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Shardiya Navratri 2024: यहां हैं रूप बदलने वाली माता, जानिए क्या है कथा?

Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के मौके पर NDTV आपको देवी मां के विभिन्न मंदिरों और धार्मिक स्थानों की खास खबरें दिखा रहे. इसी कड़ी में यहां हम आपको बलारी मां के अनोखे मंदिर से जुड़ी कहानी बता रहे हैं. मां की महिमा ऐसी है कि भक्तों को दिन में तीन बार माता के बदलते स्वरूप के दर्शन होते हैं.

Shardiya Navratri 2024: यहां हैं रूप बदलने वाली माता, जानिए क्या है कथा?

Navratri 2024: शिवपुरी (Shivpuri) से झांसी (Jhansi) रोड पर सुरवाया के पास से एक रास्ता माधव नेशनल पार्क (Madhav National Park) के घने जंगलों में ले जाता है, लेकिन यह इलाका देवी बलारी (Devi Balari) के नाम से जाना जाता है. देवी की महिमा ही कहिए या फिर कुछ और माधव नेशनल पार्क के ज्यादातर बाघ-बाघिन और तेंदुआ इसी इलाके में अपना आशियाना बनाते हैं. इतना ही नहीं मंदिर (Devi Mandir) में बैठी यह देवी मां दिन में तीन रूप बदलकर अपने भक्तों को दर्शन देती हैं. सुबह को मां कन्या रूप में दिखती हैं, दोपहर में किशोरी और सांझ ढलते ही बूढी अम्मा दादी बन जाती हैं. जंगल के बीचों-बीच बने माता के दरबार में हर साल नवरात्रि पर भक्तों का मेला (Navratri Mela) लगता है, यहां विदेशों से भी माता के भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं.

क्या है माता से जुड़ी कथा?

एक प्राचीन कथा के अनुसार कहा जाता है कि जंगल से एक लकड़हारा लकड़ी काटकर अपने घर वापस लौट रहा था, तभी घनघोर जंगल में एक बालिका उसे दिखाई दी. उसने कन्या से पूछा कि कैसे जंगल में पहुंची हो? तो उसने कहा कि मेरी मां मुझसे बिछड़ गई है, मुझे शहर तक जाना है, अपने साथ ले चलो. तब लकड़हारे को विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन जंगल में बालिका अकेली थी. ऐसे में लकड़ी काटने वाले ने सोचा शायद बालिका सच कह रही हो, ऐसे में लकड़हारे ने कन्या से कहा कि आओ मेरी गाड़ी में बैठ जाओ, लेकिन कन्या बोली के मेरी शर्त है. 'अगर मैं गाड़ी में बैठूंगी तो तुम गाड़ी चलाते वक्त पीछे मुड़कर नहीं देखोगे और तुम अगर पीछे मुड़कर देखोगे तो मुझे अपने साथ नहीं ले जा सकोगे.'

यह सुनकर लकड़हारा हैरान रह गया. फिर भी उसने कहा कि चलिए बैठिए. कन्या गाड़ी में बैठ गई. लकड़हारे ने गाड़ी हांक दी. जैसे ही चलते-चलते दोपहर हुई तो लकड़हारे की बैलगाड़ी में बैठी कन्या किशोरी के रूप में बदल गई और उसकी आवाज से उसकी पहचान लकड़हारे को आसानी से हो गई, लेकिन सुबह कन्या ने बैठेते ही लकड़हारे के सामने शर्त रखी थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा. इसलिए लकड़हारा सीधे गाड़ी चलाता रहा.

जंगल से लौटते वक्त जैसे ही शाम हुई वैसे ही किशोरी ने अपना रूप बदलकर बूढी अम्मा दादी के रूप में रख लिया. अब तो लकड़हारे से रहा नहीं गया उसने जिज्ञासा के साथ पलट कर देखा तो उसके सामने से वह कन्या गायब थी, लेकिन थोड़ी देर में लकड़हारे के सामने अपने असली रूप में देवी प्रकट होकर बोली कि मैंने शर्त रखी थी कि तुम पीछे मुड़कर नहीं देखोगे और देखोगे तो मुझे ले जा नहीं सकोगे. अब मुझे यहीं स्थान दो मैं हमेशा-हमेशा के लिए यहीं रहूंगी. मेरा नाम होगा बलारी. यह सुनकर लकड़हारे ने देवी मां को स्थान दिया, बाद में यहां उनका मंदिर बना. तभी से मां का दरबार इसी जगह मौजूद है. 

जंगल में मौजूद शेर भी करने आता है दर्शन

कहा तो यह भी जाता है कि जब इस इलाके में शेर की दहाड़ गूंजा करती थी, तब वह शेर भी माता के दर्शन करने पहुंचता था. अब बाघ-तेंदुआ माता के दर्शन करने मंदिर जरूर पहुंचते हैं. खास बात यह है कि मंदिर के आसपास बने क्षेत्र में ही तेंदुआ जैसे जानवर खास तौर पर अपना आशियाना बनाते हैं.

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