विज्ञापन

Mahakaleshwar Jyotirlinga: एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग, जहां काल भी कुछ नहीं पाता, जानिए इसका महत्व

Mahakal Mandir Ujjain: यहां महादेव के साथ ही इस धरती पर साक्षात काल भैरव या भैरवनाथ विराजमान हैं. यहां भैरवनाथ की मूर्ति मदिरापान करती है, ऐसा मंदिर विश्व में कोई दूसरा नहीं है. यहीं शिप्रा नदी है जिसके बारे में मान्यता है कि अमृत कलश से समृद्र मंथन के दौरान एक बूंद अमृत छलक कर गिरा था. इस वजह से यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है और इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है.

Mahakaleshwar Jyotirlinga: एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग, जहां काल भी कुछ नहीं पाता, जानिए इसका महत्व
Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple: एकमात्र दक्षिण मुखी शिवलिंग

Mahakaleshwar Jyotirlinga: कालों के काल महाकाल. द्वादश ज्योतिर्लिंग में तीसरे नंबर पर पूजे जाते हैं. कलयुग के कर्ता धर्ता और प्राणियों के काल हरने वाले महाकाल. यहां महादेव एक मात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के तौर पर विराजते हैं. वास्तु में दक्षिण दिशा के स्वामी मृत्यु के देवता यमराज को माना गया है. मृत्यु से परे होने के कारण ही भगवान महाकाल को ये नाम दिया गया है. इसलिए यह भी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के दर्शन व पूजन करता है उसे मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है.

एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग

पूरे संसार के सभी शिव मंदिरों में जहां शिवलिंग और अन्य ज्योतिर्लिंग की जलाधारी उत्तर दिशा की ओर है, महाकालेश्वर ही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसकी जलधारी दक्षिण दिशा की ओर है. महाकाल जो उज्जैन के राजा हैं, उनके सामने सिर नहीं ढका जाता है. शास्त्रों में वर्णन है कि "जहां राजा उपस्थित हो, वहां दूसरा कोई सिर ढककर नहीं बैठ सकता", यही कारण है कि महाकाल मंदिर में सिर ढकना वर्जित है. ऐसे में इस क्षेत्र की महिमा स्वर्ग से भी बढ़कर है और जिसे सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना गया है.

महाकाल जहां विराजते हैं उसके बारे में कहा जाता है कि यहां श्मशान, ऊषर जमीन, सामान्य क्षेत्र, पीठ एवं वन ये पांचों का संयोग है. इसके साथ ही महाकाल के बारे में पुराणों में वर्णित है कि आकाश में तारकलिंग, पाताल में हटकेश्वर और मृत्युलोक में महाकाल स्थित है. यानी कालों के काल महाकाल मृत्युलोक के राजा हैं. बाबा महाकाल के मंदिर के ठीक ऊपर नागचन्द्रेश्वर का मंदिर है. मतलब नागों के देवता भी यहां महाकाल के साथ विराजते हैं. यह मंदिर साल में एक दिन के लिए नागपंचमी पर खुलता है.

महाकाल, जहां चिता की ताजी भस्म से उनकी आरती उतारी जाती है. हालांकि अब चिता की भस्म की जगह कंडे की ताजे भस्म का इस्तेमाल होता है. जहां महाकाल विराजते हैं प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व का मानक समय भी यहीं से निर्धारित होता है. उज्जैन का आकाश ही है जहां से काल्पनिक कर्क रेखा गुजरती है. साथ ही भूमध्य रेखा भी यहीं पर कर्क रेखा को काटती है. इसलिए महाकाल को पृथ्वी का सेंटर यानी केंद्र बिंदु भी माना जाता है. वहीं महाकाल के मंदिर के पास ही दो शक्ति पीठ भी हैं, पहला हरसिद्धि माता जहां सती के हाथ की कोहनी गिरी थी. दूसरा, शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरव पर्वत पर, जहां माता सती के ओष्ठ गिरे थे.

