
Betul Child Labour: छह साल तक एक मासूम अपने ही बचपन से दूर रहा- कारण सिर्फ इतना कि उसके पिता ने 50 हजार रुपये का कर्ज लिया था. बैतूल जिले का यह मामला दिल को झकझोर देने वाला है, जहां एक ठेकेदार ने न सिर्फ पिता को पीटकर भगा दिया, बल्कि उसके सात साल के बेटे को बंधक बनाकर मजदूरी कराता रहा. ये एक ऐसी कहानी है जो किसी एक गांव या किसी एक परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि उस पूरे समाज का आईना है जहां गरीबी और मजबूरी अक्सर बच्चों के बचपन को निगल जाती है.
50 हजार का कर्ज और बेबस पिता
बैतूल जिले की शाहपुर तहसील का ढूढर गांव, यहां का गंजू उइके 2019 में अपनी पत्नी और सात साल के बेटे के साथ रोज़ी-रोटी की तलाश में हरदा पहुंचा था. वहां झिरीखेड़ी गांव में एक ठेकेदार राहुल शर्मा के पास वह मजदूरी करने लगा. उसका काम तो चल रहा था, मगर भाई की शादी के लिए 50 हजार रुपये की जरूरत पड़ी. गंजू ने वही रकम ठेकेदार से उधार ली. पैसे तो मिले, लेकिन यह कर्ज उसके परिवार की बर्बादी की वजह बन गया.
कर्ज के बदले बेटे को बनाया बंधक
जब गंजू तय समय पर पैसे नहीं लौटा पाया तो ठेकेदार ने उसे और उसकी पत्नी को पीटकर भगा दिया. सिर्फ इतना ही नहीं, उसने गंजू के सात साल के बेटे को बंधक भी बना लिया . अपने ही बच्चे को छुड़ाने के लिए पिता बार-बार ठेकेदार के दरवाजे पर हाजिरी लगाता रहा. लेकिन हर बार उसे अपमानित होकर लौटना पड़ता. आलम ये हुआ कि मासूम को छह साल तक अपने ही माता-पिता से मिलने तक नहीं दिया गया.
7 साल के मासूम से बंधुआ मजदूरी
छह साल... किसी बच्चे के जीवन में यही तो सबसे सुनहरे साल होते हैं. खेलने के, पढ़ने के, दुनिया को जानने-समझने के. लेकिन यह बच्चा उन छह सालों में ठेकेदार की 'जंजीरों' में बंधा मजदूरी करता रहा. हाल ही में जब जनसाहस नाम की संस्था तक यह खबर पहुंची तो उन्होंने बैतूल की बाल कल्याण समिति को जानकारी दी, फिर एक पूरी प्रशासनिक टीम हरदा पहुंची. जिस जगह बच्चा कैद था, वहां टीम ने उसे काम करते हुए पाया. उसे तुरंत रेस्क्यू किया गया और बैतूल लाया गया.
कैद से आजादी लेकिन परिवार से दूर !
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. बच्चा आज़ाद तो हुआ, मगर अपने माता-पिता से मिलने की उसकी राह अभी भी अधूरी है. वजह- परिजनों के पास बच्चे के वैध दस्तावेज नहीं हैं. यही कारण है कि उसे फिलहाल बैतूल से छिंदवाड़ा शिफ्ट किया गया है. माता-पिता तड़प रहे हैं, बेटा इंतज़ार कर रहा है, लेकिन सरकारी कागजों के अभाव में यह मिलन अभी अधूरा है. ठेकेदार राहुल शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है, मगर गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई. सवाल यही है, क्या कानून उस मासूम के छिने हुए छह साल वापस ला पाएगा? क्या कोई सज़ा इतनी बड़ी हो सकती है कि वह एक उदाहरण बन जाए, ताकि फिर किसी गरीब पिता का बेटा कर्ज के बदले बंधक न बने? यह कहानी सिर्फ गंजू उइके और उसके बेटे की नहीं है. यह उस व्यवस्था पर सवाल है जहां गरीबी का फायदा उठाकर बच्चों का बचपन छीन लिया जाता है. जहां पैसों का लालच इंसानियत को निगल जाता है, और जहां दस्तावेज़ न होने की वजह से भी एक बच्चा अपने माता-पिता की गोद में लौटने से रोका जाता है. आखिर 50 हजार रुपये का कर्ज इतना भारी कैसे पड़ सकता है कि उसके बोझ तले एक मासूम की पूरी मासूमियत कुचल दी जाए?
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