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130 करोड़ का प्रोजेक्ट धूल खा रहा! 2020 में बिल्डिंग पूरी हुई, बड़ा सवाल- कब मिलेगा कैंसर संस्थान?

State Cancer Institute, Jabalpur: 130 करोड़ की यह परियोजना, जो कभी कैंसर के खिलाफ क्षेत्रीय युद्ध का केन्द्र बन सकती थी, आज फाइलों, टेंडरों और कुर्सियों पर जमी धूल के बीच दम तोड़ती दिख रही है. ऐसे में सवाल उठता है—क्या सिस्टम की सुस्ती मरीजों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है?

130 करोड़ का प्रोजेक्ट धूल खा रहा! 2020 में बिल्डिंग पूरी हुई, बड़ा सवाल- कब मिलेगा कैंसर संस्थान?
State Cancer Institute, Jabalpur: कैंसर संस्थान का इंतजार कब तक

State Cancer Institute Netaji Subhash Chandra Bose Medical College Jabalpur: नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर के परिसर में स्थित स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट (State Cancer Institute) का निर्माण वर्ष 2015 में शुरू हुआ था. इस परियोजना को केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल के रूप में 130 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया गया, जिसमें केंद्र सरकार ने 84 करोड़ रुपये मशीनों की खरीद के लिए जारी किए. वर्ष 2020 में भवन निर्माण तो किसी तरह पूरा हो गया, लेकिन आज 2025 में भी संस्थान पूरी तरह से कार्यरत नहीं हो पाया है.

मरीजों के लिए नहीं, निजी लैब के लिए इस्तेमाल?

NDTV की पड़ताल में सामने आया है कि हाल ही में इस कैंसर इंस्टिट्यूट के एक भवन को एक निजी प्रयोगशाला को 'सेंट्रल लैब' के रूप में सौंप दिया गया, जिसके चलते एक कैंसर वार्ड को बंद करना पड़ा. इससे न केवल सेवाएं प्रभावित हुईं, बल्कि मरीजों को अतिरिक्त परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

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कैंसर निदान और उपचार के लिए इन मशीनों पर इतना हुआ खर्च 

  • ₹22 करोड़ – लीनियर एक्सीलरेटर मशीन
  • ₹15 करोड़ – पोर्टेबल लीनियर एक्सीलरेटर
  • ₹13 करोड़ – 6 एमवी लीनियर एक्सीलरेटर
  • ₹6 करोड़ – सीटी सिमुलेटर
  • ₹5 करोड़ – क्यूए डॉजीमेट्री टूल्स
  • ₹3 करोड़ – इमोबलाइजेशन एंड मोल्ड डिवाइस
  • ₹35 लाख – मेमोग्राफी मशीन
  • ₹15 लाख – अल्ट्रासाउंड मशीन
  • ₹50 लाख – डिजिटल एक्सरे
  • ₹30 लाख – कलर डॉप्लर
  • ₹5 लाख – गामा कैमरा
  • ₹20 लाख – सी आर्म
  • ₹2 करोड़ – ऑन्को पैथोलॉजी उपकरण
  • ₹4 करोड़ – आवश्यक ऑन्को सर्जरी उपकरण (अलग से प्रस्तावित)
  • ₹50 लाख – रेडियो बॉयोलॉजी रिसर्च लैब उपकरण

84 करोड़ की मशीनें अब भी नदारद

रेडिएशन और आधुनिक कैंसर इलाज के लिए ज़रूरी मशीनों की खरीद आज तक नहीं हो पाई है. लीनियर एक्सीलरेटर, CT सिम्युलेटर, QA टूल्स, मेमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड, और ऑन्को सर्जरी उपकरण जैसे कई महत्वपूर्ण उपकरणों की सूची तो तैयार है, लेकिन इन्हें खरीदने की प्रक्रिया तीन बार टेंडर रद्द होने के कारण अटक गई. प्रमुख सचिवों के तबादलों के कारण निर्णयों में निरंतरता नहीं रही.

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तकनीकी बाधाएं , बंकर की कैसे होगी जांच?

रेडिएशन मशीनों को लगाने के लिए परमाणु संयंत्रों जैसी संरचना वाले तीन बंकर तो बना दिए गए हैं, लेकिन मशीनें न होने के कारण उनकी तकनीकी जांच अधूरी है. नियमानुसार ठेकेदार को एक सीमित समय में रेडिएशन जांच करनी होती है, लेकिन समय निकलने से उसका फायदा ठेकेदार को मिलेगा और गुणवत्ता संदेह के घेरे में रहेगी.

वर्तमान स्थिति: इलाज सीमित, इंतज़ार अनिश्चित

प्रतिदिन औसतन 70-80 मरीजों को रेडिएशन और 40-50 को कीमोथैरेपी दी जाती है. मरीजों को रेडिएशन के लिए एक महीने तक का इंतज़ार करना पड़ता है. बुंदेलखंड, विंध्य और महाकोशल क्षेत्रों से 200-250 किलोमीटर दूर से आने वाले मरीजों के लिए यह इंतजार असहनीय होता जा रहा है.

अधीक्षक और डीन का क्या कहना है?

संस्थान की अधीक्षक डॉ. लक्ष्मी सिंगोटिया कहती हैं कि "यदि प्रस्तावित मशीनें स्थापित हो जाती हैं, तो मरीजों को महानगरों जैसी उन्नत सेवाएं यहीं उपलब्ध हो सकेंगी." वहीं मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. नवनीत सक्सेना का दावा है कि "जो काम वर्षों से लंबित है, वह अब दो माह में पूरा कर लिया जाएगा , बहुत जल्द नई मस्जिद है इंस्टॉल कर ली जाएगी.

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