
Netaji Subhash Chandra Bose Hospital Rat Bite Case: लगता है कि मध्यप्रदेश में सरकारी अस्पताल और लापरवाही का रिश्ता बढ़ता जा रहा है. इंदौर में जो हुआ, वो अभी लोग भूले नहीं थे कि अब कुछ वैसी ही कहानी जबलपुर में सामने आई है. इंदौर में तो चूहों के कुतरने से दो मासूमों की मौत हो गई थी लेकिन जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में चूहों ने दो मानसिक रोगियों के पैरों को कुतर डाला. मामला सामने आने के बाद हड़कंप मचा तो अस्पताल प्रशासन लीपापोती में जुट गया.
मामला क्या है?
ये घटना है नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के वार्ड की. यहां दो मरीज अपने बिस्तर पर सो रहे थे. तभी चूहे आए और उनके पैरों पर हमला बोल दिया. एक मरीज के तो दोनों पैरों की एड़ियों पर काटा, वहीं दूसरी महिला मरीज को दो दिन तक लगातार चूहों ने परेशान किया. जब परिजनों ने शिकायत की, तो न डॉक्टर ने सुनी और न ही किसी कर्मचारी ने।
परिजनों का गुस्सा फूटा
मरीजों के घरवालों का कहना है कि पूरे वार्ड में चूहे दिन-रात बेखौफ घूमते हैं. शिकायत करो तो बस इतना कह देते हैं कि इंजेक्शन लगा दो.गोटेगांव से आए मरीज के बेटे जगदीश मेहरा ने साफ-साफ कहा, “अम्मा को इलाज के लिए लाए थे, लेकिन यहां तो चूहों ने उनके पैर खराब कर दिए. नर्स को बताया, तो कोई कार्रवाई नहीं हुई.”
अस्पताल प्रशासन का क्या कहना है?
जब हंगामा बढ़ा तो डीन डॉ. नवनीत सक्सेना को सामने आना पड़ा. उन्होंने माना कि यहां दो मरीजों को चूहों ने काटा है. लेकिन उनका दावा है कि दोनों का फौरन इलाज किया गया और अब वो ठीक हैं, इसलिए उन्हें छुट्टी दे दी गई है. डीन साहब ने जांच के आदेश भी दिए हैं और वार्ड में तुरंत पेस्ट कंट्रोल कराने का दावा भी किया है. लेकिन सवाल ये है कि ये सब पहले क्यों नहीं किया गया?
परदे के पीछे की कहानी ये भी है
दरअसल, मानसिक रोग विभाग के भवन में अभी मरम्मत का काम चल रहा है, इसलिए इसे अस्थाई तौर पर हड्डी रोग विभाग के भवन में शिफ्ट कर दिया गया है. इसी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर ये वार्ड चल रहा था, जहां चूहों का आतंक फैला हुआ है.
इंदौर का मामला याद है?
ये घटना ठीक वैसे ही है, जैसे हाल ही में इंदौर के एमवाय अस्पताल में हुआ था.वहां भी चूहों के काटने के बाद दो नवजातों की मौत हो गई थी. तब हाईकोर्ट ने भी सरकार से जवाब मांगा था. लेकिन जबलपुर की घटना सामने आने बाद तो यही लगता है कि सरकारी अधिकारियों ने कोई सबक नहीं सीखा.
सवाल तो बनता है...
जब प्रदेश के बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों में ये हाल है, तो छोटे शहरों और कस्बों में क्या होता होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. जब मरीज ही सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर इलाज की बात करना ही बेमानी है. सवाल ये है कि क्या इन लापरवाहियों के लिए किसी की जवाबदेही तय होगी और पुख्ता इंतजाम होंगे ताकि आगे ऐसी घटनाओं से बचा जा सके.
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