Constitution Day 2024: हमें यह लगता है कि भारत का संविधान (Indian Constitution) बनने की प्रक्रिया 9 दिसंबर 1946 (Constitution Day of India) से ही शुरू हुई, लेकिन तथ्य और इतिहास कुछ और भी कहते हैं. द कांस्टीयूशन ऑफ इंडिया बिल, 1895 (स्वराज बिल) के नाम से पहला प्रारूप बनाया गया था. यह प्रारूप किसने लिखा, यह तो स्पष्ट नहीं हो पाया, लेकिन यह माना जाता है कि यह बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रभावित था. इस बिल के प्रस्तोता का मानना था कि हालांकि अभी भारतीय उन अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं, जिनकी परिकल्पना इस विधेयक में की गयी थी, लेकिन उनकी अपेक्षा थी कि भविष्य में भारत के लोग अपने देश की क्षमताओं का अधिकतम लाभ उठाने में सक्षम होंगे. इस विधेयक में न्याय, सम्पदा, आश्रय, शिक्षा, मतदान, अभिव्यक्ति जैसे अधिकारों का जिक्र किया गया था. इसके बाद एनीबेसेंट की पहल पर द कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल, 1925 तैयार किया गया था और इसे ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में पेश करने के लिए भेजा भी गया लेकिन सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के चुनाव हार जाने के कारण यह विधेयक रखा रह गया. इसके बाद वर्ष 1928 में सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की तरफ से पंडित मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में अपना संविधान तैयार करने की पहल हुई. इस समिति की रिपोर्ट को नेहरु रिपोर्ट कहा गया. इसके बाद तेज बहादुर सप्रू, एमएन राय, डाॅ बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) आदि ने भी संविधान के प्रारूप बनाए. यानी 50 से ज्यादा सालों तक यह पहल चली.
सबसे पहले संविधान की आत्मा को आत्मार्पित कीजिए
भारतीय संविधान की उद्देशिका या प्रस्तावना, संविधान के दर्शन और उद्देश्यों को बताने वाला परिचयात्मक कथन है. यह संविधान के सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है और अपने अधिकार के स्रोतों को इंगित करती है. प्रस्तावना में ये बातें लिखी गई हैं.
"हम भारत के लोग" 🇮🇳
— MyGov Hindi (@MyGovHindi) November 26, 2024
संविधान दिवस के इस महत्वपूर्ण दिन पर आइए, हम सब संकल्प लें कि हम अपने देश के संविधान की गरिमा को बनाए रखेंगे और उसका पूरी निष्ठा से पालन करेंगे। यह दिन हमारे लोकतंत्र की शक्ति और एकता का प्रतीक है।
आप सभी देशवासियों को संविधान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।।… pic.twitter.com/CEn4yfGy0p
उद्देशिका में ईश्वर, देवी और महात्मा गांधी का नाम क्यों नहीं आया?
17 अक्टूबर 1947 को संविधान सभा में उद्देशिका पर बहस-चर्चा हो रही थी. तब सभा के सदस्य एचवी कामत ने संशोधन रखा कि उद्देश्यिका में “हम, भारत के लोग” के पहले लिखा जाए – ‘ईश्वर के नाम पर” यानी ईश्वर के नाम पर, हम, भारत के लोग लिखा जाए. रोहिणी कुमार चौधरी का प्रस्ताव था कि “ईश्वर का नाम लेकर” के स्थान पर “देवी का नाम लेकर” रखना स्वीकार करें. हम लोग, जो शक्ति सम्प्रदाय के हैं, देवी की पूर्णतया उपेक्षा कर केवल “ईश्वर” का आह्वान करने का विरोध करते हैं. यदि हम इश्वर का नाम लाते हैं, तो हमें देवी का नाम भी लाना चाहिए”. प्रो शिब्बंलाल सक्सेना उद्देशिका में महात्मा गांधी का नाम जुड़वाना चाहते थे जबकि पंडित गोविन्द मालवीय का प्रस्ताव था कि प्रस्तावना ऐसी हो – “परमेश्वर की कृपा से, जो पुरुषोत्तम तथा ब्रह्माण्ड का स्वामी है.