पुराणों में है वर्णन

ऐसे में महाकाल के बारे में स्कंद पुराण के अवंती खंड, शिव महापुराण, मत्स्य पुराण आदि में वर्णित है और साथ ही महाकाल वन का वर्णन भी मिलता है.

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् |

अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ||

जो भगवान शिव शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूं.

उज्जैन क्यों है खास?

यहां महादेव के साथ ही इस धरती पर साक्षात काल भैरव या भैरवनाथ विराजमान हैं. यहां भैरवनाथ की मूर्ति मदिरापान करती है, ऐसा मंदिर विश्व में कोई दूसरा नहीं है. यहीं शिप्रा नदी है जिसके बारे में मान्यता है कि अमृत कलश से समृद्र मंथन के दौरान एक बूंद अमृत छलक कर गिरा था. इस वजह से यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है और इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है. उज्जैन की धरती पर चार प्राचीन वटों में से एक सिद्धवट मौजूद है. स्कंद पुराण के अनुसार माता पार्वती ने इन वट वृक्षों को लगाया था. जिनकी शिव के रूप में पूजा होती है और इसी जगह पर पिंडदान और तर्पण भी किया जाता है. ऐसे में गया के बाद यह पिंडदान का प्रमुख क्षेत्र है.

पुराणों में जिन चार वटों का वर्णन मिलता है. उसमें प्रयागराज में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट या बौधवट और उज्जैन में सिद्धवट का जिक्र है.

उज्जैन वही पवित्र स्थली है जहां श्रीकृष्ण, सुदामा और बलराम ने गुरु सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण की थी. वहीं मत्स्य पुराण में वर्णित है कि यहां भूमि के पुत्र मंगल का जन्म हुआ था. ऐसे में यहां मंगलनाथ अंगारेश्वर महादेव के रूप में विराजते हैं.

इसके साथ ही चिंतामन गणेश मंदिर उज्जैन में भगवान गणेश को समर्पित एक और सुंदर मंदिर है. यह मंदिर महाकालेश्वर से 6 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां भगवान गणेश तीन रूपों चिंतामण, इच्छामन और सिद्धिविनायक रूप में विराजमान हैं. माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम ने की थी. कहते हैं कि इसी समय लक्ष्मण जी ने यहां एक बावड़ी भी बनवाई थी जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं.

वहीं उज्जैन का शनि मंदिर, जो लगभग 2000 साल पहले बनाया गया था और वर्तमान समय में भी गौरवान्वित रूप से खड़ा है. पहला नवग्रह मंदिर एकमात्र शिव मंदिर भी है जहां शनिदेव को स्वयं भगवान शिव के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है.

ऐसे में बता दें कि इस अवंतिका क्षेत्र अर्थात उज्जैन के राजा के रूप में महाकाल को ही पूजा जाता है. इसलिए यहां कोई भी राजा या प्रशासक रात को नहीं रूक सकता है.

यह भी पढ़ें : Shivling vs Jyotirlinga: शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के बारे में कितना जानते हैं आप, दोनों में है ये अंतर

यह भी पढ़ें : Sawan Somwar 2025: कांवड़ यात्रा की तैयारी शुरू, भोलेनाथ को क्यों चढ़ाते हैं बेल पत्र? इस बार इतने सावन सोमवार

यह भी पढ़ें : Mahakal Darshan: बाबा महाकाल की शरण में 'रॉकी भाई', साउथ सुपर स्टार के साथ इस एक्ट्रेस ने भी लिया आशीर्वाद

यह भी पढ़ें : PM Kisan 20th Installment: 4 महीने पूरे; पीएम किसान सम्मान निधि के ₹2000? यहां देखें 20वीं किस्त का Status

MPCG.NDTV.in पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार,लाइफ़स्टाइल टिप्स हों,या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें,सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close