Hockey Stadium in Bhopal: भोपाल में सरकारी समझदारी हॉकी के होनहार खिलाड़ियों पर भारी पड़ने वाली है. दरअसल भोपाल के मेजर ध्यानचंद खेल परिसर में 7 करोड़ रुपये की लागत से हॉकी का स्टेडियम बन रहा है. खिलाड़ियों के हक में ये अच्छी बात है लेकिन समस्या स्टेडियम की दिशा को लेकर है. इस नए स्टेडियम की दिशा पूर्व -पश्चिम है. जिसका मतलब है कि दिन और शाम को सूरज की सीधी रोशनी से खिलाड़ियों को न सिर्फ दिक्कत आएगी बल्कि उन्हें चोट भी लग सकती है. परेशानी ये है कि सरकार के जिम्मेदार खेल अधिकारी भी इसे समझते हैं लेकिन बेतुके तर्कों से अपनी करनी को सही बता रहे हैं. जबकि ओलंपिक खेल चुके खिलाड़ी भी उनके तर्कों से सहमत नहीं है.
आप तस्वीरों में देख सकते हैं कि नए स्टेडियम के पीछे बना नीले रंग का पुराने स्टेडियम की दिखा उत्तर-दक्षिण है.ओलंपिक में खेल चुके इंटरनेशनल खिलाड़ी जलालुद्दीन रिज़वी का कहना है कि उन्होंने कई नेशनल और इंटरनेशनल मैच खेले हैं लेकिन कहीं पर भी इस तरह का टर्फ नहीं देखा. उनके मुताबिक गेम का सबसे पहला ही नियम ये होता है कि उसे नार्थ साउथ बनाया जाए गए हैं, अगर ये ईस्ट- वेस्ट होता है तो ऐसे में गोलकीपर और सबसे ज़्यादा प्लेयर्स को खेलने में परेशानी होती है.
जलालुद्दीन रिज़वी
खेल विभाग ने कहा- कुछ भी गलत नहीं
बता दें कि राज्य के खेल और युवा कल्याण विभाग ने पिछले 10 साल में पूरे राज्य में 17 हॉकी टर्फ बिछाये हैं, लेकिन अब उसका तर्क है ज्यादातर मैच फ्लड लाइट में होते हैं इसलिये ऐसी दिक्कत नहीं आएगी. खेल विभाग के संयुक्त संचालक बीएस यादव का कहना है कि इसमें टेक्निकली कुछ ग़लत नहीं है. हमने पूरे ग्राउंड की स्टडी की है उस हिसाब से ही टर्फ़ तैयार किया है ,जितना स्पेस था उस हिसाब से टर्फ़ बनाया गया है.
अभी वैसे भी गर्मी का समय आ गया है तो रात में ही मैच होंगे जिसके लिए हम फ्लड लाइट लगाने वाले हैं. ये टर्फ़ नेशनल गेम्स के लिए बनाया गया है जोकि ज़्यादातर रात में ही होंगे, इसके साथ ही नाथू बरखेड़ा में हम इंटरनेशनल मैच के लिए टर्फ़ तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा अहम ये है कि इसे शहर के बीचों-बीच बनाया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आकर खेल सकें. यादव का कहना है कि बिना एफ़आइएच के सर्टिफिकेशन के हम कहीं पर भी कोई टर्फ़ स्टेडियम तैयार नहीं करते.
सिवनी स्टेडियम का भी नहीं खुला ताला
बहरहाल कई पूर्व खिलाड़ूी ये मानते हैं स्टेडियम में तकनीकी रूप से खामी होने से हो सकता है करोड़ों के इस स्टेडियम को हॉकी इंडिया मान्यता भी ना दे. वैसे आपको ये भी बता दें कि प्रदेश में सरकारी समझदारी की ये इकलौती मिसाल नहीं है. दो महीने पहले ही NDTV ने बताया था कि कैसे हॉकी के जादूगर, मेजर ध्यानचंद के नाम पर बना सिवनी का हॉकी स्टेडियम भी बदहाल है. यहां राज्य का तीसरा ब्लू हॉकी एस्ट्रो टर्फ बिछाया गया जिस पर करोड़ खर्च हुए लेकिन वहां भी खिलाड़ी घास और कीचड़ के मैदान में ही पसीना बहा रहे हैं क्योंकि मैदान बनने के बाद एनओसी नहीं मिला इसलिये नये स्टेडियम का ताला नहीं खुला है.
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