Madhya Pradesh News : रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय (Rabindranath Tagore University) में चल रहे टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव (Tagore International Literature and Arts Festival ) विश्वरंग 2023 (Vishwarang 2023) का तीसरा दिन साहित्य उत्सव के रूप में आयोजित किया गया. शनिवार को दिन की शुरुआत मंगलाचरण से हुई, जिसमें महेश, अमित और ऋषभ ने वायलिन पर तिगलबंदी पेश की. वहीं, सुबह के प्रमुख सत्र की शुरुआत वीडियो फिल्म “धरती” की स्क्रीनिंग से हुई. इसके बाद “हमारी धरती का भविष्य” विषय पर व्याख्यान सत्र में देवेंद्र मेवाड़ी का प्रमुख वक्तव्य रहा एवं सानिध्य विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे और साहित्यकार महादेव टोप्पो का रहा.
पृथ्वी के निर्माण की कहानी
अपने वक्तव्य में देवेंद्र मेवाड़ी ने 4 अरब 60 करोड़ साल पुराने समय से पृथ्वी के निर्माण की कहानी बताई. इस दौरान उन्होंने दशक वार पृथ्वी और इस सृष्टि के निर्माण को क्रमवार बताया. उन्होंने आज के कंप्यूटर युग को भी परिभाषित किया और कोरोना कल की वैश्विक महामारी को भी रेखांकित किया. उन्होंने इस बात पर भी चिंता जाहिर की कि यदि इसी तरह प्रदूषण बढ़ता रहा तो, वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य जीवन ही खत्म हो जाएगा. वहीं, संतोष चौबे ने कहा कि प्रकृति का विनाश करने वाली विचारधारा को खत्म करना बेहद जरूरी है, तभी हम प्रकृति के संरक्षण की दिशा में काम कर सकेंगे. उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को दोहराते हुए कहा कि महात्मा गांधी प्रकृति की रक्षा की बात कही थी, जिसे हमने भुला दिया है.
प्रतिभा सिंह बघेल के गीतों ने किया मंत्रमुग्ध
विश्वरंग की सांस्कृतिक गतिविधियों की श्रृंखला में तीसरे दिन का प्रमुख आकर्षण प्रतिभा सिंह बघेल की सिंगिंग परफॉर्मेंस रही. इसमें उन्होंने बॉलीवुड सॉन्ग्स की जबरदस्त प्रस्तुति से हर किसी को झूमने पर मजबूर किया. जबकि शाम के सांस्कृतिक सत्र की शुरुआत रोहित रुसिया एवं समूह द्वारा गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति से हुई. इसमें उन्होंने “तेरा मेरा मनवा...”, “समय का साथी”, “”राम की चिरैया उड़ गई रे...”, “चदरिया झीनी रे झीनी...”, “हमन है इश्क मस्ताना....” और तेरी दिवानी की प्रस्तुति दी.
मुझमें और मेरी कहानी के बीच एक सच्चाई होती है : नीलेश मिश्रा
साहित्य की दुनिया के विभिन्न पहलुओं पर हुआ विमर्श इस दौरान “लेखक की दूसरी दुनिया” सेशन में लेखक और पॉडकास्टर नीलेश मिश्रा के साथ संवाद सत्र का आयोजन किया गया. इसमें ‘याद शहर की' कहानी पर चर्चा करते हुए नीलेश मिश्रा ने कहा कि नॉस्टेल्जिया को एक प्रॉप समझेंगे तो आप कभी भी सच्चे और ऑथेंटिक नहीं हो सकते. नॉस्टेल्जिया एक जेवर है. नॉस्टेल्जिया आपका घर है. हम अपने घर की और जब जाते हैं तो ये चीजें होती है, लेकिन दुनिया को देखने का तरीका होता है. खाना खाने का तरीका होता है, रिश्तों का एक तरीका होता है. सपने देखने का एक तरीका, कौन-से सपने बड़े है उसके लिए और कोई तरीका होता है. ये दुनिया साथ में लेकर आता है नॉस्टेल्जिया. नॉस्टेल्जिया के इर्द गिर्द कहानियां बुनना और नॉस्टेल्जिया मतलब जो बीत गया. असल में वो बीता नहीं था असल में तो हम साथ लेकर चल रहे थे. शहर की धूल जम गई थी बड़े शहर में. मैं किसी एक्सेल शीट या मार्केटिंग के प्लान के तहत ये कहानियां नहीं सुना रहा था. मेरी सबसे बड़ी लड़ाई उन्हीं सबसे रही जो किसी विदेश की यूनिवर्सिटी से पढ़कर आ गए और कहे कि ये सही नहीं है. लेकिन वो जो दुनिया मेरी रेडियो पर जब मैंने शुरू किया कोई टारगेट बनाकर शुरू नहीं किया था. मुझे कहानी लिखना भी नहीं आती थी. मैंने शो बनाने के बाद लिखना शुरू किया था. उस कहानी का नाम था ‘दिवाली की रात'. उस कहानी में बस इतना सा था कि एक आदमी दीवाली के दिन घर नहीं जा पा रहा है. बहुत साल बाद देखा कि लोग इनसे कनेक्ट कर पा रहे हैं. किसी ने नहीं समझाया कि मुझे कैसी कहानी सुनानी है. मेरी और कहानी के बीच सिर्फ एक सच्चाई है. आज भी जब कहानी सुनाता हूं तो गला भर जाता है. सत्र का मॉडरेशन विकास अवस्थी ने किया.
