Samvidhan Divas: आज पूरा देश संविधान दिवस मना रहा है. संविधान दिवस यानी 26 नवंबर का दिन. सन 1949 में आज ही के दिन हमने अपने संविधान को अपनाया था. वही संविधान जो वर्षों तक चली बैठकों, सघन बहसों और वाद-विवाद के बाद हमारे सामने आया था. संविधान दिवस यह परीक्षण करने के लिए एकदम उचित दिन है कि वास्तव में हम अपने संविधान को आखिर कितना जानते हैं. विस्मृति के इतने संसाधनों के बीच क्या यह बात कभी हमारी वर्तमान पीढ़ी की स्मृति में भी आती होगी कि आज़ादी के पहले हमारा देश उपनिवेशवाद के किस दर्द से गुजरा है? क्या आज के युवा गुलामी के जीवन की कल्पना भी कर सकते हैं? यह सही है कि पितृ सत्ता और जातिवाद जैसी सामाजिक गुलामियां आज भी मौजूद हैं लेकिन उस वक्त तो सबसे आवश्यक थी अंग्रेजों की गुलामी से निजात.
This #ConstitutionDay, may the values enshrined in our Constitution guide our path, illuminating the way forward. Participate In Bharat-Loktantra ki Janani Quiz and Online Reading of the Preamble.#SamvidhanDiwas https://t.co/Qc2aCCYsu7 https://t.co/4tbUbhNfvV pic.twitter.com/XjIpLJ2tzy
— PIB in Telangana 🇮🇳 (@PIBHyderabad) November 26, 2023
कैसे साकार होता रहा है संविधान?
उस दौर में अलग-अलग विचारधाराओं के लोग आज़ादी का लक्ष्य लेकर अपने-अपने तरीके से लड़े, परंतु इस बात पर पर्याप्त बहस और पहल नहीं हुई कि अंग्रेजों से आज़ाद होने के बाद हम सामाजिक-आर्थिक असमानता, जातिवाद और लैंगिक भेदभाव की गुलामी से कैसे मुक्ति पाएंगे. महात्मा गांधी और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के नेतृत्व में हुई पहल जरूर हमारे सामने हैं लेकिन उनके आंदोलन वैसे जनांदोलन नहीं बन सके जैसा कि उन्हें बनना चाहिए था.
"हम भारत के लोग" 🇮🇳
— MyGov Hindi (@MyGovHindi) November 26, 2024
संविधान दिवस के इस महत्वपूर्ण दिन पर आइए, हम सब संकल्प लें कि हम अपने देश के संविधान की गरिमा को बनाए रखेंगे और उसका पूरी निष्ठा से पालन करेंगे। यह दिन हमारे लोकतंत्र की शक्ति और एकता का प्रतीक है।
आप सभी देशवासियों को संविधान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।।… pic.twitter.com/CEn4yfGy0p
स्वतंत्रता के बाद भी हम देश में वैसी शिक्षा, संवाद और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था रच पाने में नाकाम रहे जो लोगों को अपने देश, अपनी धरती और अपने पर्यावरण से जोड़ पाने में कामयाब हो पाती. हम लोगों में भागीदारी की भावना विकसित कर पाने में नाकाम रहे और अपने पर्यावरण तथा अपनी धरोहरों के प्रबंधन और रखरखाव की जिम्मेदारी का अहसास पैदा नहीं कर सके.
संविधान का निर्माण भी इसीलिए हुआ था ताकि इस सवाल का जवाब तलाशा जा सके कि आज़ाद होकर भारत कैसा देश बनेगा. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर से लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद तक सभी नेताओं का यही कहना था कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो लेकिन अगर उसे लागू करने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो वह संविधान बेकार साबित होगा.
#WeThePeople | The Preamble to our Constitution is a reflection of the core constitutional values that embody the Constitution.
— Ministry of Rural Development, Government of India (@MoRD_GoI) November 26, 2023
This #ConstitutionDay, let's read all the Preamble and pledge to promote Constitution values amongst us.#IndiaMotherofDemocracy #SamvidhanDiwas pic.twitter.com/SM4aqZzLH3
1895 से शुरू हुई थी पहल
भारत की आधिकारिक संविधान सभा भले ही 1946 में बनी हो लेकिन देश में संविधान निर्माण की पहल तो 1895 में संविधान विधेयक की प्रस्तुति के साथ ही आरंभ हो चुकी थी. अंतिम तौर बनी संविधान सभा ने भी पहले बने प्रारूपों का इस्तेमाल किया था.
इन बातों से समझा जा सकता है कि भारत का संविधान किसी बौद्धिक विमर्श का नतीजा नहीं है, बल्कि उसके हर प्रावधान में उपनिवेशवाद से मुक्ति का आग्रह है.