कुछ लोग ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते हैं और कुछ समुदाय प्रकृति को अपना आराध्य मानते हैं. ऐसे में ईश्वर में विश्वास या विश्वास न करना बेहद निजी व्यवहार माना गया. आम भारतीयों ने भी दिए थे संविधान के मसौदे पर सुझाव 21 फरवरी 1948 को संविधान मसौदा समिति की तरफ से डाॅ भीम राव आंबेडकर ने संविधान का मसौदा संविधान सभा के सभापति/अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को सौंप दिया था. इस पर सरकार के विभागों और राजनीतिक दलों में तो संवाद हुआ ही, लेकिन संविधान के मसौदे को छाप पूरे देश में प्रसारित भी करवाया गया.
#WeThePeople | The Preamble to our Constitution is a reflection of the core constitutional values that embody the Constitution.
— Ministry of Rural Development, Government of India (@MoRD_GoI) November 26, 2023
This #ConstitutionDay, let's read all the Preamble and pledge to promote Constitution values amongst us.#IndiaMotherofDemocracy #SamvidhanDiwas pic.twitter.com/SM4aqZzLH3
आज़ादी के पहले ही पंडित नेहरू ने कर दी आज़ादी की घोषणा
भारत की आज़ादी के घटनाक्रम कई बार चौंका देते हैं. वैसे तो इतिहास में दर्ज है कि भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था, लेकिन 13 दिसंबर 1946 को ही पंडित जवाहरलाल नेहरु ने “भारतीय स्वतंत्रता का घोषणा पत्र” संविधान सभा में पेश कर दिया था.
अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि “हम कहते हैं कि हमारा यह दृढ़ और पवित्र निश्चय है कि हम सर्वाधिकार्पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र कायम करेंगे. यह ध्रुव निश्चय है कि भारत सर्वाधिकारपूर्ण स्वतंत्र प्रजातंत्र होकर रहेगा. जब भारत को हम सर्वाधिकारपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बनाने जा रहे हैं तो किसी बाहरी शक्ति को हम राजा न मानेंगे और न किसी स्थानीय राजतंत्र की ही तलाश करेंगे. इस घोषणा पत्र को संविधान सभा के सभी सदस्यों ने खड़े होकर सहमति दी और स्वीकार किया.
On this Samvidhan Divas, let's unravel the significance of 26 November. Watch the video to gain insights into this historic day.#ConstitutionDay#SamvidhanDivas pic.twitter.com/1FrheA9OMn
— MyGovIndia (@mygovindia) November 26, 2023
सरदार पटेल और संविधान
सरदार वल्लभ भाई पटेल के मूलभूत अधिकारों से गहरे सम्बन्ध रहे हैं. 26 से 31 मार्च 1931 को सरदार पटेल की अध्यक्षता में कराची में कांग्रेस का ऐतिहासिक राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ. इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने मूलभूत अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम का प्रस्ताव पारित किया था. यह प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तैयार किया थे. मूलभूत अधिकारों में अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता, सार्वभौम वयस्क मताधिकार, समानता का अधिकार, सभी धर्मों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव, निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार, अल्पसंख्यकों और विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति और भाषा की सुरक्षा की बात कही गई.
इसके लगभग 26 साल बाद बाद संविधान सभा ने 24 जनवरी 1947 को अल्पसंख्यक समुदाय और मौलिक अधिकार सम्बन्धी समिति का गठन किया. तब तक भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था. उस समिति के अध्यक्ष भी सरदार पटेल ही बनाए गए और उन्होंने 23 अप्रैल 1947 को मौलिक अधिकारों का प्रारूप संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंप दिया. इस पर 29 अप्रैल 1947 को चर्चा भी शुरू हो गई और प्राथमिक स्वरुप पर 2 मई 1947 तक चर्चा भी हो गई. यह एक महत्वपूर्ण बात है कि भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत के आज़ाद होने से लगभग साढ़े चार महीने पहले ही मूलभूत अधिकारों की रूपरेखा को स्वीकार कर लिया और वह भी सरदार वल्लभ भाई पटेल की अहम् भूमिका के साथ.