विशेषज्ञों ने OTT और सिनेमा पर रखे अपने विचार
साहित्य और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विषय पर सत्र में साहित्यकार मुक्तिबोध पर आधारित डॉक्यूमेंट्री आत्म सम्भवा का प्रदर्शन किया गया. इसकी प्रस्तुति प्रसिद्ध साहित्यकार लीलाधर मंडलोई द्वारा की गई. डॉक्यूमेंट्री के बाद वैचारिक सत्र की शुरुआत हुई, जिसमें अशोक मिश्र, अजय ब्रह्मात्मज, मनमोहन चड्ढा, मनोज नायर ने अपनी भागीदारी की. सत्र की शुरुआत में विचार प्रकट करते हुए मनोज नायर ने कहा कि भाषा के साथ एक्सप्रेशन बेहद जरूरी होता है जबकि नाटक या फिल्म में वही बात दृश्य के माध्यम से प्रकट की जाती है. फिल्म या नाटक पूरे समाज के लिये होता है और इसे ऐसे ही बनाया जाना चाहिए. मनमोहन चड्ढा ने इस मौके पर कहा कि ओटीटी एक तकनीक है और उस पर हमें तय करना चाहिये कि क्या देखना है और क्या नहीं. ऐसा नहीं सोचा जाना चाहिए कि नई तकनीक हमेशा ही समाज पर गलत प्रभाव डालती है. अशोक मिश्र ने कहा कि ओटीटी के लिये लेखन करते समय बेहद फोकस्ड होकर काम करना होता है. सिनेमा के लिये लेखन करते समय लेखक को थोड़ी छूट मिल जाती है. आजकल के परिदृश्य में लेखन बहुत सावधानी से करना जरूरी हो गया है. इस बात का नये लेखकों को ध्यान रखना चाहिये. वैचारिक सत्र के अंत में अजय ब्रहमात्मज ने कहा कि ओटीटी के लिए लिखना, फिल्मों की अपेक्षा थोड़ा कठिन है. ओटीटी एक इंटरनेट लाइब्रेरी की तरह है जहां हर प्रकार की चीजें उपलब्ध है. इसलिये सिर्फ एक ही प्रकार के कंटेट को लेकर आपत्ति नहीं उठाई जानी चाहिए.
ये भी पढ़ें-कानून व्यवस्था पर सख्त CM मोहन यादव, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को सौंपी संभागों की जिम्मेदारी
टीवी जर्नलिज्म : इनसाइड लाइव
“स्पोर्टस् जर्नलिज्म – इनसाइड लाइव” के सत्र में अतिथि के रूप में पहुंचे अनुराग दर्शन ने आज के समय में टेलीविजन में स्पोर्ट्स की रिपोर्टिंग और कार्यक्रम के प्रसारण से संबंधित तकनीकों के बारे में की. उन्होंने “'फोर्थ अंपायर” नामक टेलीविजन शो पर एक वीडियो फिल्म का भी प्रदर्शन किया. रेडियो एवं टेलीविजन में स्पोर्ट्स कमेंट्री के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम, रमन भनोट जी ने भी सत्र में श्रोताओं को संबोधित करते हुए, खेल उद्घोषक के रूप में अपने पत्रकारिता की यात्रा के बारे में बताया. उन्होंने स्पोर्ट्स की लोकप्रियता और आम जन पर उसके प्रभाव के लिये टेलीविजन पत्रकारिता की अहम भूमिका पर विस्तार से चर्चा की. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और संचालक के रूप में राजीव कुमार शुक्ल जी ने विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया. खेल पत्रकारिता में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की यात्रा के बारे में भी श्री शुक्ल जी ने विस्तार से चर्चा की. सत्र में उपस्थित लोगों ने भी काफी उत्साह का परिचय दिया और खेलों में मल्टी कैमरा रिकॉर्डिंग और प्रोडक्शन के बारे में भी प्रश्न पूछे गये, जिनका उत्तर अतिथियों ने भी उसी उत्साह के साथ दिया.
ये भी पढ़ें- MP के ई-नगर पालिका पोर्टल पर हुआ साइबर हमला, 412 शहरी इलाकों को करता है कवर