शायद ही किसी को इस बात पर संशय होगा कि औपनिवेशिक शासन लोगों की गरिमा, स्वतंत्रता और उनके सामाजिक और मौलिक अधिकारों को छीन लेते हैं. औपनिवेशिक शासन का लक्ष्य जनता का हित नहीं बल्कि संसाधनों की लूट होती है. ऐसे में न्याय तंत्र भी बेमानी हो जाता है और बच्चों की शिक्षा और महिलाओं के बुनियादी अधिकार भी छीन लिए जाते हैं. नए स्वतंत्र हुए भारत और उसका संविधान बना रहे विद्वत जनों की सभा के समक्ष भी ये सभी चुनौतियां थीं.
यही वजह है कि संविधान में यह सुनिश्चित किया गया कि हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का बुनियादी अधिकार मिले और रोजगार और आजीविका का हक़ हासिल हो. यह तभी संभव है जब संसाधनों का एक समान वितरण हो, बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले, लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी हो और छुआछूत से परे हर किस्म का भाई-चारा और बहनापा हो.
यहां पर एक महत्वपूर्ण बात और सामने आती है और वह है, देश का पंथनिरपेक्ष और समाजवादी चरित्र. अक्सर यह सुनने को मिलता है कि ये दोनों शब्द मूल संविधान में नहीं थे और इन्हें 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया. परंतु सत्य क्या है? सत्य तो यह है कि ये दोनों, शब्द रूप में भले ही संविधान में पहले से शामिल नहीं थे लेकिन संविधान में इनका भाव हमेशा से शामिल था. उदाहरण के लिए जब संविधान कहता है कि राज्य धर्म, जाति, लिंग, वंश आदि के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करेगा तो दरअसल वह पंथ निरपेक्षता की भी बात करता है. जब संविधान कहता है कि संसाधनों का समान वितरण होगा, समान काम का समान वेतन होगा और सबको आर्थिक न्याय का अधिकार होगा तो वह समाजवाद की ही बात करता है.
यदि हम उपनिवेशवाद के इतिहास, विभिन्न संघर्षों, राजनीतिक परिघटनाओं और तत्कालीन नेताओं के मनोभावों को समझे बिना संविधान को अपनाना चाहेंगे, तो वह निर्जीव और संवेदनाविहीन अनुच्छेदों के नीरस संकलन से ज्यादा कुछ नहीं होगा.
संविधान से रिश्ता बनाने के लिए संविधान निर्माण के इतिहास को जानना जरूरी है. इस दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश साम्राज्य शासन द्वारा बनाए गए नियमों-अधिनियमों का भी संज्ञान लिया जाए. ऐसा भी नहीं है कि स्वतंत्रता के समय सीधे संविधान सभा का गठन हुआ और संविधान बन गया. वास्तव में 21 ऐसे प्रारूप-दस्तावेज-घोषणापत्र हैं, जो सन 1895 से दिसम्बर 1946 के बीच लिखे-प्रस्तुत किए गए और जो संविधान के स्वरूप को अलग-अलग नज़रिये से परिभाषित करने की कोशिश करते हैं. इन सभी का असर भारतीय संविधान पर दिखता है. इन सभी प्रारूपों में मानव अधिकारों और स्वयं की शासन व्यवस्था को स्थापित करने का बड़ा सपना जरूर शामिल था.
On this Samvidhan Divas, let's unravel the significance of 26 November. Watch the video to gain insights into this historic day.#ConstitutionDay#SamvidhanDivas pic.twitter.com/1FrheA9OMn
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बहरहाल सच तो यह है कि संविधान सभा के कई सदस्यों, जिनमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी थे और डॉ. अम्बेडकर भी ने कहा था कि संविधान कैसा भी हो, उसका क्रियान्वयन तो हमारे नेताओं और प्रतिनिधियों की मंशा और चरित्र पर निर्भर करेगा. संविधान कितना ही अच्छा हो, यदि उसका क्रियान्वयन करने वाले भ्रष्ट, साम्प्रदायिक, फासीवादी और अनैतिक हैं; तो अच्छे से अच्छा संविधान भी बेकार ही साबित होगा.
संविधान सभा में भारत की विविधता का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता और विशेषज्ञ शामिल थे. कई ऐसे सदस्य भी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में संघर्ष किया और जो सामाजिक परिवर्तन आंदोलन के प्रतिनिधि भी थे. इस सभा में विचारों और प्रस्तावों पर गंभीर मतभेद थे, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि खूब बहस हुई, संवाद हुआ और ज्यादातर विषयों पर सहमति बनी. भारत के संविधान में दर्ज प्रावधानों और अनुच्छेदों के भावों को समझने के लिए संविधान सभा के वाद-विवादों को पढ़ना एक किस्म की अनिवार्यता है. इसके बिना संवैधानिक प्रावधानों की महत्ता स्थापित कर पाना कठिन होगा.
विशेष आभार : इस आलेख को तैयार करने में संविधान संवाद की पूरी टीम, सीनियर रिसर्चर सचिन कुमार जैन, वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ला और पूजा सिंह का अहम योगदान रहा.
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