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विश्वरंग 2023 : भाषा विमर्श के नाम रहा दूसरा दिन, 55 देशों में हिंदी की स्थिति पर रिपोर्ट हुई प्रस्तुत

Bhopal News : विश्व रंग के निदेशक और कार्यक्रम के अध्यक्ष संतोष चौबे ने कहा कि साहित्य को हटाकर हम भाषा की बात नहीं कर सकते. जब भी भाषा की बात होगी हमें साहित्य को साथ में लेकर चलना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि आज टेक्नोलॉजी में अपना स्थान बनाया है. इसे हमें स्वीकार करना होगा.

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विश्वरंग 2023 : भाषा विमर्श के नाम रहा दूसरा दिन, 55 देशों में हिंदी की स्थिति पर रिपोर्ट हुई प्रस्तुत

Madhya Pradesh News : टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव (Tagore International Literature and Arts Festival ) विश्वरंग 2023 (Vishwarang 2023) का औपचारिक उद्घाटन शुक्रवार को रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय (Rabindranath Tagore University) में हुआ. इस दौरान कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप मे कथाकार, पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक' (Ramesh Pokhriyal Nishank Former Minister of Education of India) रहे. उनके साथ मंच पर विशिष्ठ अतिथियों में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी रहे. वहीं अन्य अतिथियों में मॉरिशस के विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ. माधुरी रामधारी एवं वैश्विक हिंदी परिवार के सदस्य अनिल जोशी एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यलय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे, विश्वरंग के सह निदेशक डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, लीलाधर मंडलोई, मुकेश वर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे. 

‘निशंक' ने क्या कहा?

पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक' ने कहा कि यह महोत्सव कलाकार, साहित्यकार, संस्कृतिप्रेमियों का पुंज है. संतोष जी की खासियत है कि वे सोचते भी हैं, बोलते भी हैं और कार्य रूप में परिणित भी करते हैं. आगे उन्होंने कहा कि हिंदी की प्रतिस्पर्धा भारतीय भाषाओं से नही है, यह प्रतिस्पर्धा अंग्रेजी भाषा से है. यह हमें समझना होगा. 

वहीं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वरंग के रूप में भारतीय भाषा और हिंदी के लिए बड़ा कार्य प्रारंभ हुआ है. इसे हम सबको मिलकर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो. शिक्षा को बदलना है तो भाषा को पुनर्स्थापित करना होगा. आगे उन्होंने कहा कि अपनी भाषा का स्वाभिमान होना चाहिए. हमारे सारे पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं का विकल्प होना चाहिए.  

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एक परम तत्व से सब कुछ निकलता है, वैसा ही यह विश्वरंग है जिसमें सबकुछ समाया हुआ है. आगे उन्होंने कहा कि आज की आपाधापी में जब सबकुछ छिन्न भिन्न हो रहा है तब विश्वरंग सुकून की ओर लौटने का महोत्सव है. 

विश्वरंग में भाषा पर चर्चा

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यलय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने विश्वरंग की अवधारणा से अवगत कराया. साथ ही कहा कि हिंदी के सामने इस समय वैश्विक भाषा बनने के संभावना है. लेकिन जो सम्मान हम हिंदी के लिए चाहते हैं, वही सम्मान सभी भारतीय भाषाओं को देना होगा. हमें आवश्यकता है कि लोक भाषाओं के बारे में पुनर्विचार करें. वे भाषा को जीवन रस प्रदान करती हैं. यदि उन्हें छोड़ दो तो कविता याद रखना भी मुश्किल होगा. आगे उन्होंने कहा कि विश्वरंग के जरिए हमने प्रवासी भारतीयों के हिंदी के साहित्यिक कामों को समेटने का काम किया है. हिंदी के विस्तार का काम समुदाय को करना है. हम सरकार की तरफ इतना न देखें. 

विश्वरंग सम्मान

इस अवसर पर कार्यक्रम में विश्वरंग सम्मान भी प्रदान किए गए. इसमें डॉ. धनंजय वर्मा को हिंदी को लिए, डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा को उर्दू के लिए, मनोरंजन ब्यौपारी को बांग्ला, वसंत आबा डहाके को मराठी, सुजाता चौधरी को उड़िया/अंग्रेजी, प्रो. कोलकपुरी एनाक को तेलुगू, एवं महादेव टोप्पो को हिंदी व कुडुख भाषा के लिए सम्मान प्रदान किए गए. इस दौरान हिंदी रिपोर्ट, विश्वरंग कैटलॉग एवं विश्वरंग पत्रिका का लोकार्पण अतिथियों ने किया. 