This #ConstitutionDay, may the values enshrined in our Constitution guide our path, illuminating the way forward. Participate In Bharat-Loktantra ki Janani Quiz and Online Reading of the Preamble.#SamvidhanDiwas https://t.co/Qc2aCCYsu7 https://t.co/4tbUbhNfvV pic.twitter.com/XjIpLJ2tzy
— PIB in Telangana 🇮🇳 (@PIBHyderabad) November 26, 2023
ऐसा रहा चर्चा व वाद-विवाद का सफर
सबसे पहले संविधान सभा ने 46 दिन तो इसी बात पर चर्चा-बहस की कि हम किस तरह का संविधान बनाना चाहते हैं? संविधान सभा ने कुल 165 दिन और संविधान की मसौदा समिति ने 141 दिन बैठकें कीं. इस तरह कुछ 266 दिन चर्चा- संवाद-वाद विवाद हुआ. इस दौरान संविधान के तीन पारूप बने और इसके मसौदे पर एक-एक अनुच्छेद पर 101 दिन चर्चा-बहस हुआ. सभा के सदस्यों ने संविधान के मसौदे पर कुल 7635 संशोधन समिति को भेजे गये. इनमें से 2473 संशोधन संविधान सभा में प्रस्तुत किए गये और उन वाद-विवाद हुआ. संविधान सभा के चर्चाओं-बहसों में भारत के प्रान्तों से चुने गये 210 सदस्यों और रियासतों के प्रतिनिधि समूह में से 64 सदस्यों ने संविधान सभा की बहस में अपनी बात रखी. संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के इतिहास में इस प्रक्रिया को हमेशा बहुत सम्मान के साथ देखा जाएगा.
14 अगस्त 1947 को संविधान सभा की सदस्य हंसा मेहता ने राष्ट्र को भारतीय महिलाओं की तरफ से तिरंगा भेंट किया था. यह एक भावनात्मक पल था. राष्ट्रीय ध्वज और खादी चक्र युक्त तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया.
भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक तथा भारतीय संविधान के पिता डॉ॰भीमराव रामजीआम्बेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को, 26 नवंबर 1949 को, भारतीय संविधान सुपुर्द किया था।#MoRD #WeThePeople #IndiaMotherofDemocracy #SamvidhanDiwas pic.twitter.com/nBcNlzNMtR
— Ministry of Rural Development, Government of India (@MoRD_GoI) November 26, 2023
36 लाख शब्द संविधान सभा में बोले गए
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार संविधान सभा में हुई बहसों-चर्चाओं में लगभग 36 लाख शब्द बोले गए थे. संविधान सभा में मसौदा समिति के अध्यक्ष डाॅ. बीआर आंबेडकर द्वारा 2,67,544 शब्द बोले गये, क्योंकि उन्हें संविधान सभा में उठाये गये हर प्रश्न और प्रस्तुत किए गये संशोधन प्रस्तावों पर जवाब देना था. जबकि मसौदा समिति के अन्य सदस्य टीटी कृष्णामाचारी द्वारा 97,638 शब्द, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर द्वारा 61,162, केएम मुंशी द्वारा 60,056, एन गोपालस्वामी आयंगर द्वारा 56,025, मोहम्मद सादुल्ला द्वारा 19,868, देबी प्रसाद खेतान द्वारा 4,927, एन माधव राव द्वारा 3,046 और बीएल मित्तर द्वारा 2,811 शब्द बोले गए थे. संविधान सभा के सदस्यों में एचवी कामत ने 1,88,749, नाज़िरुद्दीन अहमद ने 1,46,645, केटी शाह ने 1,21,825, शिब्बंनलाल सक्सेना ने 1,14,268, ठाकुरदास भार्गव ने 1,03,775, आरके सिधावा ने 88,595 शब्द, जवाहरलाल नेहरु ने 73,804, पीएस देशमुख ने 69,557, ह्रदय नाथ काटजू ने 69,158 और एम अनंतशयनम आयंगर ने 55,357 शब्द कहे थे.
