Cow in Madhya Pradesh: देश में राजनीतिक रूप से गाय काफी अहम है.दक्षिण को छोड़ दें तो देश के उत्तर और पूर्वी हिस्से में लगभग हर राज्य में गाय को लेकर कोई न कोई योजना है ...जब चुनाव आते हैं तो गायें और भी अहम हो जाती हैं. खूब बढ़-चढ़ के वादे होते हैं. मध्यप्रदेश में भी कुछ ऐसा ही होता है. इस चुनाव में भी कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने हिस्से के वादे गायों के लिए किए थे. कांग्रेस ने गायों के लिए आर्थिक मदद बढ़ाकर 20 से बढ़ाकर 40 रुपये प्रतिदिन करने की बात कही थी लेकिन उसकी सरकार नहीं बनी. बीजेपी ने न सिर्फ अनुदान बढ़ाने बल्कि गौवंश विहार तक विकसित करने की बात कही थी...बात तो किसानों से गोबर खरीदने की भी हुई थी. लेकिन फिलहाल आलम ये है कि गायों के लिए अनुदान राशि महज 20 रुपये है और वो भी महीनों तक नहीं आता. अब सूबे में गायों की क्या स्थिति है इसी की ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है हमारे स्थानीय संपादक अनुराग द्वारी ने
20 रुपये का अनुदान तो बेहद कम है
हम सबसे पहले पहुंचे भोपाल शहर के बीचों बीच बनी मां गायत्री गौशाला में. ये गौशाला गायत्री मंदिर परिसर में ही बनी है. यहां लगभग 140 गौवंश यहां हैं. जिनकी देखभाल के लिए सरकार 20 रु. प्रति गौवंश का अनुदान देती है. लेकिन गौशाला के संचालक सुभाष शर्मा का कहना है कि ये अनुदान एक तो नाकाफी है साथ ही ये 3-4 महीने में एक बार ही आता है. उनका कहना है कि गौशाला शहर के बीच में है, इसलिये कई लोग यहां चारा खिलाने आ जाते हैं. इसमें से कुछ लोग धर्म के नाम पर तो कई कर्म के नाम पर आता है. यहां हमें कारोबारी त्रिलोकचंद और अखबार में काम करने वाली देव कुमारी मिलीं. दोनों का कहना है कि सरकार काम तो अच्छा कर रही है लेकिन 20 रुपये का अनुदान बेहद कम है. 2
पेंशन के पैसों से करते हैं गायों की देखभाल
इसके बाद हम पहुंचे शहर के बाहर 20 किलोमीटर दूर कोकता में. यहां मौजूद है महामृत्युजंय गौशाला. इसका पता हमें खुद गौसंवर्धन बोर्ड ने बताया था. यहां 600 से ज्यादा गौवंश हैं. प्रशासन यहां जख्मी और निराश्रित गायों को छोड़ जाता है. यहां मौजूद ज्यादातर गायें दूध नहीं देतीं. गौशाला के अध्यक्ष गोविंद व्यास 20 साल से ये गौशाला चलाते हैं. गोविंद बैंक से रिटायर्ड हैं. उनका कहना है कि एक गाय 60-70 रु. का चारा खाती है लिहाजा सरकारी अनुदान बेहद कम है. वे गायों की देखभाल के लिए अपनी पेंशन का पैसा लगाते हैं. उनका कहना है कि सरकारी अनुदान आने में तो 6-7 महीने की देरी होती है. वे बताते हैं कि यहां मौजूद गायें दूध नहीं देती लिहाजा लोग इनकी देखभाल में रुचि ही नहीं लेते हैं. दूसरी तरफ इसी गौशाला के सदस्य बृजेश व्यास बताते हैं कि 20 रु पर्याप्त नहीं है सरकार से कई बार अपील की गई है. 15 रु में पानी का खर्चा नहीं निकलता, भूसा तो दूर है. आज की तारीख में भूसा 700 रु. क्विंटल है. कम से कम 25 किलो भूसा चाहिये जो गाय एक दिन में खाती है. ये हमसे ही पूछते हैं बताइए कैसे पूरा होगा.
दूसरी तरफ विभाग के मंत्रीजी का दावा है कि 31 दिसंबर तक सारा बकाया दे दिया गया है. हम इस मसले पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. वे स्वीकारते हैं कि 20 रुपये अनुदान कम तो है.
लखन पटेल
अब जब खुद ही मंत्रीजी ने मान लिया है कि राज्य की सड़कों पर आवारा गायें घूम रही हैं तो हम आपको इसका आंकड़ा भी बता देते हैं.
जाहिर है गाय चुनावों के समय राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा होती हैं लेकिन हमने जब जमीनी हालात का जायजा लिया तो एक बात जो एक राय से सामने आई वो है गाय के नाम पर हंगामा मचाने वाले लोग गाय की मदद या सेवा के लिये आगे नहीं आते. यह स्थिति हम सबके लिए चिंतनीय है.
वैसे हालत कब और कैसे बदलेंगे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है, क्योंकि गैस संवर्धन बोर्ड की वेबसाइट में आज भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हैं और उपाध्यक्ष पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल है, जो इस बार चुनाव हार गए थे.