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MP के 20 निकायों में टूटा ‘विश्वास’; विदिशा में भ्रष्टाचार के आरोपों से डगमगा रही कुर्सी, जनिए पूरा मामला

MP Politics: भाजपा भले ही लाख दावा करती है कि कांग्रेस पार्टी में खींचतान है BJP में नहीं है. भारतीय जनता पार्टी गुटबाजी से दूर है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं भाजपा की गुटबाजी अब बंद कमरों से निकलकर सड़को पर दिखाई दे रही है.

MP के 20 निकायों में टूटा ‘विश्वास’; विदिशा में भ्रष्टाचार के आरोपों से डगमगा रही कुर्सी, जनिए पूरा मामला
MP के 20 निकायों में टूटा ‘विश्वास’; विदिशा में भ्रष्टाचार के आरोपों से डगमगा रही कुर्सी, जनिए पूरा मामला

Politics in MP: मध्यप्रदेश की नगरीय निकाय (Nagriya Nikay) राजनीति इन दिनों उबाल पर है. शिवपुरी (Shivpuri), गुना (Guna), सागर (Sagar), हरदा, दमोह, अशोकनगर और टीकमगढ़ की तरह अब विदिशा नगर पालिका (Vidisha Nagar Palika) भी गहरे विवादों में फंस गई है. पार्षदों का गुस्सा खुलकर सामने आ चुका है और अध्यक्ष पर भ्रष्टाचार व मनमानी के गंभीर आरोप लग रहे हैं. सवाल अब सिर्फ इतना है कि विदिशा में नगर पालिका की कुर्सी बचेगी या भ्रष्टाचार की फाइलें अध्यक्ष को पद से बाहर कर देंगी.

विदिशा में भी बगावत का बिगुल

विदिशा नगर पालिका के भीतर माहौल पूरी तरह से गर्म है. कई पार्षदों का कहना है कि अध्यक्ष ने वादे तो बहुत किए, लेकिन वार्डों में काम शून्य है. सफाई, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं कागजों पर दिखती हैं, लेकिन ज़मीन पर जनता को राहत नहीं मिली. ठेकेदारी और टेंडरों में गड़बड़ियों के आरोप खुलेआम लगाए जा रहे हैं.

पार्षदों की मानें तो करोड़ों रुपये खर्च होने का दावा किया गया, लेकिन वार्डों की हालत जस की तस है. यही वजह है कि विरोध अब सिर्फ फुसफुसाहट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि खुले मंच पर अध्यक्ष के खिलाफ नाराज़गी दिखाई दे रही है.

सागर की देवरी नगर परिषद अध्यक्ष नेहा जैन को अयोग्य ठहराकर हटाया जा चुका है. शिवपुरी नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा के खिलाफ शिकायत पर कलेक्टर ने आरोप-पत्र शासन को भेजा है. गुना जिले के मधुसूदनगढ़ अध्यक्ष पर भी जांच शुरू हो चुकी है. अब विदिशा नगर पालिका भी उसी कतार में खड़ा है, जहाँ भ्रष्टाचार की फाइलें खुलने ही वाली हैं.
जिसको लेकर पार्षद खुद अपने ही पार्षद की सत्ता बदलना चाहते हैं 

विधायक गुट और अध्यक्ष गुट आए आमने-सामने 

भाजपा भले ही लाख दावा करती है कि कांग्रेस पार्टी में खींचतान है BJP में नहीं है. भारतीय जनता पार्टी गुटबाजी से दूर है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं भाजपा की गुटबाजी अब बंद कमरों से निकलकर सड़को पर दिखाई दे रही है. अपनी ही पार्टी के खिलाफ अध्यक्ष और विधायक आमने सामने आ चुके हैं. विधायक खेमे के पार्षदों का आरोप है कि नगर पालिका बड़ा कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है. आपत्ति लगाने के बाद भी खुले आम घटिया निर्माण का भुगतान ठेकेदार को किया जाता है. भाजपा पार्षद संतोष पेंटर ने तो एनडीटीवी से खास बातचीत में अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाए संतोष पेंटर ने कहा सीएम राइज स्कूल में लाखों रूपये का घटिया निर्माण नगर पालिका ने ही कराया .

