Supreme Courts on Prison Reform: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जेल सुधार और कानूनी सहायता को लेकर कई निर्देश दिए हैं. अदालत ने कहा कि कानूनी सहायता तंत्र के सफल संचालन के लिए जागरूकता महत्वपूर्ण है और यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रणाली बनाई जानी चाहिए कि कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रचारित लाभकारी योजनाएं सभी तक पहुंचे.
न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने के मुद्दे पर कई निर्देश पारित किए.
ये हैं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
-पुलिस स्टेशनों और बस स्टैंड जैसे सार्वजनिक स्थानों पर निकटतम कानूनी सहायता कार्यालय का पता और फोन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए.
-राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए), राज्यों और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों के सहयोग से यह सुनिश्चित करेगा कि जेल में कैदियों को कानूनी सहायता सेवा तक पहुंच की मानक संचालन प्रक्रिया कुशलतापूर्वक संचालित की जाए.
-पीठ ने कहा, "हमने यह भी कहा है कि कानूनी सहायता तंत्र के सफल संचालन के लिए जागरूकता महत्वपूर्ण है."
-एक मजबूत तंत्र बनाया जाना चाहिए और समय-समय पर इसे अपडेट किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रचारित विभिन्न लाभकारी योजनाएं देश के कोने-कोने तक और विशेष रूप से उन लोगों तक पहुंचे जिनकी शिकायतों को दूर करने के लिए इसने काम किया है.
-राज्यों में स्थानीय भाषाओं सहित पर्याप्त साहित्य और उचित प्रचार-प्रसार के तरीके शुरू किए जाने चाहिए ताकि न्याय के उपभोक्ता, जिनके लिए ये योजनाएं बनाई गई हैं, उनका सर्वोत्तम उपयोग कर सकें.
रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से स्थानीय भाषाओं में प्रचार अभियान भी चलाए जाने चाहिए.
-केंद्र और राज्य सरकारें उठाए गए कदमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए विभिन्न स्तरों पर विधिक सेवा प्राधिकरणों को अपना सहयोग और सहायता देना जारी रखेंगी.
-पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह अपने फैसले की प्रति सभी उच्च न्यायालयों को भेजे.
-उच्च न्यायालय इस आशय का व्यवहारिक निर्देश जारी करने की व्यवहार्यता पर विचार कर सकते हैं कि उच्च न्यायालयों सहित सभी न्यायालय दोषसिद्धि, बर्खास्तगी, दोषमुक्ति के फैसले को पलटने, जमानत आवेदनों को खारिज करने के फैसलों की प्रतियां प्रस्तुत करते समय दोषी को उच्च उपचार प्राप्त करने के लिए मुफ्त कानूनी सहायता सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में सूचित करते हुए फैसले के साथ एक कवर शीट संलग्न कर सकते हैं.
नालसा ने सुप्रीम कोर्ट को दी थी ये जानकारी
जुलाई में मामले की सुनवाई के दौरान, नालसा (NALSA) ने शीर्ष अदालत को बताया था कि 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जेलों में बंद लगभग 870 अपराधी मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में सूचित होने के बाद अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर करना चाहते हैं. शीर्ष अदालत जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर एक याचिका पर विचार कर रही थी.
ये है सुनवाई और निर्देश की अहम बातें
सुहास चकमा बनाम भारत संघ मामले में अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुधार गृहों, जेलों और जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा पर गंभीर चिंताएं जताई. अपने फैसले में कोर्ट ने जेलों और सुधार गृहों का नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए कई सिफारिशें कीं ताकि कैदियों की स्थिति में सुधार हो सके और उन्हें समाज में पुनः एकीकृत किया जा सके. ये उपाय कैदियों को सुधारात्मक रास्ते पर लाने के उद्देश्य से हैं. देश में सबसे अधिक खुली जेलों वाले राज्य राजस्थान का इस मामले में विशेष रूप से उल्लेख किया गया. पीठ ने राज्य के सुधारात्मक प्रयासों की सराहना की. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान की खुली जेल प्रणाली का कई बार दौरा किया है.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला महत्वपूर्ण: शिव मंगल शर्मा
राजस्थान सरकार की ओर से AAG शिव मंगल शर्मा ने प्रतिनिधित्व किया, जबकि इस मामले में एमिकस क्यूरी और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के वकील भी शामिल थे. शिव मंगल शर्मा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक प्रगतिशील कदम है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि विचाराधीन कैदियों और अन्याय के शिकार पीड़ितों को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व मिले, जिससे भारत में न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सके.
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