Madhya Pradesh News: सरकारें जनता के हित की बात कहती तो हैं, लेकिन कागजी हकीकत, जमीनी हकीकत से बिल्कुल अलग नजर आती है. ऐसा ही नजर आ रहा है मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में. यहां की सरकार ने शिक्षा को कानूनी अधिकार तो दिया लेकिन यहां से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो सारी पोल खोल रही हैं. आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में कशेरू गांव की प्राथमिक शाला एक झोपड़ी में संचालित की जा रही है.
आसपास बांधवगढ़ का खूंखार जंगल भी है
यहां चारों तरफ बांधवगढ़ का खुूंखार जंगल है जहां बाघ जैसे खतरनाक जानवर हैं. इन सबके बावजूद छत पर तिरपाल व दीवार के नाम पर चारों तरफ झाड़ियों की आड़ के बीच में प्राथमिक शाला चल रही है. जहां छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. कशेरू में छात्रों की पढ़ाई का यह दृश्य देखकर आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की दुर्दशा किसी को भी विचलित कर सकती है.
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जिला मुख्यालय से है करीब 50 किलोमीटर दूर
जानकारी के अनुसार उमरिया जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर कशेरू गांव मानपुर विकासखण्ड के अंतर्गत आता है. बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व में पतौर कोर एरिया की वन सीमा चारों तरफ से इसे घेरे हुए है. वन ग्राम होने के कारण अक्सर किसानों के खेत में बाघों का मूवमेंट भी होता रहता है. ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में पिछले करीब नौ साल से ग्रामीणों के बच्चों को पढ़ाई के लिए एक मुकम्मल भवन नहीं मिल पाया है. गांव के एक व्यक्ति के कच्चे मकान में ही पहले अस्थाई तौर पर कक्षाएं चल रही थीं. साल की शुरूआत होते ही उसने भी भवन देने से हाथ खड़े कर दिए. नतीजा यह हुआ कि शिक्षकों को अभिभावकों के साथ मिलकर गांव में खाली पड़ी जमीन पर झोपड़ी के नीचे कक्षाएं संचालित करनी पड़ रही हैं.
कशेरू गांव की प्राथमिक शाला में भवन की कमी के पीछे सर्व शिक्षा विभाग जिम्मेदार है. विभाग का कहना है बांधवगढ़ का वन ग्राम होने के कारण फाइले तेजी से आगे नहीं बढ़ रही हैं.
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