विज्ञापन

विस्थापन 12 साल पुरानी, सुविधाओं का वादा करके गायब हो गई सरकार! आजाद भारत में जीवन संघर्ष करने को मजबूर ग्रामीण

Mahasamund Migration Problem: बलौदाबाजार जिले से 12 साल पहले नवापारा गांव को विस्थापित करके महासमुंद जिले में रामसागर नाम से बसाया गया. लेकिन, यहां वर्तमान में रह रहे 1100 की आबादी के पास सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. पानी के लिए भी उन्हें कई किमी का सफर तय करना पड़ता है, जो पीने के लायक नहीं होता है. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

विस्थापन 12 साल पुरानी, सुविधाओं का वादा करके गायब हो गई सरकार! आजाद भारत में जीवन संघर्ष करने को मजबूर ग्रामीण
Ramsagar Village: विस्थापित गांव के लोगों को हो रही बहुत परेशानी

Mahasamund News in Hindi: विस्थापन का दर्द एक ऐसा दर्द है, जिससे शायद हर कोई गुजरता है. लेकिन, अगर जबरन किसी को विस्थापित कर दिया जाए, तो इससे बड़ा दर्द शायद कुछ नहीं हे सकता है... एक ऐसा ही मामला है, जहां शेरों सहित अन्य वन्य प्राणियों को बसाने के लिए एक गांव को उजाड़ कर उसे विस्थापित कर दिया गया... हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बलौदाबाजार (Baloda Bazar) जिले के बारनवापारा अभ्यारण्य (Barnawapara Sanctuary) क्षेत्र के नवापारा गांव की. इसे 2013 में विस्थापित कर महासमुंद (Mahasamund) जिले में रामसागर के नाम से नया बसाया गया. महासमुंद ब्लॉक में ग्राम पंचायत भावा के आश्रित रामसागर (Ramsagar) गांव को महासमुंद जिले में पहाड़ियों और जंगल के बीच वन क्षेत्र में बसाने के लिए करीब 11 वर्षों तक कवायद चली.

2002 में सर्वे करने के बाद प्रशासनिक तैयारियां शुरू हुईं और 2013 में ग्राम नवापारा को पूरी तरह विस्थापित कर महासमुंद जिले में रामसागर नाम से नए रूप में ढेरों वादों और आश्वासनों के साथ बसाया गया.

नवापारा के विस्थापन की कहानी

साल 2013 में नवापारा गांव के 168 परिवारों के लगभग 650 ग्रामीणों को 27 किलोमीटर दूर ला कर रामसागर में विस्थापित किया गया. पहले वन ग्राम में रहने वाले ग्रामीणों को रामसागर में राजस्व गांव का दर्जा देने और सभी सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का भरोसा दिया गया. आधी खुशी, आधा गम लेकर रामसागर आए ग्रामीणों को अब लगता है कि उन्हें विस्थापित कर कालापानी की सजा दी गई है. मई 2013 में रामसागर आने के बाद से अब तक 12 वर्षों में रामसागर को राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिल पाया है... 168 परिवारों को विस्थापन में प्रति परिवार पांच एकड़ कृषि भूमि, 2 BHK मकान और 50 हजार रुपए दिए गए.

विस्थापित गांव के लोगों को नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ

विस्थापित गांव के लोगों को नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ

जर्जर स्थिति से हुई थी शुरुआत

विस्थापित हुए आदिवासी बहुल लोगों को जो मकान दिए गए, वो शुरू से ही भ्रष्टाचार की मार से जर्जर और बहुत कमजोर हैं. प्लास्टर उखड़कर सरिया दिखा रहे, पानी टपकते छत गिरने के कगार पर हैं, तो खिड़की-दरवाजों की हालत देखकर किसी को भी रोना आ जाएगा... आज 1100 से अधिक की आबादी वाले रामसागर में सभी के लिए पानी का एकमात्र बोरवेल है, जहां से दिन भर महिला-पुरुष एक से डेढ़ किलोमीटर दूर तक पानी लेकर जाते हैं. नल जल योजना यहां लागू ही नहीं है. इस गांव के 100 से अधिक वृद्ध महिला-पुरुष, विधवा महिलाएं और तलाकशुदा महिलाओं को पिछले 12 वर्षों से ना तो वृद्धा पेंशन, ना तो निराश्रित पेंशन और ना ही विधवा पेंशन भी नहीं मिल रहा है. ग्राम रामसागर के लगभग 130 से अधिक छात्र-छात्राओं का ना तो जाति प्रमाणपत्र बन पा रहा है और ना ही उन्हें छात्रवृत्ति मिल पा रही है.

Latest and Breaking News on NDTV

रोजगार की भी महामारी!

रामसागर में रोजगार का हाल भी बेहाल है. विस्थापन से पहले गांव के वासियों को अभ्यारण्य क्षेत्र में भरपूर रोजगार मिलता था, वनोपज से अच्छी आमदनी हो जाती थी, लेकिन अब वनोपज से आमदनी तो दूर, 12 सालों में रोजगार गारंटी का काम भी नहीं शुरू हो पाया है. 2013 में 168 परिवारों के लगभग 650 ग्रामीण यहां आए थे. अब आबादी बढ़कर 1100 से अधिक हो गई है, लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना यहां लागू ही नहीं है.

आवास योजना के लाभ से हैं अछूत

किसी भी परिवार को अबतक एक भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. पहाड़ों और जंगल के बीच बसाए गए रामसागर तक पक्की सड़क बनाने का वादा था, लेकिन आज तक पक्की सड़क नहीं बनी और ना ही टूटे हुए पुल को सुधारा गया है. एकमात्र कच्ची सड़क पर बरसात के दिनों में आवागमन ठप हो जाता है और पूरा गांव कैदी बन जाता है! नीचे से टूट चुके पुल की मरम्मत के लिए 12 साल पहले लाए गए रिंग आज भी मैदान में ही पड़े हुए हैं.

बिजली भी है गुल

ग्राम रामसागर को 6 गलियों में बसाया गया हैं. सभी गलियों में बिजली के खंभे लगाए गए हैं, लेकिन आज तक इन खंभों पर स्ट्रीट लाइट नहीं लग पाए हैं. जंगल में बसे गांव में रात के अंधेरे में निकलना खतरों से भरा हो जाता है. पांच साल पहले मिडिल स्कूल के लिए भवन की स्वीकृति हुई थी. बावजूद इसके भवन नहीं बन पाने के चलते ग्रामवासी स्वयं के खर्चे पर एक निजी मकान में स्कूल संचालित कर रहे हैं.

जर्जर है रामसागर गांव की सभी सुविधाएं

जर्जर है रामसागर गांव की सभी सुविधाएं

ये भी पढ़ें :- CM Rise School: कहीं गेट से ही वापस किया तो कहीं नहीं दिया एंट्रेंस फॉर्म... सीएम राइज में एडमिशन को लेकर परेशान है पैरेंट्स

कलेक्टर ने कही ये बात

महासमुंद जिला कलेक्टर विनय कुमार लंगेह से इस मामले को लेकर सवाल किए गए. इसपर उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले गांव की महिलाएं समस्या लेकर आई थी. उनका कहना था कि रामसागर को राजस्व गांव बनाया जाए. इसके लिए उन्होंने कहा कि अधिकारियों से बात हुई है. एक सर्वे का काम रहता है. उसका काम पूरा करके पत्र भेजी जाएगी, जिसके बाद ग्रामीणों को लाभ मिलने लगेगा.

ये भी पढ़ें :- Earth Day 2025: सरगुजा में अवैध तरीके से नीलगिरी पेड़ों की कटाई, ट्रकों में भरकर भेजा जा रहा UP-हरियाणा, प्रशासन बेपरवाह

MPCG.NDTV.in पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार,लाइफ़स्टाइल टिप्स हों,या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें,सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close