#DidYouKnow? 15 women contributed in the making of the Constitution of Bharat. Watch👇 to know about them in detail #AmritMahotsav #ConstitutionDay2023 #SamvidhanDivas #NariShakti #AmritKaalKiNari #MainBharatHoon pic.twitter.com/Dw06TZJX82
— Amrit Mahotsav (@AmritMahotsav) November 26, 2023
क्या है भारतीय संविधान?
कहा जाता है कि भारत का संविधान वास्तव में ब्रिटिश सम्राट के सरकार का संविधान है, लेकिन यह सच नहीं है. इसके तथ्य इस प्रकार हैं – कैबिनेट मिशन योजना प्रस्तुत करने के बाद कैबिनेट मिशन के वरिष्ठ सदस्य भारत के लिए ब्रिटेन के सचिव पैथिक लारेंस से 17 मई 1946 को पत्रकार वार्ता में पूछा गया कि क्या भारत की संविधान सभा को संप्रभु या स्वतंत्र माना जा सकता है क्योंकि भारत में ब्रिटेन के सैनिक अब भी मौजूद हैं? इसके जवाब में पेथिक लारेंस ने कहा था कि बिलकुल, भारत की संविधान सभा में केवल भारतीय ही हैं.
केएम मुंशी स्वतंत्रता आन्दोलन के सिपाही और फिर भारत की संविधान सभा के सदस्य थे. उन्होंने अपनी पुस्तक “इंडियन कांस्टीट्यूशनल डाक्यूमेंट्स – पिलग्रिमेज टू फ्रीडम, भाग-1, पृष्ठ 112” पर लिखा है – 9 दिसंबर 1946 को ब्रिटिश भारत के वायसराय लार्ड वावेल दिल्ली से बाहर चले गये थे. तथ्य यह है कि लार्ड वावेल संविधान सभा की शुरुआत खुद करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के नेता ऐसा नहीं होने देना चाहते थे. जब लार्ड वावेल संविधान सभा की शुरुआत नहीं कर पाए तो वे उस दिन दिल्ली से बाहर चले गए.
अपना अच्छा संविधान असफल होगा यदि...!
25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में अपना आखिरी वक्तव्य देते हुए डाॅ बीआर आंबेडकर ने कहा था मैं इस संविधान के गुणों के बारे में कुछ नहीं कहूंगा. संविधान बस विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे अंगों के लिए व्यवस्था कर सकता है. संविधान का क्रियान्वयन पूरी तरह से संविधान पर निर्भर नहीं करता है. संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग बुरे हैं तो वह निःसंदेह बुरा हो जाता है. संविधान का क्रियान्वयन जनता और उसके द्वारा स्थापित किये गए राजनैतिक पक्ष (दल) हैं, जो उसकी इच्छा और नीति पालन करने का साधना होते हैं. यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उसके द्वारा चुने गए राजनैतिक पक्ष किस प्रकार का व्यवहार करेंगे?
हमें गर्व करना चाहिए कि भारत के संविधान में 5,000 सालों के इतिहास का चित्रण भारत का संविधान भारत के इतिहास और संस्कृति को अपने आप में समेटे हुए है. संविधान के हर भाग पर भारत के इतिहास के संकेत के रूप में एक चित्र उकेरा गया है.
विशेष आभार : इस आलेख को तैयार करने में संविधान संवाद की पूरी टीम, सीनियर रिसर्चर सचिन कुमार जैन, वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ला और पूजा सिंह का अहम योगदान रहा.
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