
Vulture Conservation in India: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धूल भरे मैदानों से लेकर अफगानिस्तान (Afghanistan) के नीले आसमानों तक, एक सफेद पीठ वाला गिद्ध अपनी किस्मत के नए क्षितिज छूने निकल पड़ा है. यह सिर्फ एक पक्षी की नहीं, बल्कि उम्मीदों की उस उड़ान की कहानी है, जो टूटे परों के बावजूद जिंदा रहा.
देशभर में गिद्ध संरक्षण के लिए बीते वर्षों में उल्लेखनीय प्रयास हुए हैं. इसी कड़ी में मध्य प्रदेश में 2014 में केरवा डैम पर स्थापित किया गया गिद्ध प्रजनन केंद्र अब फल दिखा रहा है. यहां तैयार हुए गिद्धों को खुले आसमान में छोड़ा जा रहा है. हाल ही में भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में इलाज के बाद स्वस्थ हुआ एक गिद्ध किर्गिस्तान तक पहुंच गया है, गिद्ध के इस यात्रा की जानकारी जीपीएस ट्रैकर से मिली है.

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सतना के खेत से आसमान की ऊंचाइयों तक
जनवरी में सतना जिले के एक खेत में घायल अवस्था में मिले इस गिद्ध को ग्रामीणों की सूचना पर वन विभाग ने बचाया था. इलाज और देखभाल के बाद इसे भोपाल के वन विहार के वल्चर कंजर्वेशन सेंटर में भेजा गया, जहां दो महीने के इलाज और प्रशिक्षण के बाद 29 मार्च को हलाली डैम क्षेत्र में खुले आकाश में परवाज के लिए छोड़ा गया. इस गिद्ध की स्वतंत्रता की पहली ही उड़ान ने एक नया इतिहास रच दिया. दरअसल, यह विदिशा की पहाड़ियों से राजस्थान की हवाओं को चूमते हुए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ तक पहुंच गया. जीपीएस ट्रैकर से मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल यह गिद्ध किर्गिस्तान में सुरक्षित है. इस संबंध में वन्यजीव चिकित्सक डॉ. श्रवण मिश्रा ने बताया कि गिद्ध थोड़ा असहज था और रास्ता भटक गया था. इलाज के बाद जीपीएस टैगिंग की गई और अब उसकी लोकेशन किर्गिस्तान में ट्रैक हो रही है.
मध्य प्रदेश बना 'वल्चर स्टेट'
मध्य प्रदेश को 'वल्चर स्टेट' भी कहा जाता है. दरअसल, यहां पन्ना टाइगर रिजर्व से लेकर गांधी सागर तक गिद्धों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया गया है. केरवा डैम स्थित गिद्ध प्रजनन केंद्र की शुरुआत के बाद से अब तक सैकड़ों गिद्धों को खुले वातावरण में छोड़ा जा चुका है. हाल ही में भोपाल के हलाली जंगल क्षेत्र से छह गिद्धों को छोड़ा गया, जिन पर सौर ऊर्जा से संचालित जीपीएस ट्रैकर लगाए गए हैं. इनका प्रजनन गिद्ध संवर्धन और प्रजनन केंद्र केरवा में हुआ है, पहले इनकी स्वास्थ्य जांच और मोरफ़ोमेट्री की गई, शारीरिक जांच और ब्लड सैंपल में इन्हें स्वस्थ पाया गया. इसके बाद 12 अप्रैल को गिद्धों पर सौर ऊर्जा से चलने वाले जीपीएस ट्रैकर लगाए गए, ताकि उनके रास्ते और रहवास को ट्रैक किया जा सके. वन विहार के निदेशक अवधेश कुमार ने बताया कि हलाली डैम क्षेत्र में गिद्धों को छोड़ने से पहले व्यापक सर्वेक्षण किया गया था. जीपीएस टैगिंग के जरिए सभी गिद्धों की निगरानी की जा रही है.
गिद्धों की संख्या में उत्साहजनक बढ़ोतरी
प्रदेश में गिद्धों की गणना के आंकड़े भी उत्साहजनक हैं. 2019 में राज्य में 8397 गिद्ध थे, जो 2024 में बढ़कर 10,845 हो गए हैं. पन्ना क्षेत्र में सबसे बड़ा गिद्धों का कुनबा है, जहां 900 से अधिक गिद्ध दर्ज किए गए हैं. राज्य में गिद्धों की सात प्रजातियां देखी गई हैं, जिनमें चार स्थानीय और तीन प्रवासी प्रजातियां शामिल हैं. मध्य प्रदेश में 10 साल में गिद्धों की संख्या दोगुनी हो गई. 16 सर्कल, के 64 डिवीजन में जो गिनती हुई, उसके मुताबिक आज की तारीख में प्रदेश में 12,981 गिद्ध हैं.
संरक्षण में सावधानी जरूरी
हालांकि, सफलता के साथ चुनौतियां भी बनी हुई हैं. जानवरों में इस्तेमाल होने वाली 'डायक्लोफेनाक' दवा, जो गिद्धों के लिए घातक साबित हुई थी, भले ही प्रतिबंधित कर दी गई हो, लेकिन विषाक्त भोजन का खतरा अब भी बना हुआ है. पर्यावरणविद रशीद नूर ने चेताया है कि "गौशालाओं और खुले मैदानों में जहरीले इंजेक्शन लगे मृत जानवर अब भी मौजूद हैं, जिनके सेवन से गिद्धों की मौत हो सकती है. लिहाजा, निरंतर निगरानी बेहद जरूरी है.
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आसमान में गूंजते हैं जीवन के संदेश
धरती के सफाई कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों का संरक्षण केवल एक प्रजाति को नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बचाना है. जब गिद्ध उड़ते हैं, तो उनके साथ जीवन के चक्र भी गतिशील होते हैं. छोटे-छोटे कदमों से... सतना से उठी एक टूटी हुई उम्मीद ने आज किर्गिस्तान तक अपनी गूंज पहुंचा दी है. पन्ना के जंगलों में, सतना के खेतों में, हलाली के आसमान, जहां भी नजर दौड़ाइए... कभी शर्मीला सा, कभी चुपचाप उड़ता हुआ, यह दरबार फिर से सजने लगा है.
यह कहानी सिर्फ सतना के घायल गिद्ध की नहीं, बल्कि उन तमाम सपनों की है, जो टूटी हुई उम्मीदों के बावजूद नई ऊंचाइयों की ओर उड़ान भरने का हौसला रखते हैं.
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