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Water Scarcity: बूंद-बूंद पानी के लिए 60 फीट गहरे कुएं और बावड़ी में उतरने को मजबूर हुए छोटे बच्चे, सूख गए हैं तालाब

Water Problem in MP: एमपी के आगर मालवा जिले के सबसे बड़े पंचायत के लोग पीने के पानी के लिए हर दिन अपनी जान को जोखिम में डालते हैं. यहां पानी के लिए लोगों को गहरे कुएं में अंदर उतरना पड़ता है. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

Water Scarcity: बूंद-बूंद पानी के लिए 60 फीट गहरे कुएं और बावड़ी में उतरने को मजबूर हुए छोटे बच्चे, सूख गए हैं तालाब
Agar Malwa Water Problem: ग्रामीणों को पानी की समस्या का करना पड़ रहा सामना

Agar Malwa Water Problem: जैसे-जैसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में गर्मी अपने चरम पर पहुंच रही है, जलसंकट की भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं... ऐसा ही मामला राज्य के आगर मालवा जिले की सबसे बड़ी पंचायत तानोडिया से सामने आया है. यहां के करीब 15 हजार लोग आजादी के बाद से ही पानी के संकट (Water Scarcity) की मार झेल रहे है. गांव में पेयजल का बड़ा स्त्रोत जो तालाब है, वो मार्च महीने में सुख कर मैदान बन गया है. इसमें तरबूज की खेती होने लगती है... जबकि, यहां चार सरकारी कुएं हैं, जिनमें भी पानी नहीं होने के चलते आसपास के ट्यूबवेल या अन्य माध्यमों से सांपवेल तक पानी पहुंचाने की कवायद होती है. लेकिन, वो भी इतना कम होता है कि लोगों को दस दिनों में एक बार ही नल से पानी मिल पाता है.

बुजुर्ग भी पानी के लिए हैं परेशान

बुजुर्ग भी पानी के लिए हैं परेशान

कुएं के अंदर उतरते हैं छोटे बच्चे

पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे मासूम बच्चे स्कूल छोड़कर जान जोखिम में डालकर गहरे कुएं में उतरते हैं. बुजुर्ग महिलाएं भी 50 सीढ़ियों से नीचे उतरकर पीने के पानी के लिए कुएं में मशक्कत करती हैं. स्कूल जाने वाले बच्चों के ख्वाब पानी में बहे जा रहे हैं और बुजुर्गों की उम्र पानी के इंतजार में बीत रही है. नल जल योजना की पाइपलाइन तो घर-घर पहुंच गई, लेकिन पानी अभी तक नहीं पहुंच पाया है.

तालाब में होती है तरबूज की खेती

तानोडिया पंचायत के तालाब में जाने पर पता चला कि हर साल तालाब सूखने पर कुछ परिवार इसमें तरबूज की खेती करते हैं और अपना गुजर-बसर करते है. तालाब का क्षेत्रफल लगभग 50 बीघा का बताया जाता है और इसमें मार्च महीना आते-आते 50 बूंद पानी भी नहीं बच पाता है. तालाब की पाल पर ही ओवरफ्लो का नका बना हुआ, जो संधारण का इंतजार कर रहा है. तालाब की पाल के पीछे बने चार शासकीय कुएं है जो पूरी तरह जवाब दे चुके हैं.

गांव की सड़कें भी सही नहीं

गांव की सड़कें भी सही नहीं

82 साल के बुजुर्ग भी हैं परेशान

कुएं पर एक बुजुर्ग रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींच रहे थे. उन्होंने अपना नाम देवनारायण और उम्र 82 साल बताई, जो उनके चेहरे पर भी झलक रही थी. बेजान शरीर से हांफते हुए खींचे हुए पानी को प्लास्टिक के डब्बे में भरकर अपनी साइकिल से घर का सफर करने में शरीर की सारी ताकत लग जाती है. किसी एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें सहारा दिया तो पथरीले रास्ते से जाने में थोड़ी मदद मिली. उन्होंने बताया कि घर से एक किलोमीटर दूर साइकिल पर खाली बर्तन और रस्सी साथ लाकर कुएं से पानी खींच कर के जाते हैं.

