
Right to Education in MP: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education) के अंतर्गत राज्य स्तरीय कार्यक्रम में 20 हजार 652 प्राइवेट स्कूलों को 489 करोड़ रुपये सिंगल क्लिक से ट्रांसफर किए. इस कार्यक्रम में सीएम मोहन ने कहा कि "हमारी सरकार सभी वर्गों के हर चौथे बच्चे को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की फीस दे रही है. राज्य सरकार ने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम से लाभान्वित निजी स्कूलों के विद्यार्थियों को अगले सत्र से पाठ्यपुस्तकें और बैग उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) के मार्गदर्शन में देश आगे बढ़ रहा है."
स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक सरकार दे रही मदद : CM
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि "मध्यप्रदेश की पहचान आज सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाले राज्य की बन चुकी है. राज्य सरकार ने संपूर्ण प्रदेश में सांदीपनि विद्यालयों की स्थापना की है. विद्यार्थियों को स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक राज्य सरकार द्वारा हर संभव मदद दी जा रही है. शासकीय स्कूलों के विद्यार्थियों को नि:शुल्क साइकिल, ड्रेस और किताबें मिल रही हैं. शाला में प्रथम आने वाले विद्यार्थियों को स्कूटी और 75 प्रतिशत अंक लाने वालों को लैपटॉप प्रदान कर प्रोत्साहित किया जा रहा है. मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आया है. बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाना उनके बेहतर भविष्य की सुरक्षा है. बच्चे अपना भविष्य बनाते हुए देशभक्त नागरिक बनें, वे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बनें, साथ ही सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी भूमिका निभाएं."
CM मोहन यादव ने कहा कि "भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च महत्व दिया गया है. गुरुजन के प्रयास और माताओं के आशीर्वाद से ही समाज का कल्याण हो सकता है. रामायणकाल में महर्षि विश्वामित्र की बालक राम को प्रभु श्रीराम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही. भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने पहुंचे. भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा के प्रसंग से हम मित्रता और आपसी संबंधों में एक दूसरे को सम्मान देने के महत्व से भी परिचित होते हैं. हमें प्रयास करना होगा कि वर्तमान पीढ़ी भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा के इन प्रसंगों से प्रेरणा लें. मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ब्रिटिश काल में सबसे कठिन परीक्षा आईसीएस में चयनित होकर अंग्रजों की नौकरी ठुकराई और उन्हें भारतीय मेधा से परिचित कराया."
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