपको अगर ज्ञात हो कि सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जाएगी. लेकिन, अब तो 2024 आ गया. किसानों की आय दोगुनी तो नहीं हुई, ऊपर से बाजार की हालत को देखकर किसान सड़क पर उतरने को मजबूर जरूर हुए. यहां पर बाजार का जिक्र इसलिए भी आया क्योंकि बाजार के उतार-चढ़ाव का खामियाजा किसान को उठाना पड़ता है. छोटे किसान आर्थिक तौर पर इतना मजबूत नहीं होते कि वे कम दामों पर अनाज बेच पाएं. इसलिए एमएसपी की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है.एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच किसान इस कश्मकश में होते हैं कि कहीं उनकी फसल का अच्छा दाम नहीं मिला तो वे क्या करेंगे? ये किसी से छिपा नहीं है कि फसल खराब होने की स्थिति में बाजार में दाम आसमान पर होते हैं, जबकि अच्छी फसल होने की स्थिति में यही दाम इतने कम हो जाते हैं कि किसान घाटे में आ जाते हैं. इसका फायदा व्यापारी वर्ग या मंडी माफिया उठाते हैं. और जब किसान को फसल का उचित दाम नहीं मिलता तो वे आत्महत्या करते हैं. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 154 किसान-मजदूर आत्महत्या करते हैं. साल 2022 में देश भर में करीब 11290 किसानों ने आत्महत्या की.

इस देश में निम्न वर्गीय किसान या कहें लघु और सीमांत किसानों की संख्या (लगभग 85 प्रतिशत) सबसे ज्यादा है, जिनके पास बहुत कम जमीन होती है और उसी में उन्हें अपना जीवन यापन करना होता है. फसलों का सही दाम नहीं मिल पाने की वजह से इन किसानों की सालाना आय एक लाख या उससे कम ही रह जाती है.

किन्हीं मामलों में ये अगर एक लाख रुपये से ऊपर भी होगी तो आप खुद सोचें और बताएं. क्या एक परिवार अपना साल भर का खर्च एक लाख या उससे थोड़ा ज्यादा की सालाना आय पर निकाल सकता है? आपका जवाब होगा नहीं. ऐसे में किसान कर्ज के जाल में फंसता जाता है और अंत में आत्महत्या करता है.

किसानों की दुर्दशा का एक कारण जलवायु परिवर्तन भी है, जिसका खामियाजा किसान को उठाना पड़ता है. बारिश, बाढ़, सूखा या आए दिन आने वाले तूफान, इन सब का बुरा परिणाम किसान को भुगतना पड़ता है. इतना ही आपदा से खराब हुई फसलों के मुआवजे के लिए किसानों का दर-दर भटकना भी जगजाहिर है.भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के मुताबिक, कृषि क्षेत्र का योगदान महज 17.3 प्रतिशत है. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि करीब 62 प्रतिशत देश की आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी हुई है और देश की 50 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. सरकार साल दर साल कृषि बजट में वृद्धि तो कर रही है लेकिन, किसानों की आय आज भी न्यूनतम स्तर पर है.ऐसे में किसानों को एमएसपी की गारंटी देना एक जड़ी बूटी के समान है. एमएसपी की गारंटी के चलते उन्हें बाजार के उतार चढ़ाव से राहत मिलेगी और उन्हें फसलों का एक न्यूनतम मूल्य मिलेगा. जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी ठीक होगी और उनकी आय को दोगुनी करने में मदद मिलेगी. डॉ स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट भी किसानों के लिए एमएसपी सुनिश्चित करने की सिफारिश करती है. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि किसानों के लिए फसल का औसत खर्च या लागत और उसमें 50 प्रतिशत की वृद्धि करके एमएसपी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. जिसे C2+50% फॉर्मूला भी कहा जाता है. डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट किसानों के हक के लिए कई मांग रखती है. यही वजह है कि हर बार किसान इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते हैं. इस बार भी किसान इन सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं.

किसानों की एक और मांग है जो एमएसपी की तरह ही प्रासंगिक है. वो है किसान और मजदूर वर्ग को पेंशन की व्यवस्था. दरअसल, किसान और मजदूर वर्ग एक ऐसा वर्ग है जिसके लिए कोई पेंशन व्यवस्था नहीं है. बुढ़ापे में इस वर्ग के लिए कोई भी सहायता राशि नहीं होती है. सरकार ने जैसे प्राइवेट और सरकारी सेक्टर में पेंशन स्कीम की व्यवस्था की है, उसी की तर्ज पर किसानों और मजदूरों के लिए पेंशन व्यवस्था होनी चाहिए.

बेशक यह पेंशन की राशि भले ही उतनी ज्यादा न हो, लेकिन कम से कम वृद्धावस्था में किसानों और मजदूरों के गुजारे के लिए एक न्यूनतम पेंशन व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए.किसानों के आंदोलन पर एक आरोप हमेशा लगता रहा है, वो है इस आंदोलन को राजनीतिक रूप से प्रेरित और पोषित बताना. इसका मुख्य कारण ये भी है कि किसान आंदोलन में पंजाब के किसानों की बहुलता देखी गई है. या ये कहें कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ही आंदोलन में शामिल हुए हैं. लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि देश के दूसरे हिस्से से किसान इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए. बाकी राज्यों से भी किसान आए, लेकिन उनकी संख्या बेहद कम थी. 

इसके दो कारण हैं. एक तो, देश की राजधानी दिल्ली की भौगोलिक स्थिति और दूसरी पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के किसानों की प्रभुता. हरित क्रांति भी इस क्षेत्र में ही सबसे आगे आई है, जिसके चलते यहां के किसान समृद्ध हुए. भौगोलिक आधार पर देखें तो दिल्ली की इन क्षेत्रों से करीबी होने चलते सबसे ज्यादा किसान इन्हीं क्षेत्रों से शामिल हुए. वहीं संप्रभुता के आधार पर देखें तो हरित क्रांति के समय से ही यहां के किसान आगे बढ़े और देश में किसानों का नेतृत्व किया. यह किसान संगठनों और यूनियन में भी देखा जा सकता है.

ज्यादातर संगठन और यूनियन के नेता इसी क्षेत्र से है. लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये संगठन देश भर के किसानों का नेतृत्व करते हैं. इसलिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश भर के किसान इस आंदोलन में शामिल हैं.दरअसल, किसान की मांगें तो पूरी तरह से प्रासंगिक हैं, देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी कृषि पर आधारित है.

आजादी के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगातार घटता गया है. इसके सबसे बड़े कारणों में से एक कारण किसानों की कम आय भी है. हम आज जैविक कृषि और आधुनिक तकनीक से खेती करने की बातें तो जरूर कर रहे हैं, लेकिन क्या आपको सच में लगता है कि इस देश का किसान वर्ग, जहां सबसे ज्यादा छोटे किसानों की संख्या है, वो खेती में ड्रोन जैसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसका जवाब है नहीं क्योंकि यहां पर उनकी आय आधुनिकता के आड़े आएगी. किसानों की आय को मजबूती देने के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी बहुत जरूरी है.

सुमंत सिंह गहरवार NDTV के पत्रकार हैं.जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग करना और उसके बारे में लिखना काफी पसंद है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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