पानी टंकी का उपयोग नहीं

कुएं के पास ही एक बड़ी पानी की टंकी बनी हुई है. इसे पीएचई ने करीब 20 साल पहले बनवाया था. लेकिन, इसका उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है. कुएं से पानी भरने वाले विनोद ने बताया कि एक परिवार में रोज करीब 100 लीटर पानी लगता है, जो कुएं से ले जाना पड़ता है. क्योंकि गांव में आठ दिन में एक बार नल आता है. उसका इस्तेमाल पीने के लिए नहीं कर सकते हैं. आठ दिनों में पानी खराब हो जाता है और पीने लायक नहीं रहता है.

छोटी बच्चियां ढोती हैं सिर पर पानी

छोटी बच्चियां ढोती हैं सिर पर पानी

महिलाएं-बच्चियां सभी ढो रही पानी

गांव की नई आबादी इलाके में चार बहने अपने सिर पर पानी के बर्तन उठाए अपनी मां के साथ दिखाई दी. चारों बहने अपनी उम्र से अधिक बोझ सर पर उठाएं हुए थी. रास्ते में पांच साल की बच्चियों से लेकर 80 साल तक की बुजुर्ग महिलाएं अपने सिर पर पानी का बोझ उठाकर ले जाती है.

100 साल से पुरानी बावड़ी से लाते हैं पानी

गांव के बाहर श्मशान के पास जंगल में एक निजी बावड़ी बनी हुई है, जिसकी दरकती चारदीवारी बताती है कि इसकी उम्र 100 साल से ज्यादा हो चुकी है. बावड़ी के बाहर और अंदर बच्चियों और महिलाओं की भीड़ और पानी भरने का शोर हमेशा सुनाई देता है. बावड़ी का जल स्तर बहुत नीचे तल तक पहुंच चुका है. गांव की आधी से ज्यादा आबादी के पीने के पानी का यही एकमात्र माध्यम है.

सरपंच पति ने कही ये बात

गांव के सरपंच पति राजेंद्र सिंह से इस परेशानी को लेकर बात की गई, तो उन्होंने कहा कि जो तालाब है, उसमें सीपेज की वजह से पानी जल्दी खत्म हो जाता है. मार्च महीने तक तो का प्रबंधन हम जैसे-तैसे करते हैं, लेकिन अप्रैल महीना लगते ही समस्या विकराल रूप लेने लगती है. पानी की पूर्ति के लिए तानोडिया गांव में आसपास के ट्यूबवेल और अन्य माध्यमों से शासकीय कुएं में पानी भरा जाता है और यहां से पंचायत के संपवेल में स्टोर किया जाता है. संपवेल से गांव में पानी की सप्लाई करते है. गांव में करीब चालीस अलग अलग लाइन है  जिससे अलग अलग क्षेत्रों में पानी पहुंचता है.

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जनपद के सीईओ मोहनलाल स्वर्णकार ने फोन पर हुई चर्चा में बताया कि कलेक्टर राघवेंद्र सिंह के निर्देश पर जल संसाधन विभाग के अधिकारियों और इंजीनियर के साथ तालाब का निरीक्षण किया है. ये पाया है कि तालाब में पार्कुलेशन बहुत ज्यादा है, जिसके कारण जल संग्रहण नहीं हो पा रहा है. इसका निदान कैसे किया जा सकता है, इस पर काम चल रहा है. फिलहाल गांव के ऐसे कुएं बावड़ी जिनमें पानी मौजूद है, उन्हें नियमानुसार अधिग्रहण करके पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित किए जाने की कोशिश कर रहे है.

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