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वैचारिक सत्र

भाषा उत्सव का प्रमुख वैचारिक सत्र “हमारा भाषाई वैविध्य-हमारी ताकत” विषय पर रहा जिसमें ख्यात लेखक और चिंतक पवन वर्मा बतौर मुख्य वक्ता शामिल रहे. साथ ही अनिल शर्मा जोशी भी बतौर वक्ता शामिल हुए. अपने ऑनलाइन वक्तव्य में पवन वर्मा ने कहा कि टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव के अवसर पर हर वर्ष भारतीय संस्कृति पर गहन विचार विमर्श होता है. इन विचारों पर कम बातचीत होती है इसलिए इन पर विमर्श पर जोर दिया जाना चाहिए. आगे उन्होंने कहा कि यंग माइंड्स को भी इन विषयों पर विचार करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि भाषाओं के मामले में विश्व में भारत दूसरे नंबर पर आता है. हमारे देश में 740 भाषाएं हैं. वहीं, हमसे छोटा देश पपुआ न्यू गिनी है जहां 840 भाषाएं बोली जाती हैं. हजारों सालों में ये भाषाएं उपजी हैं. लाखो करोड़़ लोग इन्हें बोलते हैं. हमें अपनी लिंग्विस्टिक हैरिटेज पर गर्व होना चाहिए. इसमें दो राय नहीं कि भारत में न केवल सबसे ज्यादा हिंदी भाषा बोली जाती है. बल्कि यह बढ़ने वाली भाषा है जिसका विस्तार तेजी से दुनिया भर में हो रहा है. भाषा एक ऐसा विषय है जिसे हमें संवेदनशील तरीके से अपनी ताकत बनाना चाहिए. 

इस दौरान संतोष चौबे ने पवन वर्मा जी की पुस्तक “भारतीयता की ओर” का संदर्भ देते हुए बताया कि यह किताब भारतीयता से बोध कराती है. उन्हें भी इसका अनुभव प्राप्त हुआ है. आज एनईपी ने भारतीय भाषा के वैविध्य को ताकत माना है. भारतीय भाषा को पढ़ाई की भाषा बनाने में 60-70 साल लगे हैं. हमारी भाषाई विविधता का तो अध्ययन ही नहीं हुआ है. भाषाई विविधता को हम सभी को देखना चाहिए.

अनिल शर्मा जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय समाज में आज एक नई सोच विकसित हुई है और इस विमर्श का मकसद जरूरी सवाल सामने लाने का है जैसे क्यों भारतीय भाषा में कम आईएएस और सीए बनते हैं. हमें हिंदी को किसी भी मामले में कमतर नहीं आंकना चाहिए.

सांस्कृतिक सत्र

विश्वरंग के दूसरे दिन संध्याकालीन पूर्वरंग में राजस्थान के पारंपरिक एवम प्रसिद्ध मांगणिहार लोक संगीत की प्रस्तुति हुई. कार्यक्रम की शुरुआत केसरिया बालम गीत से हुई, तत्पश्चात गौरबंध का गायन हुआ. वहीं बाल कलाकार राहुल एवम् भूरा खान ने हसे तो मीठों लागे गीत की प्रस्तुति दी. प्रमुख आकर्षण रहा 17 तारों वाला वाद्य कमायचा जिसका वादन भुगुडा खान कर रहे थे. साथ ही समस्त समूह का समन्वय कर रहे थे भुट्टे खान जी उनके साथ गायक के तौर पर नेहरू खान थे. हारमोनियम पर सखी खान एवम ढोलक पर जोगा खान संगत कर रहे थे. राजस्थान का पारंपरिक लोक वाद्य खड़ताल का वादन जेसा खान कर रहे थे. 

रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम में पंडित अखिलेश गुंदेचा एवम उनके समूह मध्य लय द्वारा ताल कचहरी की प्रस्तुति दी गई. मध्य लय मुख्यतः मध्यप्रदेश के ख्यातिनाम युवा कलाकारों का सामूहिक बैंड है जिसकी शुरुआत 12 साल पूर्व हुई थी. यह बैंड अमेरिका के वैश्विक मंच पर प्रस्तुति दे चुका है. कलाकारों ने महाकाल के 12 ज्योतिर्लिंगों की वंदना करते हुए शुभारंभ किया. तत्पश्चात राग जोग, मध्य लय और द्युति लय में दो बंदिशे प्रस्तुत की और संध्या का समापन एकला चलो रे से किया. शीर्ष गायक के रूप में अखिलेश गुंदेचा, साइड रिदम पर अनूप सिंह बोरलिया, सितार पर अनिरुद्ध जोशी, तबले पर रामेंद्र सिंह सोलंकी और बांसुरी पर पंडित संतोष संत संगत कर रहे थे.