सरकार की रणनीति – अविश्वास नहीं, भ्रष्टाचार पर कार्रवाई

प्रदेश सरकार ने पिछले साल अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में बदलाव किया था. पहले दो साल बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था, अब यह अवधि तीन साल कर दी गई. बहुमत भी आधे से बढ़ाकर तीन-चौथाई कर दिया गया. यह बदलाव अध्यक्षों को बचाने के लिए किए गए थे. लेकिन पार्षदों की बगावत अब इतनी तेज हो चुकी है कि सरकार को दूसरा रास्ता अपनाना पड़ रहा है.  यानी सीधे अविश्वास प्रस्ताव से हटाने की बजाय भ्रष्टाचार के मामलों में जांच बैठाकर अध्यक्ष को अयोग्य ठहराकर हटाने की तैयारी की जा रही है.

भाजपा शासित निकायों में ही संकट क्यों?

प्रदेश में जिन निकायों में अविश्वास या भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए हैं, वे सभी भाजपा शासित हैं. वजह है गुटबाजी और आंतरिक कलह. अध्यक्ष बनने के लिए कई पार्षदों से वादे किए गए, लेकिन विकास कार्य पूरे नहीं हुए. नाराज़ पार्षद अब विपक्षी पार्षदों के साथ मिलकर मोर्चा खोल रहे हैं. कई जगह विधायकों और अध्यक्षों के बीच भी तालमेल की कमी सामने आई है.

विदिशा में भी यही हाल है. पार्षद खुलकर कह रहे हैं कि “हमारे वार्डों में काम बंद हैं, जनता सवाल पूछ रही है और अध्यक्ष सिर्फ गुटबाजी में व्यस्त हैं.”

सरकार और संगठन का मकसद साफ है.

अविश्वास प्रस्ताव से हटाना: पार्टी की फूट और अंदरूनी कलह को उजागर करेगा.

भ्रष्टाचार के आरोप में हटाना: पार्टी की साख बची रहेगी, और यह संदेश जाएगा कि सरकार भ्रष्टाचार पर सख्त है. यानी रणनीति यह है कि विरोध को संगठन की कमजोरी नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बताकर राजनीतिक नुकसान से बचा जाए.

विदिशा पर राजनीतिक असर

विदिशा नगर पालिका में अगर अध्यक्ष पद से हटाए जाते हैं, तो इसके राजनीतिक मायने गहरे होंगे. आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष को बड़ा हथियार मिल जाएगा. भाजपा पार्षदों की बगावत को विपक्ष जनता के सामने “जनता की आवाज़” कहकर भुना सकता है. संगठन को अपने ही पार्षदों और विधायकों के असंतोष को शांत करने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ेगी.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की साख पर भी उठेंगे सवाल 

शिवराज सिंह चौहान ने नगर पालिका अध्यक्ष और विदिशा के विकास की गारंटी ली थी. राजनीति चर्चा का विषय यह भी बन गया है क्या विदिशा में मोहन यादव का वर्चस्व बनने वाला है. वो इसलिए क्योंकि विदिशा शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला कहा जाता है. सवाल कई हैं. क्या अब नगर पालिका अध्यक्ष ने शिवराज की शरण छोड़ मोहन का दामन थाम लिया है? जो शिवराज को शायद रास नहीं आ रहा है, यही कारण है कि जो पार्षद कल तक अपने अध्यक्ष के कसीदे पढ़ते थे आज वो अपने अध्यक्ष के खिलाफ लामबंद हो गए हैं.

नतीजा क्या होगा?

विदिशा नगर पालिका में बगावत की आंच सबसे तेज है. पार्षद साफ-साफ भ्रष्टाचार और मनमानी की शिकायत कर चुके हैं.
अब देखना यह है कि संगठन और सरकार विदिशा के अध्यक्ष को बचाने की कोशिश करती है या फिर भ्रष्टाचार की तलवार से कुर्सी चली जाती है. लेकिन इतना तय है कि विदिशा नगर पालिका की यह सियासी जंग आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश की राजनीति पर बड़ा असर डालने वाली है. वो बात अलग है इन गुटबाजी की लड़ाई में विदिशा के विकास का पहिया जरूर जाम हो चुका है.

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