हिंदी शिक्षण पर समानंतर सत्रों में हुआ विमर्श

स्विटजरलैण्ड से आईं ज्योति शर्मा ने कहा कि हिन्दी की स्थिति विश्व पटल पर बेहद उज्जवल है. स्विटजरलैण्ड में हिन्दी की विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने वहां पर छात्रों को हिन्दी अध्ययन कराने के कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं. वहां छात्रों में भी हिन्दी अध्ययन को लेकर ललक दिखाई देती है. हंगरी से आये प्रमोद शर्मा ने हंगरी में हिन्दी अध्यापन में आई चुनौतियों और सफलताओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने अनुवाद को हिन्दी शिक्षा के अध्यापन में महत्वपूर्ण टूल बताया. वहीं इंग्लैण्ड से आए राकेश दुबे ने हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपने द्वारा किये कार्यों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इसके लिये उन्होंने विश्व हिन्दी सम्मान की शुरुआत भी ब्रिटेन में 2006 में की थी. सत्र का संचालन मुक्ति शर्मा ने किया. 

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'हिंदी रोजगार की नही, संस्कार की भाषा है'

चौथा सत्र सामाजिक संस्थाओं द्वारा हिंदी शिक्षण विषय पर आधारित रहा. इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे नारायण कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा की 'हिंदी रोजगार की नही, संस्कार की भाषा है'. प्रथम वक्ता के रूप में नाटिंगम से आईं सुश्री जया वर्मा ने विदेश में हिंदी शिक्षण के लिए किए गए  कार्यों की जानकारी देते हुए बताया कि 1988 में उन्होंने नाटिंगमशिरे काउंटी काउंसिल के माध्यम से मातृभाषा अध्ययन प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसमे छोटी-छोटी बातों के माध्यम से हिंदी शिक्षण का काम किया. तत्पश्चात स्विट्जरलैंड में हिंदी के अध्यापन में कार्य कर रही शिवानी भारद्वाज ने रविवार हिंदी शिक्षण संघ के माध्यम से हिन्दी विद्यालय की स्थापना की साथ ही कोविडकाल में आनलाइन शिक्षा दी.

सोवियत संघ रूस में चल रहे हिंदी शिक्षण के इतिहास के बारे में जिक्र करते हुए प्रगति टिपणीस ने बताया 1957 में भारतीय अनुवादक दल के रूस भेजे जाने के पश्चात वहां हिंदी शिक्षण का कार्य गति पकड़ चुका था और अब रूस में किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को हिंदी सीखने में कोई समस्या नही हो रही. उन्होंने बताया की शैलेंद्र के गाने 'सिर पे लाल टोपी रूसी' और राज कपूर की लोकप्रियता ने भी हिन्दी के प्रति रूसी लोगो का रुझान बढ़ाया था, और वर्तमान में हिंदी अभिनेताओं की लोकप्रियता रूस ने अधिक होने से हिंदी के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. 

भाषा के साथ साहित्य को भी लेकर चलना होगा

हिंदी भाषा शिक्षण मे साहित्य की भूमिका विषय पर सत्र पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभाग अध्यक्ष और साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा शिक्षण में साहित्य के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करना होगा, जो आज बहुत ही प्रासंगिक है. उन्होंने यह भी कहा की साहित्यिक पाठों का चयन और निर्माण कैसे हो, यह हमें तय करने की जरूरत है. इस अवसर पर रेल मंत्रालय, राजभाषा निदेशक डॉ वरुण कुमार ने कहा कि कविताओं, कहानियों, नाटकों आदि के माध्यम से भाषा सीखने में सहूलियत होती है, और भाषा के सभी कौशलों में प्रशिक्षक दक्ष हो जाते हैं. भाषा का ज्ञान होने से मतलब यह है, कि उसके साहित्य का समृद्ध ज्ञान होना होता है.

लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल से पधारे शिवकुमार सिंह ने कहा कि हमारी हिंदी जितनी मजबूत जड़ों यानी अपने देश में में होगी. उतनी ही मजबूत विदेश में होगी. उन्होंने कहा कि भाषा शिक्षण में साहित्य का महत्व हमेशा रहा है, और सदैव ही रहेगा. साहित्यिक कृतियों का इस्तेमाल करते हुए सामग्री का निर्माण किया जाना चाहिए . उन्होंने यह भी कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति वैसे ही एक दूसरे के पूरक हैं. जैसे पेड़ पत्ते और जड़ तीनों की. भाषा में दक्षता तभी प्राप्त हो सकती है यदि प्रशिक्षक इन तीनों पर भी दक्ष हो.वरिष्ठ साहित्यकार बलराम गुमास्ता ने कहा कि मनुष्य बनाने की प्रक्रिया में साहित्य जरूरी है, शब्दों को गतिशील बना बनाना है. जड़ नहीं बनाना है.

कार्यक्रम में विश्व रंग के निदेशक और कार्यक्रम के अध्यक्ष संतोष चौबे ने कहा कि साहित्य को हटाकर हम भाषा की बात नहीं कर सकते. जब भी भाषा की बात होगी हमें साहित्य को साथ में लेकर चलना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि आज टेक्नोलॉजी में अपना स्थान बनाया है. इसे हमें स्वीकार करना होगा. संतोष चौबे ने तमिल कविता भी सुनाई. कार्यक्रम का संचालन विजय मिश्रा सहायक प्राध्यापक हंसराज महाविद्यालय दिल्ली ने किया. इस अवसर पर मैं तोड़ती पत्थर कविता पर वीडियो भी दिखाई गई. 

55 देशों में हिंदी की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट की प्रस्तुति

विश्व में हिंदी सत्र के तहत “विदेश में हिंदी पत्रिकाओं पर फिल्म, विश्व में हिंदी रिपोर्ट” का प्रस्तुतिकरण और चर्चा का आयोजन हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत संतोष चौबे के मार्गदर्शन में डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा निर्मित विदेश में पत्रिकाओं की स्थिति पर बनी फिल्म एवं 55 देशों में हिंदी की स्तिथि पर निर्मित विस्तृत रिपोर्ट की प्रस्तुति से की गई. 

पाठ्यक्रम वार्तालापीय हिंदी के अनुसार हो

विदेशों में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी शिक्षण पर सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ. माधुरी रामधारी ने कहा कि प्राथमिक और मध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या कम होती जा रही है. ऐसे में पाठ्यक्रम इस प्रकार बनाये कि मौखिक पाठ्यक्रम की प्राथमिकता हो. यानि पाठ्यक्रम वार्तालापीय हिन्दी के अनुसार होना चाहिए. छात्र पहले किसी भाषा को सुनता है फिर उसे बोलता है और अंत में वह लिखता है. भाषा की एकरूपता बहुत महत्वपूर्ण है. एकरूपता होगी तभी हिन्दी भाषा में समानता होगी. कार्यक्रम में सान्निध्य पुष्पिता अवस्थी का रहा. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे अंदर हिन्दी भाषा के प्रति स्वभिमान होना चहिए. हिन्दी भाषा शरनामियों के द्वारा भी बोली जाती है. 2006 में विश्व हिन्दी प्रदर्शन में हिन्दी भाषा प्रधान भाषा थी. भारत में हिन्दी भाषा परिवार के 46 प्रकार हैं. इसके अलावा कार्यक्रम में यूएसए से अनूप भार्गव, उज्बेकिस्तान से गुलेरा शेरमतोबा, एनआईओएस के निदेशक राजीव कुमार सिंह उपस्थित रहे. संचालन ज्योति शर्मा का रहा.

हिंदी भाषा शिक्षण में साहित्य, कलाओं और फिल्मों की भूमिका विषय पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे ने कहा कि हिंदी भाषा के साहित्य और फिल्म में अपना योगदान देकर होली और भक्ति संगीत के माध्यम से लोगों के बीच साक्षरता को प्रोत्साहित करके साहित्यिक, कला और सांस्कृतिक संस्कृति को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया. साहित्यकार ज्ञान चतुर्वदी ने अपने वक्तव्य में हिंदी भाषा के शिक्षण को बच्चों के लिए व्याकरण के माध्यम से सरल और रोचक बनाने का भी सुझाव दिया है. इस सत्र में सुरेश ऋतुपर्ण और प्रगति टिपणिस भी उपस्थित रहीं.

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